ISRO: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 4 सितंबर, रविवार को इन्फ्लेटेबल एरोडायनामिक डिसेलेरेटर (IAD) का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है। भविष्य में इसका उपयोग मंगल या शुक्र पर पेलोड लैंडिंग के लिए किया जाएगा। बता दें कि इस नई तकनीकि के सफल परीक्षण के चलते कई स्पेस मिशनों के लिए यह गेमचेंजर साबित हो सकता है।

तिरुवनंतपुरम के थुंबा में IAD तकनीक का परीक्षण:

इस तकनीक से रॉकेट की गति पर भी वैज्ञानिक कंट्रोल रख सकते हैं। IAD को विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (VSSC) की ओर से डिजाइन और डेवलेप किया गया है। इसरो ने एक ट्वीट में जानकारी दी कि तिरुवनंतपुरम के थुंबा में IAD तकनीक का परीक्षण साउंडिंग रॉकेट रोहिणी के जरिए किया गया है। बता दें कि रोहिणी साउंडिंग रॉकेटों का उपयोग भारत और विदेश के वैज्ञानिकों द्वारा फ्लाइट डेमोंस्ट्रेशन के लिए नियमित रूप से किया जाता है।

कैसे हुई लैंडिग:

शुरुआत में रॉकेट के ‘पेलोड बे’ के अंदर IAD को फोल्ड करके रखा गया था। आईएडी को लगभग 84 किमी की ऊंचाई पर खोला गया और यह रॉकेट के पेलोड पार्ट में फूल गया। लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम सेंटर (LPSC) की वजह से IAD का यह मूवमेंट हुआ। IAD की वजह से पेलोड की वेलोसिटी प्रभावित हो गई और इसके चलते रॉकेट की गति कम हो गई।

शुक्र और मंगल जैसे ग्रहों के लिए भी होगा आईएडी तकनीकी का उपयोग:

इसरो ने इसके परीक्षण पर खुलासा किया कि IAD को सिंगल-स्टेज रोहिणी-300 (RH300MKIl) साउंडिंग रॉकेट के नोज़कॉन में रखा गया है। वहीं इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने कहा कि इस आईएडी तकनीक का उपयोग इसरो के भविष्य के मिशनों में शुक्र और मंगल के लिए भी किया जा सकता है।

यह तकनीकी अलग-अलग मिशन के लिए होगी सहायक:

बता दें कि इसरो अक्सर नई प्रौद्योगिकियों के साथ-साथ फ्लाइट डिमॉन्ट्रेशन के लिए रोहिणी साउंडिंग रॉकेट्स का इस्तेमाल करता है। अपने प्रयोग में माइक्रो वीडियो इमेजिंग सिस्टम पर इसरो ने बल दिया है। IAD तकनीक भविष्य में इसरो के अलग-अलग मिशन के लिए काफी सहायक साबित हो सकती है।