भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 में हुए युद्ध के दौरान दोनों देशों को काफी नुकसान हुआ था। इसी कड़ी में 8-9 दिसंबर, 1971 की रात को पाकिस्तानी वायुसेना द्वारा की गई भारी बमबारी के बाद भुज एयरबेस पर एक हवाई पट्टी (Airstrip) नष्ट हो गई थी। इसके बाद पास के एक गांव की लगभग 300 महिलाओं ने भुज एयर बेस पर 4 किलोमीटर लंबी हवाई पट्टी की मरम्मत के लिए तीन दिनों तक 12-12 घंटे काम किया था।
4 दिसंबर 1971 को भी भुज एयरबेस पर बमबारी की गई थी लेकिन 8-9 दिसंबर की रात को हुए हमले के बाद मरम्मत के लिए रखे गए मजदूरों को अपनी जान बचाने के लिए भागना पड़ा था। बाद में 9 दिसंबर को भुज से करीब 5 किलोमीटर दूर माधापर गांव की महिलाएं देश को बचाने के लिए बेस पर पहुंचीं।
जब भुज रनवे ठीक करने उतरीं महिलाएं
माधापर की 80 वर्षीय कनबाई शिवजी हिरानी इन स्वयंसेवकों में से एक थीं। गांव में उनके दो कमरों के घर के अंदर, एक शोकेस में 54 साल पहले उनके द्वारा किए गए बहादुरी भरे काम को याद करने वाली स्मृति चिन्हों की भरमार है। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया , “हवाई पट्टी पर (1971 में) तीन छेद थे जो मेरे घर जितने बड़े थे, साथ ही कई छोटे छेद भी थे।”
1971 में कानबाई 20 वर्ष की थीं, उन्हें याद है कि जब उन्होंने अपने पति और सास को हवाई पट्टी के पुनर्निर्माण में मदद करने के अपने संकल्प के बारे में बताया तो उन्होंने उनके विरोध को नजरअंदाज कर दिया था। 9 दिसंबर, 1971 को भोर होते ही एक वाहन ने करीब 50 माधापार महिलाओं को बेस पर उतारा। हालांकि, कनबाई के पति समेत पुरुष भी तीन दिनों तक सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे तक काम करते समय टरमैक पर मौजूद थे लेकिन वह कहती हैं कि वे केवल हमारा पीछा करने के लिए वहां थे, मदद करने के लिए नहीं।
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बिना मेहनताना लिए किया था महिलाओं ने काम
83 वर्षीय संबाई करसन खोखानी ने बताया, “वायुसेना के एक अधिकारी ने उन्हें क्षतिग्रस्त रनवे के बारे में बताया। पूरा रनवे देखने में ही हमें पूरा एक दिन लग गया। पहले तो हम डरे हुए थे लेकिन बाद में हमें एहसास हुआ कि अगर हम इसे ठीक नहीं करेंगे तो कोई और भी नहीं करेगा।”
स्थानीय स्वामीनारायण मंदिर के ट्रस्टी जादवजी वरसानी ने इन महिलाओं को इस खतरनाक कार्य के लिए स्वयंसेवा करने के लिए प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कहा, “शुरू में, मुझे महिलाओं को देश सेवा करने के लिए राजी करना पड़ा। जल्द ही अन्य महिलाएँ भी इसमें शामिल हो गईं। पारिश्रमिक लेने से इनकार करते हुए उन्होंने कहा कि हमें देश की सेवा का मौका मिला है। इससे ज़्यादा और कुछ नहीं चाहिए।”
पहले दिन महिला स्वयंसेवकों ने किया था बिना खाना खाए भुज रनवे पर काम
पहले समूह में शामिल कानबाई ने बताया कि अगले दिन करीब 250 और महिलाएं शामिल हुईं। विंग कमांडर कार्निक (सेवानिवृत्त) ने बताया कि स्वयंसेवक अपने परिवारों के विरोध के बावजूद भी वहाँ पहुँचे। पहले दिन महिलाएं बिना भोजन के ही आ गईं। भूख मिटाने के लिए उन्होंने गर्म पानी पिया। विंग कमांडर कार्निक को अगले दिन यह पता चला। वे कहते हैं, “जब हमने उन्हें भोजन दिया तो उन्होंने कहा कि स्वामीनारायण आंदोलन के अनुयायी होने के नाते वे बाहर का खाना नहीं खा सकते।” जिसके बाद स्थानीय लोगों ने स्वयंसेवकों के लिए सुखड़ी (एक पारंपरिक गुजराती मिठाई) और चिक्की बनाने के लिए गुड़, घी और गेहूं इकट्ठा किया।
अपने प्रशिक्षण को याद करते हुए कानबाई कहती हैं, “हमें बबूल के पेड़ों, रनवे के पास की वनस्पतियों या खाइयों में छिपने के लिए कहा गया था, और दूसरे सायरन के बाद ही अपने छिपने के स्थानों से बाहर निकलने के लिए कहा गया था। सायरन दिन में दो-तीन बार बजता था।” वह आगे कहती हैं, “जब मैं प्रधानमंत्री से मिली (26 मई को) तो मैंने उनसे कहा कि माधापार की महिलाएं जरूरत पड़ने पर अब भी देश की सेवा के लिए तैयार हैं।”
इंदिरा गांधी ने किया था रनवे बनाने वाली महिलाओं के साथ भोजन
94 साल कुंवरबाई जीना वर्सानी ने भी रनवे की मरम्मत में मदद की। अपने माधापार घर के बरामदे में चारपाई पर बैठीं कुंवरबाई बताती हैं कि उन्होंने रनवे पर रेत, सीमेंट और बजरी से गड्ढे भरे। उन्होंने कहा, “उस समय मेरे तीन बच्चों में से दो स्कूल जाते थे। जब मैं बेस पर थी तब मेरी सास ने तीसरे बच्चे की देखभाल की।”
माधापार के स्वयंसेवकों की वीरता की प्रशंसा करते हुए विंग कमांडर कार्निक याद करते हैं, “प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 24 दिसंबर, 1971 को भुज एयर बेस का दौरा किया था। युद्ध के बाद यह उनका एकमात्र एयर बेस था। उन्होंने माधापार की महिलाओं के साथ दोपहर का भोजन किया। जब पुरुषों ने रनवे की मरम्मत करने से इनकार कर दिया तो ये अप्रशिक्षित महिलाएं काम करने के लिए आगे आईं और उन्होंने क्या शानदार काम किया।”
हाल ही में 26 मई को भुज की अपनी यात्रा के दौरान, प्रधानमंत्री मोदी ने तीसरे भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान माधापार गांव की बहादुर महिलाओं को उनकी बहादुरी के लिए बधाई दी थी। यह युद्ध लगभग 15 दिनों तक चला था और बांग्लादेश के निर्माण के साथ समाप्त हुआ था। पढ़ें- पाकिस्तान के लिए जासूसी करने के आरोप में एक और गिरफ्तार