देश के पहले स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर IAC-1 जिसे INS विक्रांत के नाम से जाना जाता है, उसने समंदर में अपने कदम रख दिए हैं। INS विक्रांत का सी-ट्रायल बुधवार को शुरू हो गए। भारतीय नौसेना ने इसे देश के लिए ‘गौरवान्वित करने वाला और ऐतिहासिक’ पल करार देते हुए कहा कि भारत उन चुनिंदा देशों में शुमार हो गया है, जिसके पास स्वदेश में निर्माण करने और अत्याधुनिक विमानवाहक जहाज तैयार करने की क्षमता है।’ तो चलिए जानते हैं INS विक्रांत की खासियत और भारत में इसके बनने के मायने क्या हैं।

क्या है IAC-1: यह भारत में डिजाइन और निर्मित पहला विमानवाहक पोत (एयर क्राफ्ट कैरियर) है। किसी भी देश के लिए उसका विमानवाहक पोत उसकी सबसे शक्तिशाली समुद्री संपत्तियों में से एक होता है, जो नौसेना की ताकत को बढ़ाता है। जानकारों की नजर में नीले समंदर की दुनिया अपना वर्चस्व साबित करना है तो विमानवाहक पोत (एयर क्राफ्ट कैरियर) का होना जरूरी है। क्योंकि यह समुद्र की दुनिया में राष्ट्र की ताकत और शक्ति को दर्शाता है।

एक एयरक्राफ्ट कैरियर पर आम तौर पर युद्ध के लिए सभी जरूरी चीजें उपलब्ध होती हैं। साथ ही बड़ी शिपमेंट में भी इनका इस्तेमाल किया जा सकता है। विमानवाहक पोत के जरिए नाजुक और कीमती सामानों को भी पहुंचाया जाता है तो विपरीत परिस्थितियों से निपटने के लिए विध्वंसक, मिसाइल क्रूजर, फ्रिगेट, पनडुब्बी और आपूर्ति जहाज भी मौजूद होते हैं।

भारत में इस युद्धपोत बनने के क्या मायने: दुनिया में इस वक्त करीब 5 या 6 ही ऐसे देश हैं, जिनके पास एयर क्राफ्ट कैरियर बनाने की क्षमता है। इस खास क्लब में अब भारत भी शुमार हो गया है। जानकार और नौसेना के अधिकारी मानते हैं कि भारत ने सबसे एडवांस और जटिल युद्धपोत का निर्माण करके दुनिया के सामने आत्मनिर्भरता का शानदार नमूना पेश किया है। इससे पहले भारत के पास जो विमानवाहक पोत हैं वह या तो ब्रिटिश या रूसियों द्वारा बनाए गए थे।

आईएनएस विक्रमादित्य, वर्तमान में नौसेना का एकमात्र विमानवाहक पोत है जिसे 2013 में कमीशन किया गया था। इसकी शुरुआत सोवियत-रूसी एडमिरल गोर्शकोव के रूप में हुई थी। देश के पहले के दो वाहक, आईएनएस विक्रांत और आईएनएस विराट, क्रमशः 1961 और 1987 में नौसेना में शामिल होने से पहले मूल रूप से ब्रिटिश निर्मित HMS हरक्यूलिस और HMS हर्मीस थे।

नौसेना के अनुसार, IAC-1 बोर्ड पर 76 फीसदी से अधिक सामग्री और उपकरण स्वदेशी हैं। इसमें 23 हजार टन स्टील, 2500 किमी इलेक्ट्रिक केबल, 150 किमी पाइप, 2000 वाल्व शामिल हैं। इसके अलावा रिजिड हल बोट्स, गैली इक्विपमेंट, एयरकंडीशनिंग, रेफ्रिजरेशन प्लांट और स्टीयरिंग गियर सहित तैयार उत्पादों की एक खास रेंज शामिल है। नौसेना का अनुमान है कि इस परियोजना की लागत लगभग 23 हजार करोड़ है।

नाम विक्रांत क्यों? : इस विमानवाहक पोत का नाम विक्रांत रखे जाने के पीछे भी बड़ी रोचक वजह है। भारत के पास पहले भी ‘विक्रांत’ नाम का एक एयरक्राफ्ट कैरियर था। इसे 1997 मे डिकमीशन कर दिया गया था। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में INS विक्रांत ने हिंदुस्तान की जीत में अहम भूमिका निभाई थी।

नए विक्रांत के पास कौन से हथियार और उपकरण होंगे?: नौसेना ने आधिकारिक तौर पर उन हथियारों और विमानों का खुलासा नहीं किया है जिन्हें आईएनएस विक्रांत ले जाएगा। लेकिन इसे आईएनएस विक्रमादित्य की बराबर क्षमता वाला ही माना जा रहा है। जो 44,500 टन का पोत है और लड़ाकू जेट-हेलीकॉप्टर सहित 34 विमान तक ले जा सकता है। नौसेना ने पहले अपने बयान में कहा था कि एक बार कमीशन होने के बाद, IAC-1 भारत की सबसे शक्तिशाली समुद्र-आधारित संपत्ति होगी।

तो क्या भारत और विमानवाहन पोत बनाएगा: भारत अगले एयरक्राफ्ट कैरियर की मंजूरी का इंतजार 2015 से ही कर रहा है। अगर तीसरा विमानवाहक पोत को बनाने की मंजूरी मिल जाती है तो भारत का दूसरा स्वदेशी विमान वाहक (IAC-2) बन जाएगा। INS विशाल नाम के इस प्रस्तावित वाहक IAC-1 और INS विक्रमादित्य से काफी बड़ा होगा। नौसेना के अधिकारी सरकार को तीसरे एयरक्राफ्ट कैरियर की जरूरत के बारे में बता रहे हैं।