सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से हटाने से जुड़ी याचिका पर मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू की है। याचिकाकर्ताओं ने आईपीसी की धारा 377 के उस प्रावधान को चुनौती दी है, जिसमें समलैंगिकता को अपराध माना गया है। दोषी पाए जाने पर 14 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है। बहस के दौरान पीठ में शामिल जजों ने इस मुद्दे पर गंभीर टिप्पणियां कीं। पीठ में शामिल जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने टिप्पणी की, ‘परिवार और समाज के दबाव में एलजीबीटी समुदाय (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर) के लोगों को विपरीत लिंग के लोगों से शादी करनी पड़ती है। इससे बाइसेक्सुअलिटी (एक से ज्यादा लिंग वाले लोगों के प्रति यौन आकर्षण) की भावनाएं बढ़ रही हैं। साथ ही मानसिक आघात की समस्याएं भी सामने आती हैं।’ पीठ में शामिल एक अन्य जज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने भी महत्वपूर्ण टिप्पणी की। उन्होंने कहा, ‘इसको लेकर (समलैंगिक) समाज में कटु अनुभव की जड़ें काफी गहरी हैं, जिसके कारण एलजीबीटी समुदाय को डर के साए में रहना पड़ता है।’ बता दें कि दिल्ली हाई कोर्ट ने वर्ष 2009 में धारा 377 के उस प्रावधान को निरस्त कर दिया था, जिसके तहत समलैंगिक संबंधों को अपराध माना गया है। बाद में सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया था। इसके उपरांत इस मामले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के हवाले कर दिया गया था।
Section 377 matter: Justice Indu Malhotra, also observed ‘because of family and societal pressures, they(LGBT community) are forced to marry the opposite sex and it leads to bi-sexuality and mental trauma.’
— ANI (@ANI) July 12, 2018
Section 377 matter: Justice Chandrachud said ‘there is deep rooted trauma involved in the society, which forces the LGBT community to be in fear’
— ANI (@ANI) July 12, 2018
गौरतलब है कि समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर किया जाए या नहीं, केंद्र सरकार ने यह फैसला पूरी तरह से सुप्रीम कोर्ट पर छोड़ दिया है। बुधवार (11 जुलाई) को मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र ने धारा 377 पर कोई स्टैंड नहीं लिया। केंद्र ने कहा कि कोर्ट ही तय करे कि 377 के तहत सहमति से बालिगों का समलैंगिक संबंध बनाना अपराध है या नहीं। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार का पक्ष रखा था। उन्होंने कहा कि केंद्र 377 के वैधता के मामले को सुप्रीम कोर्ट पर छोड़ते हैं, लेकिन अगर सुनवाई का दायरा बढ़ता है तो सरकार हलफनामा देगी। याचियों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने दलील दी कि धारा 377 एलजीबीटी समुदाय के समानता के अधिकार को खत्म करती है। लेस्बियन, गे, बाईसेक्सुअल और ट्रासजेंडर समुदाय के लोगों को कोर्ट, संविधान और देश से सुरक्षा मिलनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि समलैंगिक समुदाय के लोग प्रतिभा में कम नहीं हैं और इस समुदाय के लोग आईएएस, आईआईटी जैसी मुश्किल परीक्षा पास कर रहे हैं।

