पुलवामा आतंकी हमले में अर्धसैनिक बल सीआरपीएफ के 40 जवानों के सर्वोच्‍च बलिदान के बाद एक बार फिर से ऐसे जवानों को शहीद का दर्जा देने की मांग उठी है। साथ ही उनके परिजनों को सेना की तर्ज पर सुविधाएं मुहैया कराने की भी मांग की गई है। ऐसे में सवाल उठता है कि देश की सुरक्षा में प्राण न्‍यौछावर करने वाले जवानों को सरकार शहीद का दर्जा क्‍यों नहीं देती है? केंद्र सरकार ने वर्ष 2017 में सूचना का अधिकार कानून के तहत दाखिल अर्जी पर इसको लेकर अपना रुख स्‍पष्‍ट किया था। सूचना का अधिकार कानून (RTI) के तहत दी गई अर्जी पर रक्षा और गृह मंत्रालय ने चौंकाने वाली जानकारी दी थी। दोनों मंत्रालयों ने बताया कि सेना या पुलिस में ‘शहीद’ शब्‍द का उल्‍लेख ही नहीं है। कार्रवाई के दौरान जान गंवाने वाले जवानों के लिए रक्षा मंत्रालय और गृह मंत्रालय अलग-अलग शब्‍दों का इस्‍तेमाल करता है। दरअसल, RTI अर्जी दाखिल करने वाले शख्‍स ने गृह मंत्रालय से कानून और संविधान के मुताबिक शहीद शब्‍द का अर्थ और विस्‍तृत परिभाषा पूछा था। इसके अलावा इस शब्‍द के दुरुपयोग पर दंड के प्रावधानों के बारे में भी जानकारी मांगी गई थी।

शुरुआत में यह अर्जी गृह और रक्षा मंत्रालय के विभिन्‍न अधिकारियों के बीच घूमती रही। संतोषजनक जवाब न मिलने पर RTI कार्यकर्ता ने केंद्रीय सूचना आयोग के समक्ष अर्जी लगाई थी। इसके बाद इस मामले की सूचना आयुक्‍त की पीठ के समक्ष सुनवाई हुई थी। इस दौरान रक्षा मंत्रालय ने बताया कि कार्रवाई के दौरान जान गंवाने वाले जवानों के लिए शहीद के बजाय बैटल कैजुअल्‍टी (युद्ध में मौत) शब्‍द का प्रयोग किया जाता है। वहीं, गृह मंत्रालय ऐसे जवानों के लिए ‘ऑपरेशंस कैजुअल्‍टी’ शब्‍द का इस्‍तेमाल करता है। इन दोनों मामलों में कोर्ट-ऑफ-इन्‍क्‍वायरी की रिपोर्ट आने के बाद ही जवानों को संबंधित श्रेणी में डाला जाता है। सूचना का अधिकार कानून के तहत सीआईसी RTI से जुड़े मामलों का निपटारा करने वाली सर्वोच्‍च अपीलीय संस्‍था है। बता दें कि आतंकवादी, नक्‍सली, सीमा पार से गोलीबारी या उग्रवादी हमलों में मारे जाने वाले सेना या अर्धसैनिक बल के जवानों को आमतौर पर ‘शहीद’ कह कर संबोधित किया जाता है। रक्षा और गृह मंत्रालय के जवाब से यह स्‍पष्‍ट हो गया कि ‘शहीद’ शब्‍द का कोई कानूनी आधार ही नहीं है।

कोर्ट भगत सिंह को शहीद का दर्जा देने से कर चुका है इनकार: शहीद का दर्जा देने का मामला हाई कोर्ट भी जा चुका है। दरअसल, वर्ष 2017 में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को शहीद का दर्जा देने की मांग को लेकर दिल्‍ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी। हाई कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि अदालत इस तरह का निर्देश जारी नहीं कर सकता है। इससे पहले कोर्ट ने याची से पूछा था कि क्‍या इस तरह के कानूनी प्रावधान हैं, जिसके तहत कोर्ट इस तरह का आदेश जारी कर सकता है।