कोरोना विषाणु महामारी की वजह से कच्चे तेल की कीमतें लगातार गिरती जा रही हैं। अमेरिका में कीमतें शून्य से भी नीचे चली गई थीं। इससे किसी देश को फायदा है, तो किसी को नुकसान। अमेरिका अपने तेल भंडार के बोझ तले दबा जा रहा है। शेल उत्पादकों को तेल का उत्पादन कम करना पड़ा है। अमेरिका इसका दोष सऊदी अरब पर मढ़ रहा है। इसमें सच्चाई भी है। उसने दावा किया है कि सऊदी अरब ने जानबूझ कर तेल की कीमतों को तोड़ा है। दूसरी ओर, भारत के लिए इसे अच्छा माना जा रहा है कि कच्चे तेल की कीमतें गिर रही हैं। इससे भारत को अपना वित्तीय घाटा पूरा करने में मदद मिलेगी और रणनीतिक भंडारण का काम सटीक हो गया तो सरकार को अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में आसानी हो सकती है।

अमेरिका पर तेल का भार
अमेरिका अपने तेल के बोझ तले दबा जा रहा है। शेल प्रोड्यूसर्स को तेल का उत्पादन कम करना पड़ा है। भंडारण की कमी हो गई है और मांग टूट गई है। कोरोना काल में अमेरिका के फैसले पर सबकी नजर है कि वह तेल की कीमतें कम रखता है या अधिक। वहां चुनावी साल में यह कठिन फैसला है। शेल उद्योग ने वहां के कई राज्यों में नौकरियां दी हैं, जो लोग ट्रंप के समर्थक हैं। वहां लोग उम्मीद लगाए हुए हैं कि तेल की कम कीमतों से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने और अधिक नौकरियां देने में मदद मिलेगी। सवाल यह है कि क्या अमेरिका टेक्सास और उत्तरी डकोटा के नाराज लोगों की मदद के लिए सऊदी अरब से आने वाले तेल पर प्रतिबंध लगाएगा? अमेरिका-सऊदी का रिश्ता एक नाजुक मोड़ पर आ चुका है।

अमेरिका मानता है कि सऊदी अरब ने जानबूझ कर तेल की कीमतों को कम किया है, ताकि अमेरिकी शेल इंडस्ट्री तबाह हो जाए। पूर्व के करार के मुताबिक, सुपर टैंकर्स कही जाने वाली वैश्विक कंपनियों के जरिए मई और जून में अमेरिका को चार करोड़ डॉलर तेल की खेप पहुंचने वाली है, जिससे तेल की वैश्विक राजनीति प्रभावित हो सकती है।

रूस, सऊदी अरब व ईरान का हाल
ट्रंप ने अमेरिका, सऊदी अरब और रूस के बीच एक सौदे के लिए मार्च में पहल की थी। कच्चे तेल के प्रोडक्शन में रोजाना 1.5 करोड़ बैरल की कटौती की। इस सौदे से दुनिया पर कोई खास असर नहीं पड़ा, क्योंकि मांग ही तीन करोड़ बैरल प्रतिदिन के हिसाब से कम हो गई। लेकिन ये सब तब हुआ जब सऊदी अरब और रूस ने मार्च में एक कदम उठाया। रूस और सऊदी अरब ने बाजार में ढेर सारे तेल की आपूर्ति कर दी। रूस ने अपने 600 अरब डॉलर के फॉरेक्स रिजर्व का फायदा उठाया और उत्पादन 42 डॉलर (न फायदा-न नुकसान) पर पहुंचा, जो सऊदी के 84 डॉलर का आधा है। दूसरी ओर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) दोनों की ही अर्थव्यवस्था लगातार गिरती जा रही है। ईरान को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, जिस पर पहले से ही तमाम प्रतिबंध लगे हैं।

