मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला को दिल्ली की एक अदालत ने अफ्सपा हटाने की मांग को लेकर वर्ष 2006 में जंतर-मंतर पर आमरण अनशन के दौरान खुदकुशी करने की कोशिश के मामले में बुधवार को बरी कर दिया गया। फैसला आने के बाद इरोम शर्मिला (42) ने कहा कि अफ्सपा हटाने तक उनका संघर्ष जारी रहेगा। ईरोम सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफ्सपा) को वापस लेने की मांग को लेकर मणिपुर में 16 साल से अनशन पर हैं। मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट हरविंदर सिंह ने फैसला सुनाते हुए कहा-‘मामले से आरोपी को बरी किया जाता है।’

अदालत कक्ष के बाहर संवाददाताओं से बात करते हुए इरोम शर्मिला ने कहा-‘अफ्सपा को हटाए जाने तक मेरा संघर्ष जारी रहेगा। यह मायने नहीं रखता कि मुझे जेल से रिहा किया जाता है या नहीं।’ अदालत ने उनसे दस हजार रुपए का निजी मुचलका भरने को कहा। बहरहाल उन्होंने मुचलका भरने से इनकार करते हुए कहा-‘मैं महात्मा गांधी के पथ का अनुसरण कर रही हूं।’ उनके वकील वीके ओहरी ने अदालत कक्ष के बाहर उन्हें निजी मुचलका भरने की जरूरत बताई।

अदालत को वकील ने जब इस बारे में सूचित किया तो मजिस्ट्रेट ने कहा कि उन्हें इस मामले में जब जमानत दी गई थी तो उनके भरे निजी मुचलके की मियाद छह महीने के लिए बढ़ाई जाती है। अदालत ने कहा, ‘चूंकि कुछ अन्य मामलों में वे न्यायिक हिरासत में है और अगर वर्तमान मामले को चुनौती दी जाती है तो उनकी हाजिरी अपीली अदालत में कराई जा सकती है, और मौजूदा मामले में जब उन्हें जमानत दी गई थी तो उस वक्त उन्होंने जो निजी मुचलका भरा था उसकी मियाद छह महीने बढ़ाई जाती है।’

शर्मिला जब अदालत कक्ष से बाहर चली गईं तो उनके साथ आए कई लोगों ने उनके समर्थन में नारे लगाए और अफ्सपा की निंदा की। मालूम हो कि चार अक्तूबर 2006 को जंतर-मंतर पर आमरण अनशन कर कथित तौर पर आत्महत्या का प्रयास करने के लिए उन पर चार मार्च, 2013 को मुकदमा चलाया गया। अदालत से पहले उन्होंने कहा था कि अगर अफ्सपा को हटाया जाता है तो वे अनशन खत्म करने को तैयार हैं।