जम्मू कश्मीर में सरकार गठन का दावा पेश करने के लिए 87 सदस्यीय विधानसभा में जरूरी संख्या बल जुटाने में राजनीतिक दलों के विफल रहने के बाद शुक्रवार को वहां राज्यपाल शासन लगा दिया गया।

राज्यपाल एनएन वोहरा ने गुरुवार रात यह कहते हुए राष्ट्रपति को एक रिपोर्ट सौंपी थी कि उमर अब्दुल्ला ने कार्यवाहक मुख्यमंत्री के पद से मुक्त कर देने का अनुरोध किया है। जिसके बाद यह निर्णय किया गया है। आधिकारिक सूत्रों ने यहां बताया कि इस रिपोर्ट में कई सुझाव थे जिनमें, किसी भी दल के सरकार गठन के लिए जरूरी संख्याबल नहीं जुटा पाने के आलोक में राज्यपाल शासन का विकल्प था। हाल के विधानसभा चुनाव में खंडित जनादेश आया है।

केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार रात को ही यह रिपोर्ट जरूरी कार्रवार्ई के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी थी। राज्य में राज्यपाल शासन जम्मू कश्मीर के संविधान के अनुच्छेद 92 के तहत लगाया गया है। यह अनुच्छेद राज्यपाल को राज्य में संवैधानिक मशीनरी के विफल होने की स्थिति में राज्यपाल शासन की घोषणा करने की इजाजत देता है। समझा जाता है कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राज्यपाल शासन के लिए अपनी सहमति दे दी है। राज्य में 1977 के बाद छठी बार राज्यपाल शासन लगाया गया है।

उमर ने कहा था कि राज्य को पाकिस्तान के साथ लगती सीमा पर स्थिति से निबटने और कश्मीर घाटी में बाढ़ प्रभावित लोगों को राहत प्रदान करने के लिए पूर्णकालिक प्रशासक की जरूरत है। हाल के विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी नेशनल कांफ्रेंस के हार जाने के बाद उमर अब्दुल्ला ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। जिसके बाद उन्हें 24 दिसंबर को कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में पद पर बने रहने को कहा गया था। विधानसभा चुनाव नतीजे 23 दिसंबर को आए थे।

चुनाव नतीजे आए 15 दिन से ज्यादा हो गए हैं और अब तक न तो सबसे बड़ी पार्टी पीडीपी और न ही दूसरे स्थान पर रही भाजपा सरकार गठन का दावा करने के लिए 44 का जादुई आंकड़ा जुटा पाई। विधानसभा में पीडीपी 28 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के रूप में उभरी, जबकि भाजपा 25 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही। नेशनल कांफ्रेंस को 15 सीटें मिलीं जबकि कांग्रेस के खाते में 12 सीटें गईं। नई सरकार का गठन 19 जनवरी तक हो जाना जरूरी था क्योंकि वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल उस दिन तक है। उमर के फैसले के कारण ही शायद राज्यपाल को गृहमंत्रालय को तत्काल रिपोर्ट भेजनी पड़ी।

जम्मू कश्मीर 12 साल में दूसरी बार इस स्थिति से गुजर रहा है। इससे पहले फारुक अब्दुल्ला ने तत्कालीन राज्यपाल जीसी सक्सेना से कार्यवाहक मुख्यमंत्री के दायित्व से उन्हें मुक्त करने का अनुरोध किया था क्योंकि पीडीपी और कांग्रेस सरकार गठन के वास्ते संख्याबल जुटाने में काफी वक्त ले रही थीं तब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के हस्तक्षेप के बावजूद फारुक अब्दुल्ला ने कार्यवाहक मुख्यमंत्री बने रहने से इनकार कर दिया था। फिर 18 अक्तूबर 2002 को एक पखवाड़े के लिए राज्यपाल शासन लगाना पड़ा था।