उच्चतम न्यायालय द्वारा अयोध्या विवाद में पुनर्विचार याचिकाएं खारिज किए जाने के बाद मुकदमे में पक्षकार जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने गुरुवार (12 दिसंबर) को ‘मायूसी’ जताया है। मायूसी जताते हुए कहा कि संगठन ने पहले ही कहा था कि शीर्ष अदालत का ‘जो भी फैसला होगा उसका सम्मान किया जाएगा।’ न्यायालय ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में अपने नौ नवंबर के फैसले पर पुर्निवचार के लिए दायर सभी याचिकाएं गुरुवार को खारिज कर दी हैं। बता दें कि न्यायालय ने अपने फैसले में 2.77 एकड़ विवादित भूमि ‘राम लला’ को सौंपते हुए वहां राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया था।

हमे मायूसी मिली- मदनीः इस मामले पर जमीयत उलेमा-हिंद की उत्तर प्रदेश इकाई के प्रमुख मौलाना सैयद अशहद रशिदी ने भी पुर्निवचार याचिका दायर की थी। पुर्निवचार याचिकाएं खारिज होने के बाद जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने कहा, ‘हमने पहले ही कहा था कि उच्चतम न्यायालय का जो भी फैसला होगा, उसका एहतराम (सम्मान) किया जाएगा लेकिन हम मायूस हैं, क्योंकि अदालत ने माना है कि बाबरी मस्जिद, मंदिर की जगह नहीं बनाई गई थी फिर भी फैसला रामलला के हक में दिया गया।’

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कितने भी मंदिर बन जाए कयामत तक मस्जिद वहीं होगी-मदनीः इस पर अरशद मदनी ने यह भी कहा, ‘हम इसीलिए कहते हैं कि फैसला हमारी समझ से परे है। बहरहाल, अदालत ने पुर्निवचार याचिकाएं खारिज कर दीं, ठीक है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘हमारा मानना है कि जो जगह मंदिर बनाने के लिए दी गई है वह पहले भी बाबरी मस्जिद थी और आज भी मस्जिद है और कयामत तक मस्जिद रहेगी भले ही उस पर 500 मंदिर बना दिए जाएं।’ मामले में उपचारात्मक याचिका दायर करने के सवाल पर मौलाना मदनी ने कहा कि जमीयत की कार्यसमिति की बैठक में चर्चा के बाद इस पर फैसला किया जाएगा।

विरोध में सड़को पर उतरने की बात को किया खारिजः अरशद मदनी ने न्यायालय के फैसले के खिलाफ सड़कों पर प्रदर्शन करने से इनकार करते हुए कहा, ‘हम कभी भी किसी मसले को लेकर सड़कों पर नहीं आते हैं। अगर हमें सड़कों पर आना होता पहले ही आ जाते, लेकिन हमारे बुजुर्गों ने बाबरी मस्जिद को लेकर सड़कों पर न आकर इसे कानूनी तौर पर लड़ा।’

गौरतलब है कि मौलाना सैयद अशहद रशिदी ने 14 बिन्दुओं के आधार पर इस फैसले पर पुर्निवचार का अनुरोध किया था और कहा था कि बाबरी मस्जिद के पुर्निनर्माण का निर्देश देकर ही इस मामले में ‘पूर्ण न्याय’ हो सकता है। उन्होंने नौ नवंबर के फैसले के उस अंश पर अंतरिम रोक लगाने का अनुरोध किया था जिसमें केन्द्र को तीन महीने के भीतर मंदिर निर्माण के लिए एक न्यास गठित करने का निर्देश दिया गया था।