भारत जल्द ही दो एकीकृत थिएटर कमान (आइटीसी) की घोषणा करने की तैयारी में है। पाकिस्तान और चीन की चुनौतियों को ध्यान में रखकर पश्चिमी क्षेत्र में दोनों थिएटर कमान बनाए जा रहे हैं। इसके बाद तीसरे- समुद्री थियेटर कमान की बारी है। सेना के दक्षिण-पश्चिमी कमान के मुख्यालय जयपुर में पहला थिएटर कमान बनेगा, जो पाकिस्तान की चुनौतियों से दो-चार होगा।

दूसरा थिएटर कमान लखनऊ (मध्य कमान के मुख्यालय) में बनाया जा रहा है, जो चीन की चुनौतियों का जवाब देगा। दोनों जगह की ढांचागत तैयारियां पूरी की जा चुकी हैं। नौसैन्य थिएटर कमान कर्नाटक के कारवार में बनेगा, जो गोवा के पास है। दरअसल, एकीकृत थिएटर कमान भारतीय सशस्त्र सेनाओं (थल सेना, नौसेना और वायु सेना) में बेहतर समन्वय की योजना है, जिस पर सरकार रक्षा सुधारों के अंतर्गत प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस) की नियुक्ति के बाद से काम कर रही है।

क्या हैं तैयारियां

प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने सेना प्रमुखों के साथ थिएटर कमांड पर कई दौर की चर्चा की है। सैन्य मामलों का विभाग (डीएमए) विभिन्न हितधारकों के साथ कई बैठकें कर चुका है। बैठकें आगे भी होंगी। जयपुर में पहला एकीकृत थिएटर कमांड को एक परीक्षण के तौर पर देखा जा रहा है, जहां के अनुभवों को आगे काम में लाया जाएगा।

भारतीय वायुसेना के पश्चिमी और दक्षिण पश्चिमी वायु कमान एवं मध्य और दक्षिणी कमान के अलावा सेना की दक्षिण पश्चिमी, पश्चिमी और दक्षिणी कमान एवं उत्तरी कमान के ठिकाने जयपुर स्थित थिएटर कमान के तहत आएंगे। रक्षा सूत्रों के मुताबिक, सेना, वायु सेना और नौसेना के सभी परिचालन कमानों को तीन थिएटरों में मिला दिया जाएगा। सभी थिएटर कमांडर सीडीएस के प्रति जवाबदेह होंगे। वे चार सितारा अधिकारी होंगे।

लाजिस्टिक्स, प्रशिक्षण, साइबर और अंतरिक्ष, मिसाइल और खुफिया जैसे अन्य संयुक्त कमान होंगे, लेकिन इसका नेतृत्व तीन सितारा अधिकारी करेंगे। वे सीडीएस के मातहत आने वाले ‘चीफ आफ स्टाफ कमेटी’ (सीआइएससी) के अध्यक्ष के प्रति जवाबदेह होंगे। फिलहाल सेना के तीनों अंगों के लिए कुल 17 कमान बनाए गए हैं, जिसमें सात-सात कमान थल सेना और वायु सेना के हैं, तीन नौसेना के कमान हैं।

सुलझा लिए गए मतभेद

सेना के तीनों अंगों ने एकीकृत थिएटर कमान की स्थापना को लेकर अपने मतभेद काफी हद तक सुलझा लिए हैं। अगस्त 2023 खत्म होते-होते देश को पहला थिएटर कमान मिल सकता है। दरअसल, परिसंपत्तियों पर नियंत्रण का मुद्दा अहम था, जिसे लेकर सवाल उठ रहे थे। वायुसेना द्वारा परिसंपत्तियों पर नियंत्रण रखने की एक बड़ी वजह है।

दरअसल, वायुसेना हवाई शक्ति की अविभाज्यता में विश्वास करती है। ये इस धारणा के साथ सटीक बैठती है कि हवाई शक्ति को समंदर और जमीनी बलों से स्वतंत्र रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है। भारतीय थलसेना और भारतीय नौसेना ने भारतीय वायुसेना की ये मांग मान ली है कि थिएटर कमांड के मातहत कोई हवाई परिसंपत्ति नहीं रखी जाएगी।

