चंद्रयान-3 के प्रज्ञान रोवर में लगे पेलोड ने चांद की सहत पर सल्फर की मौजूदगी का पता लगाया था। रोवर पर लगे एक अन्य उपकरण ने दूसरी तकनीक की मदद से चन्द्रमा की सतह पर सल्फर होने की पुष्टि की है। इसरो ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पहले ट्विटर) पर पोस्ट कर जानकारी दी कि अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोस्कोप (APXS) ने सल्फर के साथ ही अन्य छोटे तत्वों का पता लगाया है। इसरो ने आगे लिखा है कि चंद्रयान-3 की यह खोज वैज्ञानिकों को क्षेत्र में सल्फर (S) के स्रोत के लिए नए स्पष्टीकरण विकसित करने के लिए मजबूर करती है- क्या सल्फर आंतरिक रूप से चांद की सतह पर मौजूद है या ज्वालामुखी से उत्पन हुई है या उल्कापिंड जनित है।

इसरो द्वारा पोस्ट किये गए वीडियो में प्रज्ञान रोवर में लगा एपीएक्सएस को घूमते हुए देखा जा सकता है। इसरो ने बताया कि एपीएक्सएस को पीआरएल, अहमदाबाद के सहयोग से विकसित किया गया है।

इसरो से जुड़े सूत्रों ने बताया कि वैज्ञानिकों को चन्द्रमा की सतह पर सल्फर मिलने की उम्मीद नहीं थी। चंद्रयान-3 के प्रज्ञान रोवर में लगे दो पेलोड्स ने चांद की सतह पर सल्फर होने की पुष्टि कर दी है। अब वैज्ञानिक चन्द्रमा की सतह पर सल्फर कैसे उत्पन हुआ इसका पता लगाने की कोशिश करेंगे।

बता दें कि भारत चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफल लैंडिंग करने वाला पहला देश है। चंद्रयान ने चांद की सतह पर ऑक्सीजन की खोज भी कर ली है। अब विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर चांद की सतह पर हीलियम ढूंढने की कोशिश कर रहा है।

चांद की सतह पर तापमान में है काफी अंतर

इसरो बताया कि चंद्रमा की सतह के ठीक ऊपर और नीचे के तापमान में बहुत बड़ा अंतर है। इसरो ने एक ग्राफ शेयर करके तापमान में अंतर को दर्शाया है। ग्राफ देख कर मालूम चलता है कि चांद की सतह पर तापमान 50 डिग्री सेल्सियस से अधिक है। लेकिन सतह से कुछ मिलीमीटर नीचे ही तापमान लगभग माइनस 10 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। इसरो ने यह भी पता लगाया कि चांद की सतह की ऊपरी मिट्टी बहुत अच्छी तरह से गर्मी का संचालन निचे की सतह में करने में अक्षम है। इसी कारण चन्द्रमा की ऊपरी सतह इतनी गर्म है वहीं चन्द्रमा की निचली सतह पर तापमान माइनस में है।