भारत का रणनीतिक भंडारण
मार्च 2021 तक अगर भारत को कच्चा तेल 25 डॉलर प्रति बैरल की कीमत तक मिलता रहा तो चालू कारोबारी साल में भारत का कच्चा तेल आयात खर्च 57 फीसद घटकर 43 अरब डॉलर पर आ जाएगा। ऐसे में चालू खाता घाटा के मोर्चे पर राहत मिलेगी। भारत ने मार्च के तीसरे सप्ताह से अपने रणनीतिक तेल भंडार को भरना शुरू कर दिया और उम्मीद है कि मई के आखिर तक यह भंडार पूरी तरह से भर जाएगा। तेल भंडार को भरने के लिए तेल की खरीदारी की जाने के बावजूद पिछले कारोबारी साल में देश का तेल आयात खर्च 100 अरब डॉलर से बस थोड़ा ही ज्यादा रहेगा।

पूर्णबंदी का असर : बिक्री 60 फीसद घटी
सरकार के पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल के मुताबिक कारोबारी साल 2019-20 में डीजल की बिक्री 1.1 फीसद घटकर 8.26 करोड़ टन रही। विमान ईंधन की बिक्री इस दौरान 3.6 फीसद घटकर 80 लाख टन रही। मार्च के पहले दो सप्ताह में पेट्रोल व डीजल की बिक्री में 60 फीसद की गिरावट रही। मार्च के दूसरे दो सप्ताह में बिक्री के और घटने की आशंका है और अप्रैल में भी ऐसी ही स्थिति रही होगी। जानकारों के मुताबिक, 53 लाख टन की रणनीतिक भंडारण क्षमता का करीब 60 फीसद अब तक भर चुका है। सरकारी तेल कंपनियां इसे मई के आखिर तक पूरा भर देंगी। अक्तूबर 2019 से मार्च 2020 के बीच भारतीय बास्केट के कच्चे तेल की औसत कीमत 66 डॉलर प्रति बैरल रहने का अनुमान था, जबकि वास्तविक औसत कीमत 56.7 डॉलर प्रति बैरल ही रही।

कहां-कहां रणनीतिक तेल भंडार
आने वाले वर्षों में अमेरिका का प्रभाव कम होगा, चीन की वो विश्वसनीयता नहीं बन सकी है जो वो चाहता है। कुल मिलाकर तेल के शतरंज की बिसात लगातार बदल रही है। तेल के जितने आयातक हैं, उनमें भारत, चीन, दक्षिण कोरिया और जापान एशिया के बड़े आयातक हैं। इराक, सऊदी अरब, ईरान और रूस जैसे देश कच्चे तेल की कीमतें तय करेंगे। -नरेंद्र तनेजा, ऊर्जा विशेषज्ञ

मध्य पूर्व में अमेरिका का प्रभाव कम हो रहा है। आगे भारत की बात ज्यादा सुनी जाएगी। अमेरिका तो अभी तेल के निर्यात के बाजार में आया है। भारत उनसे बहुत कम तेल मंगाता है, वहां से तेल लाने में बहुत वक्त लगता है। ईरान,सऊदी अरब, ओमान, जैसे देश भारत के नजदीक भी हैं। – पिनाक रंजन चक्रवर्ती, पूर्व सचिव, विदेश मंत्रालय

रणनीतिक तेल भंडार विशाखापत्तनम (क्षमता : 13 लाख टन), मंगलुरू (क्षमता : 15 लाख टन) और पादुर (क्षमता : 25 लाख टन) में स्थित हैं। कारोबारी साल 2017-18 के खपत के मुताबिक तीनों भंडार यदि पूरी तरह से भरें हों, तो इससे देश की 9.5 दिनों की तेल जरूरत पूरी हो सकती है। इसके अलावा 16 मार्च को सरकारी तेल कंपनियों के पास 64.5 दिनों की जरूरत के लिए अतिरिक्त भंडार मौजूद था। रणनीतिक तेल भंडारों में 60 साल तक तेल रखा जा सकता है।