भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद को लेकर दोनों देशों में तनाव चरम पर है। इससे पहले 1962 में चीन के हाथों भारत को हार का सामना करना पड़ा था। हालांकि, भारत ने 1967 में हुई लड़ाई में चीन को धूल चटा दी।

1962 की जंग भारतीय सेना के इतिहास में एक शर्मनाक कहानी के रूप में दर्ज है। इस बारे में बात करने पर लोगों का दिल टूट जाता है। न्यूज एजेंसी एएनआई ने बताया कि किस तरह से भारत ने 1967 में 1962 की जंग में मिली हार का बदला लिया था। भारत के तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू ने 1954 में चीन के साथ पंचशील समझौता किया था। इसके बाद से ही चीन ने भारत के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया।

समझौते के तहत तिब्बत में चीन के शासन को स्वीकार कर लिया गया। उस समय दलाई लामा ही तिब्बत के मुखिया थे। भारत की तरफ से इसी समय हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा दिया गया। साल 1959 में चीन ने अक्साई चीन इलाके में पेट्रोलिंग कर रहे 10 भारतीय पुलिसकर्मियों पर फायरिंग की। इसके बाद चीन ने अक्साई चीन पर अपना अधिकार जमा लिया। उन्होंने तिब्बत को चीन से जोड़ने वाली सड़का निर्माण भी कर लिया।

20 अक्टूबर 1962 को चीन की सेना लद्दाख में दाखिल हुई। इस दौरान उन्होंने मैकमोहन लाइन को भी पार कर लिया। उन्होंने 17 नवंबर को अरुणाचल प्रदेश के सेला पास और बोमडिला पास से हमला कर दिया। उस समय सर्दियों का मौसम था। हमले के दौरान भारतीय सैनिक गर्मियों वाली वर्दी में चीनी सैनिकों का जवाब दे रहे थे।

भारतीय सैनिकों को द्वितीय विश्व के समय के पुराने हथियार थे। उस समय बीएम कौल सेना प्रमुख थे। उन्हें इसी युद्ध के दौरान हटा भी दिया गया। 19 नवंबर को चीन ने अरुणाचल प्रदेश पर कब्जा कर लिया। साथ ही उसने एकपक्षीय युद्धविराम की भी घोषणा कर दी। यह भारत के लिए बड़ा झटका था। बाद में चीन ने अपनी सेना बुला ली और 1959 की स्थिति को बहाल कर दिया गया।

62 की जंग के बाद चीन ने 1967 में फिर वैसी ही हिमाकत की लेकिन इस बार उसका मुंहतोड़ जवाब दिया गया। 11 सितंबर 1967 को चीन की पीएलए के सैनिकों ने नाथू ला में भारतीय सेना की चौकियों पर हमला कर दिया था। यह जगह तिब्‍बत से सटी हुई है। भारत ने इसका करारा जवाब दिया। भारत की तरफ से तोप से हमला शुरू कर दिया गया।

इस हमले में चीन के करीब 400 सैनिक मारे गए। चीनी सेना को उस समय भारतीय सेना ने 20 किलोमीटर पीछे धकेल दिया था। भारत ने 15 सितंबर 1967 को चीन से अपने सैनिकों के शव ले जाने के लिए कहा। भारत ने नाथू ला बॉर्डर को हासिल करने में सफलता हासिल की। उस समय भारत के बहादुर जनरल सगत सिंह राठौर ने भारत सरकार के उस आदेश को मानने से ही इनकार कर दिया था कि नाथू ला एक स्वाभाविक बॉर्डर है।