गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प में 20 भारतीय जवानों के शहीद होने के बाद से एलएसी पर माहौल गरमा गया है और स्थिति काफी तनावपूर्ण है। हालात को देखते हुए माना जा रहा है कि कभी भी दूसरी झड़प हो सकती है और स्थिति गंभीर हो सकती है।
बता दें कि गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प में सैनिकों की मौत भारत-चीन बॉर्डर पर 45 साल में हुई पहली मौत थी। साल 1993 में भारत और चीन के बीच यह समझौता हुआ था कि दोनों देश सीमा पर हथियारों का इस्तेमाल नहीं करेंगे लेकिन गलवान घटना के बाद से बातचीत से शांति बहाल करने के प्रयासों को झटका लगा है।
पूर्व थलसेना अध्यक्ष जनरल वीपी मलिक ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि “यदि सीमा पर शांति नहीं होती है तो ऐसी आशंका है कि हिंसा की और घटनाएं हो सकती हैं। जब सैनिक आमने-सामने हो और बहुत ज्यादा तनाव, गुस्सा हो तो छोटी सी चिंगारी भी आग बन सकती है।”
सेना के अधिकारियों के मुताबिक 15 जून की रात हुई झड़प के दौरान सैनिकों के पास हथियार थे लेकिन एलएसी को लेकर हुए समझौते के तहत उन्होंने इनका इस्तेमाल नहीं किया। पूर्व सैन्य अधिकारियों में इस बात से खासी नाराजगी है कि झड़प के हालात में हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया गया।
माना जा रहा है कि भारत और चीन के सैनिकों के बीच लद्दाख के पैगोंग त्सो इलाके में झड़प होने का सबसे ज्यादा खतरा है। सैटेलाइट इमेज से पता चला है कि चीन ने फॉरवर्ड पोजिशन पर नई चौकियां बना ली हैं। गुरुवार से लद्दाख में मिलिट्री लेवल पर कोई बातचीत नहीं हुई है। इससे स्थिति और भी गंभीर बनी हुई है।
पूर्व आर्मी चीफ जनरल बिक्रम सिंह का कहना है कि मिलिट्री लेवल की बातचीत से कोई खास हल नहीं निकला है। ऐसे में कूटनीतिक और राजनैतिक स्तर पर बातचीत के द्वारा ही कोई परिणाम निकलने की उम्मीद की जा सकती है।
1967 में नाथू ला में भारत चीन की सेनाओं के बीच झड़प हो चुकी है लेकिन तब यह झड़प एक जगह हुई थी और दोनों तरफ से सीमित मात्रा में हथियारों का इस्तेमाल किया गया था। लेकिन अब स्थिति ऐसी है कि लद्दाख में ही कई जगह पर दोनों सेनाएं आमने सामने हैं और किसी भी तरह की झड़प युद्ध का रुप ले सकती है। इसकी वजह आज की आधुनिक हथियार हैं, जिन्हें कुछ समय में ही सीमा पर तैनात किया जा सकता है। बता दें नाथू ला में हुई झड़प में भारत के 88 जवान शहीद हुए थे, वहीं चीन को इस झड़प में 340 जवान खोने पड़े थे।