आपात परिस्थितियों में आइटीसी के परिचालन से जुड़ी जरूरतों को पूरा करने के लिए इनका उपयोग किया जाएगा, हालांकि उस मौके पर भी ऐसी कवायदों को वायुसेना के नियंत्रण में ही अंजाम दिया जाएगा। वायुसेना का तर्क है कि चूंकि उनके पास 42 स्क्वैड्रन की स्वीकृत क्षमता के मुकाबले सिर्फ 31 लड़ाकू स्क्वैड्रन हैं, लिहाजा हवाई परिसंपत्तियों का सेवा-केंद्रित नियंत्रण होना चाहिए।

बालाकोट का उदाहरण

फरवरी 2019 में पुलवामा आतंकी हमले का बदला लेने के लिए बालाकोट हवाई हमलों को अंजाम दिया गया था। इसको इस बात के सबसे स्पष्ट उदाहरण के तौर पर रखा जाता है कि क्यों और कैसे हवाई शक्ति को थिएटर कमांड से इतर इस्तेमाल किया जाना चाहिए। तब वायु सेना के पूर्व प्रमुख एस कृष्णास्वामी ने कहा था, ‘बालाकोट हवाई हमला, पेशेवराना कौशल के प्रदर्शन का सबसे अनोखा उदाहरण है।’

सीडीएस के कार्यालय से ऐसे सुचारू अभियान की योजना बनाए जाने और उन्हें क्रियान्वित किए जाने की कल्पना कर पाना भी मुश्किल लगता है। उस सूरत में ऐसे अभियानों के लिए कंपोनेंट कमांडर, सीडीएस को सलाह देगा और मिशन की योजना बनाकर उसे क्रियान्वित करेगा, भले ही इसे संयुक्त कमान को सौंपा गया हो। बालाकोट में गोपनीयता और रफ्तार की मिसाल पेश की थी वायुसेना ने।

अन्य देशों से अलग ढांचा

भारत के एकीकृत थिएटर कमान अन्य देशों की तरह भौगोलिक क्षेत्रों के आधार पर नहीं बनाए जाएंगे। आइटीसी एक, दो और तीन का गठन सुरक्षा और रणनीति के अनुसार संख्या के आधार पर किया जाएगा। अमेरिका, चीन, आदि देशों में थिएटर कमान काम कर रहे हैं, जो कि भौगोलिक क्षेत्र के आधार पर बने हैं।

अमेरिका में सबसे पहले थिएटर कमान बनाए गए थे और इस समय वहां छह भौगोलिक आधार पर और चार कार्यकारी आधार पर संचालित किए जा रहे हैं। चीन में छह आइटीसी हैं। भारतीय वायुसेना हवाई शक्ति की अविभाज्यता में विश्वास करती है। हवाई शक्ति को समंदर और जमीनी बलों से स्वतंत्र रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है। ये सैन्य अहमियत वाले प्रभाव भी पैदा कर सकता है, जिससे परिचालन से जुड़े ठोस परिणाम हासिल हो सकते हैं जो समुद्री और जमीनी कार्रवाइयों से अलग होते हैं।

क्या कहते हैं जानकार

यह सबसे महत्त्वाकांक्षी बदलावों में से एक है, जिसके आजादी के बाद दूरगामी प्रभाव पड़ने वाले हैं। इस यात्रा की शुरुआत संयुक्तता और एकीकरण की दिशा में पहले उठाए जा रहे सही कदमों पर निर्भर करती है। अब युद्ध की नीति बदली जा सकेगी।

  • जनरल अनिल चौहान, प्रमुख रक्षा अध्यक्ष

सेना के कोर/क्षेत्रों को जरूरत के हिसाब से पुनर्गठित करना होगा। संयुक्त परिचालन, सुरक्षा प्रतिबद्धताओं, रसद और प्रशासनिक एकीकरण के संबंध में। वायु सेना स्क्वाड्रनों को एअर वाइस मार्शल के अधीन दो या तीन ‘विंगों’ वाली परिचालन इकाइयों में बांटा जा सकता है।

  • लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) प्रकाश मेनन, रक्षा विशेषज्ञ