देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और बॉलीवुड महानायक अमिताभ बच्चन की दोस्ती काफी पुरानी थी। वर्ष 1968 में जनवरी महीने की ठंड और धुंध भरी एक सुबह अमिताभ सोनिया गांधी को दिल्ली के पालम एयरपोर्ट पर रिसीव करने पहुंचे थे। सोनिया उनके दोस्त राजीव गांधी की पत्नी बनने वाली थीं। सोनिया अमिताभ और उनके भाई अजीताभ को भाई मानती थी। यह रिश्ता लंबे समय तक चला। प्रियंका गांधी भी अमिताभ को ‘मामा’ कहकर बुलाती थीं। देश में इमरजेंसी के वक्त अमिताभ अक्सर संजय गांधी के साथ दिखते थे। इस वजह से उन्हें भी मीडिया के विरोध का सामना करना पड़ा। संजय गांधी की मौत के बाद राजीव गांधी की इंट्री हुई। अमिताभ बच्चन ने 1982 में दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में एशियन गेम्स की ओपनिंग सेरेमनी में अपनी आवाज का जादू बिखेरा। राजीव गांधी पहली पंक्ति में बैठ अमिताभ को सुनते रहे। उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद से सांसद बने अमिताभ ने बोफोर्स घोटाले में नाम आने के बाद राजनीति छोड़ दी। उनके ऊपर कई सारे आरोप लगने शुरू हो गए थे। अमिताभ ने अपने ऊपर लगे आरोपों के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी और जीत भी गए लेकिन राजनीति से उनका वास्ता समाप्त हो गया। लेकिन एक समय ऐसा भी था, जब इंदिरा गांधी ने राजीव गांधी को चेतावनी दी थी कि वे अमिताभ बच्चन को राजनीति में न लाएं।

न्यूज 18 के लिए रशिद किदवई ने माखन लाल फोतेदार के संस्मरण का हवाला देते हुए एक रिपोर्ट लिखी है। रिपोर्ट के अनुसार, 1987 से पहले गांधी परिवार और बच्चन के बीच कई मुद्दों पर विवाद सामने आते रहे। 1980 की बात है, जब इंदिरा गांधी ने तेजी बच्चन से नजदीकी के बावजूद अभिनेत्री नर्गिस को राज्यसभा भेजने का फैसला किया। इंदिरा गांधी के छाेटे बेटे की पत्नी मेनका गांधी द्वारा निकाले गए एक मैगजीन सूर्या में छपे एक कॉलम के अनुसार,  इंदिरा गांधी के इस कदम से तेजी नाराज हो गईं थीं। हालांकि, इंदिरा ने अपने फैसले को पूरी तरह सही ठहराया था। एमएल फोतेदार के द्वारा 2015 में लिखे गए एक संस्मरण के अनुसार, “ऐसा लगता है कि इंदिरा और तेजी के बीच का रिश्ता लंबे समय से तनावग्रस्त हो गया था। इंदिरा गांधी ने राजीव गांधी को चेतावनी दी थी कि अमिताभ बच्चन को राजनीति में न उतारें। यह चेतावनी इंदिरा गांधी ने अपनी हत्या 31 अक्टूबर 1984 से कुछ दिनों पहले दी थी। उस समय राजीव गांधी ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी के महासचिव थे। इंदिरा गांधी ने उस समय संसद के सदस्य अरुण नेहरू और उनके (फोतेदार) के साथ राजीव गांधी को बुलाया था।”

फोतेदार के मुताबिक, “मीटिंग के दौरान संसदीय चुनाव पर चर्चा करते हुए इंदिरा ने राजीव गांधी को भविष्य में दो चीजें न करने की सलाह दी थी। उसमें पहला ये था कि तेजी बच्चन के बेटे अमिताभ को कभी राजनीति में न लाएं। साथ ही यह भी कहा था कि ग्वालियर के पूर्व महाराजा माधवराव सिंधिया को साथ रखे।”

रिपोर्ट के अनुसार, जब 1984 के लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी ने अमिताभ बच्चन को टिकट दिया, तब फोतेदार समझ गए कि आखिर इंदिरा जी ने क्यों मना किया था। लेकिन राजीव गांधी नहीं माने। फोतेदार ने बताया, “मुझे भी यह जानकारी मिल रही थी कि मंत्रालय में अधिकारियों के तबादले और नियुक्ति में अमिताभ हस्तक्षेप कर रहे थे। कई सारे वरिष्ठ नेताओं ने भी इस बात की शिकायत की थी। इलाहाबाद शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों, न्यायाधीशों और वकीलों की जगह है। लेकिन, अमिताभ ने अपने निर्वाचन क्षेत्र में उस व्यक्ति को चार्ज दिया, जिसने लोगों को गंभीरता से नहीं लिया।” उन्होंने दावा किया कि उन्होंने इस बारे में राजीव गांधी को नहीं बताया। अमिताभ सिर्फ उत्तर प्रदेश की सरकार में ही नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र की सरकार में भी हस्तक्षेप कर रहे थे।

राजीव गांधी के राजनीतिक सचिव रहे फोतेदार ने अमिताभ बच्चन के इस्तीफे के दिन को याद करते हुए कहा था, “अमिताभ प्रधानमंत्री को देखने आए। उनके बीच बात हुई। उस समय दिन के करीब 2:45 बजे होंगे, तब मैं लंच पर जाने वाला था। उस समय प्रधानमंत्री ने मुझे बुलाया। अमिताभ हमेशा की तरह कुर्ते-पायजामे में दिख रहे थे। हम अंदर गए। पीएम कुर्सी पर बैठे। उनके दाहिनी ओर अमिताभ और बाईं ओर मैं बैठा। इसके बाद राजीव जी ने अमिताभ बच्चन से कहा कि फोतेदार आपका इस्तीफा चाहते हैं। यह मेरे और अमिताभ बच्चन दोनों के लिए हैरान करने वाला था। तब अमिताभ बच्चन ने कहा कि यदि फोतेदार जी मेरा इस्तीफा चाहते हैं तो मैं तैयार हूं। पेपर दीजिए। मुझे क्या लिखना है। इसके बाद उन्होंने पेपर पर अपना इस्तीफा लिखा, जिसे बाद में अध्यक्ष के पास भेजा गया और उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया।”