उन्होंने संयम और ‘युद्ध जैसे हालात’ को खत्म करने का आह्वान करते हुए कहा कि भारत और पाकिस्तान को सीमाओं पर मौजूदा टकराव के बढ़ने के खतरनाक परिणामों को महसूस कर संवाद के माध्यम खोलने चाहिए।मुख्यमंत्री ने लक्षित हमलों को लेकर टिप्पणी करते हुए कहा कि शांति से जम्मू-कश्मीर के लोगों के सबसे ज्यादा हित जुड़े हैं। उन्होंने कहा, ‘हिंसा के कारण जम्मू-कश्मीर के लोगों ने काफी नुकसान उठाए हैं और हम इसके खतरों एवं परिणामों से अच्छी तरफ वाकिफ हैं।’ महबूबा ने कहा, ‘जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए सीमा और अंदरूनी हिस्सों में शांति काफी महत्त्वपूर्ण है और मैं उम्मीद करती हूं कि दोनों देशों का राजनीतिक नेतृत्व इसे उसी भावना के साथ लेगा।’ उन्होंने कहा, ‘अंतहीन दुश्मनी झेल रहे भाइयों की तरह भारत एवं पाकिस्तान छह दशकों से झगड़ रहे हैं और इस दुश्मनी को एक परिपक्व, सकारात्मक रिश्ते में बदलना मुश्किल होगा। लेकिन लगातार जारी दुश्मनी के परिणाम और भी बुरे होंगे।’
महबूबा ने कहा, ‘परमाणु हथियार संपन्न पड़ोसी देशों को गरीबी उन्मूलन सहित सामाजिक विकास के क्षेत्रों में सहयोग करना चाहिए। बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं व ऊर्जा जरूरतों के साथ और नए, ज्यादा विविधतापूर्ण बाजारों व व्यापार अवसरों की जरूरत के साथ संकटग्रस्ट क्षेत्र का भविष्य शत्रुता की बजाए आम आर्थिक हितों द्वारा परिभाषित करना होगा।’ उन्होंने नौ दिसंबर, 2015 को इस्लामाबाद में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अजीज के बीच हुई बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान की भावना को पुनर्जीवित करने का आह्वान किया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि बातचीत का कोई विकल्प नहीं है और इतिहास गवाह है कि दो युद्ध करने के बाद भी भारत और पाकिस्तान को अपने मुद्दों के हल के लिए बार बार वार्ता की मेज पर लौटना पड़ा। उन्होंने कहा, ‘मुझे यकीन है कि क्षेत्र में बने हुए निराशाजनक माहौल के बीच मुद्दों का शांतिपूर्र्ण तरीकों से हल ही एकमात्र उपाय होगा और दोनों देशों के राजनीतिक नेतृत्व को नए संकल्प के साथ शांति व सुलह की प्रक्रिया बहाल करनी होगी।’ महबूबा ने कहा, ‘द्विपक्षीय रूपरेखा के जरिये अपनी समस्याओं का हल करना दोनों देशों के हित में होगा क्योंकि अंतरराष्ट्रीय ताकत की राजनीति के जोखिम वाले मानकों को देखते हुए आगे बढ़ने का यही एक तरीका है।’