भारत ने सबमरीन से लॉन्च की जा सकने वाली न्यूक्लियर क्षमता वाली बैलस्टिक मिसाइल (SLBM) के-4 का परीक्षण किया है। इसे न्यूक्लियर क्षमता वाले पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत से फायर करके टेस्ट किया गया। इसे डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) ने विकसित किया है। हालांकि, डीआरडीओ ने इस टेस्ट पर आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा है। सूत्रों के मुताबिक, यह परीक्षण पूरी तरह कामयाब रहा। बता दें कि इस मिसाइल के टेस्ट को लेकर अंतरराष्ट्रीय दबाव भी था, शायद तभी इसे लेकर चुप्पी बरती जा रही है। दावा किया जा रहा है कि यह मिसाइल सिस्टम बेहद खतरनाक है और दुनिया में अपने किस्म का पहला है।
सूत्रों के मुताबिक, यह टेस्ट बीते 31 मार्च को बंगाल की खाड़ी में किया गया। टेस्ट स्ट्रैटेजिक फोर्सेज कमांड (SFC) के अधिकारियों की देखरेख में हुआ। डीआरडीओ ने भी मदद की। मिसाइल को पानी के 20 मीटर नीचे से दागा गया। लक्ष्य को भेदने से पहले मिसाइल ने 700 किमी की दूरी तय की। यह मिसाइल 3500 किमी दूरी तक के लक्ष्य को भेद सकता है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह टेस्ट आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम तट से 45 नॉटिकल मील दूर समुद्र में किया गया। टेस्ट के दौरान डमी पेलोड का इस्तेमाल किया गया। जानकारों का मानना है कि के-4 मिसाइल को अभी दो और तीन बार और ट्रायल से गुजरकर विकसित होना है ताकि इसे सेना में शामिल किया जा सके।
इससे पहले, सात मार्च को इस मिसाइल का डमी टेस्ट फायर किया गया था। बीते साल नवंबर में अरिहंत से के-15 मिसाइल के प्रोटोटाइप का भी कामयाब टेस्ट हुआ था। के-4 का छोटा वर्जन ही के-15 है। बाद में इसका नाम बदलकर B-05 कर दिया गया। यह अब सेना में शामिल किए जाने के लिए तैयार है। डीआरडीओ अब के-5 मिसाइल विकसित कर रहा है, इसकी क्षमता 5000 किमी होगी जो चीन के भीतरी हिस्सों में स्थित लक्ष्य को भी भेदने की क्षमता होगी।
के-4 की खासियत
ऑपरेशनल रेंज-3500 किमी
लंबाई-12 मीटर
चौड़ाई-1.3 मीटर
वजन-17 टन
ढोए जा सकने वाले आयुध का वजन-2000 किलो
>रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि के-4 मिसाइल में बूस्ट ग्लाइड फ्लाइट प्रोफाइल्स का फीचर है। इसकी मदद से यह किसी भी एंटी बैलेस्टिक मिसाइल सिस्टम को चकमा दे सकता है।
>इसके नेविगेशन (दिशासूचक) सिस्टम में सैटेलाइट अपडेट्स की भी व्यवस्था है, जिसकी वजह से लक्ष्य को सटीक तौर पर भेदना सुनिश्चित है।
>इस मिसाइल को अभी वास्तविक नाम नहीं मिला है। यह के-4 के-फैमिली के मिसाइल का सदस्य है। इस सीरीज के SLBM मिसाइलों का नाम पूर्व राष्ट्रपति और वैज्ञानिक डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर किया गया है।
>के-4 मिसाइल को खासतौर पर अरिहंत के लिए ही विकसित किया गया है। परमाणु क्षमता वाली अग्नि-3 मिसाइल को इस सबमरीन में फिट होने लायक छोटा नहीं बनाया जा सका।
आईएनएस अरिहंत की खासियत
111 मीटर लंबे आईएनएस अरिहंत में 17 मीटर व्यास वाला ढांचा है। इसमें चार सीधी लॉन्च ट्यूब लगी हुई हैं। इनमें 12 छोटी K-15 जबकि चार बड़ी K-4 मिसाइलें रखी जा सकती हैं। आईएनएस पनडुब्बी में 85 मेगावॉट क्षमता वाला न्यूक्लियर रिएक्शन लगा हुआ है। यह पनडुब्बी सतह पर 12 नॉट से 15 नॉट की स्पीड से चल सकती है। पानी के अंदर इसकी स्पीड 24 नॉट तक है। इसमें 95 लोग शामिल हो सकते हैं।

