भारत सरकार ने 21 जुलाई को लोकसभा में खुलासा किया कि जनवरी से जून तक 87,000 से ज़्यादा भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ने का फैसला लिया है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यह जानकारी साझा करते हुए बताया कि 2022 में कुल 2.26 लाख भारतीयों ने जबकि 2021 में 1.63 लाख और 2020 में 85,256 ने अपनी नागरिकता छोड़ दी है
। नागरिकता छोड़ने वाले इन लोगों न ने अमेरिका और जर्मनी से लेकर पाकिस्तान और टोंगा तक 135 देशों की नागरिकता लेने का विकल्प चुना है। यह डेटा लोकसभा में सांसद कार्ति चिदंबरम के एक प्रश्न के जवाब में दिया गया था।
क्यों देश छोड़ रहे हैं यह लोग? विदेश मंत्री ने क्या कहा?
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने चिदंबरम के सवाल के जवाब में कहा, “पिछले दो दशकों में ग्लोबल वर्कप्लेस की खोज करने वाले भारतीय नागरिकों की संख्या महत्वपूर्ण रही है। उनमें से कई ने व्यक्तिगत सुविधा के रहते से विदेशी नागरिकता लेने का विकल्प चुना है। सरकार इन आंकड़ों पर नज़र रखे हुए और ‘मेक इन इंडिया’ पर कई पहल की जा रही हैं, जिससे भारत की प्रतिभा को यहीं निखरने का मौका मिलेगा।”
क्या रहे हैं आंकड़े
पिछले दशक में विदेशी नागरिकता लेने वाले भारतीयों की संख्या काफी स्थिर रही है। उदाहरण के लिए 2011 में 122,819 लोगों ने अपनी भारतीय नागरिकता छोड़ने की मांग की है। 2018 में यह संख्या मामूली रूप से बढ़कर 134,561 हो गई थी।
हालांकि COVID-19 महामारी के बाद इस संख्या में काफी इजाफा हुआ है। विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2022 में 225,620 लोगों ने अपनी भारतीय नागरिकता छोड़ दी थी।
विदेश मंत्री ने कहा कि एक भारतीय नागरिक के बाहर जाने के बाद भी हम देश के विकास के लिए संबंध बनाएंगे। उन्होंने कहा, “सरकार के प्रयासों का उद्देश्य विशेष रूप से अच्छे विचारों और रायों का आदान-प्रदान को इस तरह से प्रोत्साहित करना है जो भारत के राष्ट्रीय विकास में योगदान दे।”