जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म हुए पांच साल हो चुके हैं, केंद्र सरकार का दावा था कि उस एक फैसले की वजह से घाटी की किस्तम बदल जाएगी, विकास को नई रफ्तार मिलेगी। अब कुछ हद तक बदलाव देखने को मिला है, लेकिन अगर यह कहा जाए कि किसी तरह का कायाकल्प हुआ है, तो यह बेईमानी होगी। जम्मू-कश्मीर को समझने वाले जानते हैं कि आज भी कई ऐसी चुनौतियां है जो वहां के विकास में बड़ा रोड़ा बन रही हैं।

कुल सात ऐसे बड़े कारण सामने आए हैं जिस वजह से जम्मू-कश्मीर के विकास को वो रफ्तार नहीं मिल पा रही, वो सात कारण इस प्रकार हैं-

कारण नंबर 1- बढ़ता राजकोषीय घाटा

जम्मू-कश्मीर का जो बजट पेश किया गया, उससे एक बात तो साफ हो गई कि तमाम कदम उठाने के बावजूद राजकोषीय घाटा कम होने के बजाय बढ़ता चला रहा है। आंकड़े सारी कहानी बयां कर रहे हैं, इस साल जम्मू-कश्मीर का राजकोषीय घाटा 13122 करोड़ रहा है, जबकि सरकार का टारगेट तो 3913 करोड़ तक उसे रखने का था।

कारण नंबर 2- सर्विस सेक्टर पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता

जम्मू-कश्मीर की जैसी अर्थव्यवस्था रही है, यहां पर आज भी सर्विस सेक्टर से ही सबसे ज्यादा पैसा आता है। आंकड़े बताते हैं कि अकेले सर्विस सेक्टर का इमप्लॉयमेंट शेयर 31 फीसदी रहा है, कुल जीडीपी का दो तिहाई है। इस वजह से दूसरे सेक्ट्स को निखरने का मौका नहीं मिल पा रहा।

कारण नंबर 3- खेती की स्कोप ज्यादा, फिर भी नहीं फायदा

हर जानकार जम्मू-कश्मीर को लेकर कह चुका है कि यहां पर खेती की काफी स्कोप है, एग्रीकल्चर से जबरदस्त इनकम जनरेट की जा सकती है। लेकिन इस सेक्टर ने जम्मू-कश्मीर को सबसे ज्यादा निराश किया है। हैरानी की बात है कि सबसे ज्यादा रोजगार तो इसी खेती ने दिया है, लेकिन पैदावार बढ़ाने के लिए जो कदम उठाए गए थे, उनका फायदा जमीन पर अभी तक नहीं मिला है। जानकार तो कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर एग्रीकल्चर के लिए बेहतर है ना कि मैन्युफैक्चरिंग के लिए।

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कारण नंबर 4-जमीन मिलना ही बना बड़ी चुनौती

अब सरकार ने सपना तो देखा है, लेकिन किसी भी विकास प्रोजेक्ट को पंख लगाने के लिए समय रहते जमीन मिलना जरूरी है। इस काम में सरकार को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। असल में सरकार ने अपनी तरफ से 11 हजार कनाल जमीन तो पहले ही दे दी है, वही 26 हजार कनाल जमीन के लिए मांग पत्र जारी हो चुका है। लेकिन चिंता की बात यह है कि 20 हजार कनाल जमीन अभी भी अधिग्रहण करनी है। इसके ऊपर सरकार ने इंडस्ट्रियन यूनिट्स को कहा था कि वो सीधे लोकल लोगों से जमीन लेने का काम करें, लेकिन उस प्रक्रिया से सिर्फ 5000 कनाल जमीन ही मिल पाई है।

कारण नंबर 5- कश्मीर को नहीं मिल पा रहा निवेश

जम्मू-कश्मीर में समान रूप से निवेश नहीं मिल पा रहा है। जमीनी स्थिति कुछ ऐसी बनी हुई है कि जम्मू में तो फिर भी लोग पैसा लगाने को तैयार हैं, लेकिन सुरक्षा और दूसरे कारणों की वजह से कश्मीर में निवेश नहीं हो पा रहा है। आंकड़े बताते हैं कि जम्मू में कुल निवेश का 60 फीसदी आता है। वही कश्मीर जो निवेश हो रहा है, उसका बड़ा हिस्सा लोकल लोगों की तरफ से ही आ रहा है। कश्मीर में सुरक्षा से लेकर कनेक्टिविटी जैसी बड़ी चुनौतियां हैं, उस वजह से निवेश कम हो रहा है।

कारण नंबर 6- पर्यटन बढ़ा, लेकिन अच्छे होटल कहां है?

पिछले साल रिकॉर्ड 2.11 करोड़ पर्यटक जम्मू-कश्मीर घूमने गए थे, यह सेक्टर कुल जीडीपी में 7 फीसदी योगदान देता है। लेकिन पर्यटन तब बढ़ेगा जब प्राइवेट निवेश ज्यादा आएगा, अच्छे होटल खुलेंगे। लेकिन यहां अभी भी ज्यादा तरक्की देखने को नहीं मिली है। एक योजना सरकार लाई है जिससे होटल बनाने वालों को कई तरह की टैक्स रियायतें दी जा सकती हैं, लेकिन फिर भी मामला ठंडा ही चल रहा है। तर्क दिया जाता है कि जरूरत से ज्यादा परमीशन लेने की वजह से प्रोजेक्ट शुरू होने में देरी हो जाती है।

कारण नंबर 7- बिजली संकट का नहीं हो रहा कोई समाधान

जम्मू-कश्मीर इस समय मात्र 3500 मेगावाट बिजली ही जनरेट कर पाता है, हाइडल पर तो उसकी जरूरत से ज्यादा निर्भरता चल रही है। आलम यह है कि जब सर्दियों में डिमांड सबसे ज्यादा बढ़ जाती है, हाइडल की वजह से सिर्फ 600-650 मेगावट बिजली मिल पाती है। माना जाता है कि इस कारण से जम्मू-कश्मीर में सर्दियों में लंबे पावर कट देखने को मिलते हैं। एक बड़ी समस्या यह भी चल रही है कि खराब इंफ्रास्ट्रक्चर और स्मार्ट मीटर्स की कमी की वजह से बिजली विभाग को काफी नुकसान उठाना पड़ता है।

 Deeptiman Tiwary की रिपोर्ट