जम्मू-कश्मीर में दो नाबालिगों पर जन सुरक्षा कानून (PSA) लगाने का मामला सामने आया है। दोनों नाबालिगों के रिश्तेदारों ने इस मामले में जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। रिश्तेदारों का कहना है कि एक की उम्र 16 जबकि दूसरे की उम्र 14 साल है।

हाईकोर्ट ने इस मामले में जांच के आदेश देते हुए सरकार से जवाब मांगा है। रिश्तेदारों की तरफ से बंदी प्रत्यक्षीकरण के तहत दायर याचिका पर जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट की श्रीनगर विंग ने जांच के आदेश दिए। रिश्तेदारों का आरोप है कि दोनों बच्चों को कठोर जन सुरक्षा कानून के तहत हिरासत में रखा गया है।

जस्टिस अली मोहम्मद मागरे की एकल पीठ ने रजिस्ट्रार से इस मामले में 10 दिन के भीतर जांच पूरी करने और हिरासत में लिए गए दोनों नाबालिगों की उम्र का पता लगाने को कहा है। एक अन्य एकल पीठ के जस्टिस संजीव कुमार ने दूसरी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका की सुनवाई करते हुए सरकार को पीएएस मामले में जवाबी हलफनामा दाखिल करने को कहा है।

हिरासत में रखे गए नाबालिग के रिश्तेदार की तरफ से नाबालिग की उम्र के प्रमाण के रूप में स्कूल का रिपोर्ट कार्ड पेश किया गया। अदालत ने इस मामले में सरकार से 1 अक्तूबर से पहले जवाब दाखिल करने को कहा है। यह दोनों आदेश ऐसे समय में आए हैं जब सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने 20 जनवरी को जम्मू और कश्मीर के चीफ जस्टिस गीता मित्तल को कथित रूप से हिरासत में रखे गए बच्चों के संबंध में सात दिन के भीतर रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अपने आदेश में कहा था कि हम जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट की जूवेनाइनल जस्टिस कमेटी को रिट याचिका में बताए गए तथ्यों के संबंध में जांच करने व एक सप्ताह के भीतर हमें जवाब देने का निर्देश देते हैं। जस्टिस मागरे के जांच के आदेश से पहले सरकार ने दावा किया था कि न तो हिरासत में लिए गए बच्चे के अभिवावक ने स्कूल में एडमिशन के समय जन्म प्रमाण पत्र पेश किया था और ना ही स्कूल ने नगर निगम या अस्पताल की तरफ से जारी इस दस्तावेज को लेकर गंभीरता दिखाई थी।