भारत के शिक्षक रणजीत सिंह डिसले को वैश्विक शिक्षक पुरस्कार (ग्लोबल टीचर प्राइज) से सम्मानित किया गया। उन्हें 10 लाख डॉलर (7.38 करोड़ रुपए) की पुरस्कार राशि मिली है। डिसले ने घोषणा की है कि वे अपनी पुरस्कार राशि में से आधी रकम शीर्ष 10 में जगह बनाने वाले उप-विजेताओं के साथ बाटेंगे।
पहली बार भारत के किसी शिक्षक को यह पुरस्कार मिला है। 32 साल के डिसले को विश्व के 140 देशों से 12 हजार से अधिक शिक्षकों में से चुना गया है। यूनेस्को और लंदन के वार्की फाउंडेशन द्वारा दिए जाने वाले इस पुरस्कार की राशि का बड़ा हिस्सा बांटने को लेकर उन्होंने कहा कि यह फैसला भावनाओं में बहकर नहीं, बल्कि सोच समझकर काफी पहले ही ले लिया था। उन्होंने कहा कि शिक्षक ‘इनकम’ के लिए नहीं ‘आउटकम’ के लिए काम करते हैं। हम सभी मिलकर समाज की दशा और दिशा बदल सकते हैं।’
रणजीत सिंह डिसले महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के परीतेवाड़ी के एक जिला परिषद प्राइमरी स्कूल में शिक्षक हैं। इसके अलावा वो 83 देशों में आॅनलाइन विज्ञान पढ़ाते हैं और एक अंतरराष्ट्रीय परियोजना चलाते हैं। इसके जरिए संघर्षशील युवाओं को शिक्षा के लिए साथ जोड़ा जाता है।
माइक्रोसॉफ्ट के ‘इनोवेटिव एजुकेटर एक्सपर्ट’ पुरस्कार और राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान के ‘वर्ष 2018 के सर्वश्रेष्ठ नवप्रवर्तक’ पुरस्कार से लेकर वैश्विक शिक्षक पुरस्कार तक- सब डिसले की प्रतिभा और समर्पण की कहानी बताते हैं। डिसले को ‘ग्लोबल टीचर’ पुरस्कार के लिए चुने जाने की घोषणा लंदन में आॅनलाइन समारोह में अभिनेता स्टीफन फ्राई ने की थी।
रैगिंग से परेशान होकर इंजीनियरिंग बीच में ही छोड़ने वाले डिसले को उनके पिता ने शिक्षक बनने की प्रेरणा दी। प्रशिक्षण पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद वह 11 साल पहले सूखाग्रस्त परीतेवाड़ी में जिला परिषद प्राथमिक शाला में शिक्षक नियुक्त हुए। स्कूल के नाम पर टूटी-फूटी इमारत, 110 छात्र और पांच शिक्षक लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
डिसले ने लड़कियों की शिक्षा पर जोर दिया और ‘क्विक रिस्पांस’ (क्यू आर) कोड पाठ्यपुस्तक लेकर आए, जो जिले से राज्य और फिर पूरे देश में लागू हो गई। इसमें छात्र क्यू आर कोड स्कैन कर आॅडियो, वीडियो व्याख्यान, कहानी और प्रोजेक्ट देख सकते थे।
शिक्षा को रोचक और मनोरंजक बनाने वाले डिसले के इन प्रयासों से स्कूल में छात्रों की उपस्थिति सौ फीसद रही। इस प्रयोग ने उन्हें जिले के सर्वश्रेष्ठ स्कूल का पुरस्कार दिलाया। अब अंतरराष्ट्रीय सम्मान भी। ‘ग्लोबल टीचर’ पुरस्कार के लिए प्रक्रिया करीब साल भर चली और कोरोना महामारी के कारण विलंब भी होता गया।
पहले प्रयास में नाकाम रहे डिसले इस बार सारी प्रक्रियाओं में खरे उतरते रहे। डिसले का मानना है कि शिक्षकों को नई पहल कर शिक्षा को रोचक बनाना चाहिए और सरकार से उनकी इतनी सी मांग है कि एक पूरी पीढ़ी को तैयार करने वाले शिक्षकों की आवाज सुनी जानी चाहिए।
डिसले के मुताबिक, इस मुश्किल वक्त में शिक्षक हर संभव कोशिश कर रहे हैं कि हर बच्चे को उसका शिक्षा का जन्मसिद्ध अधिकार मिले। इस पुरस्कार के लिए जजों ने पाया कि डिसले ने यह सुनिश्चित किया कि लड़कियां स्कूल आ सकें और बाल विवाह का सामना न करें। इसके साथ-साथ लड़कियों को अच्छे परिणाम दिलाने में उन्होंने मेहनत की।