भारत ने दक्षिण कोरिया के साथ हजारों करोड़ रुपये मूल्‍य का करार रद कर दिया है। 32 हजार करोड़ रुपये की इस परियोजना के तहत समंदर में बारूदी सुरंगों को निष्क्रिय करने के लिए माइन-स्‍वीपर विकसित किए जाने थे। करार के रद होने से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को करारा झटका लगा है। पीएम मोदी ने भारत में मैन्‍यूफैक्‍चरिंग सेक्‍टर को बढ़ावा देने की कोशिशों के तहत इस अभियान की शुरुआत की है। इसके तहत भारत को भविष्‍य में आयातक के बजाय निर्यातक देश बनाने का लक्ष्‍य रखा गया है। ऐसे में हजारों करोड़ की परियोजना का रद होना इस अभियान के लिए कतई शुभ संकेत नहीं है।

जानकारी के मुताबिक, भारत और दक्षिण कोरिया के बीच समंदर में मौजूद बारूदी सुरंगों को नष्‍ट करने के लिए 32,000 करोड़ रुपये की लागत से विशेष युद्धपोत बनाने की परियोजना पर शुरुआती सहमति बनी थी। लेकिन, दोनों देशों के बीच लागत मूल्‍य और तकनीक हस्‍तांतरण को लेकर सहमति नहीं बन सकी। ऐसे में भारत ने इस परियोजना को ही रद करने का फैसला ले लिया। मीडिया रिपोर्ट में इसके अलावा अन्‍य मसलों पर भी आम राय नहीं बनने की बात कही गई है। भारतीय नौसेना को पूर्वी और पश्चिमी तट की सुरक्षा को पुख्‍ता करने के लिए 24 माइन-स्‍वीपर (माइन काउंटर मेजर वेसल्‍स या एमसीएमवी) की जरूरत है। नौसेना के पास महज चार एमसीएमवी हैं। इस समझौते के सफल होने पर गोवा शिपयार्ड में माइन-स्‍वीपर युद्धपोत विकसित किया जाता। हजारों करोड़ के इस करार को 2017 में ही अंतिम रूप देना था, लेकिन विभिन्‍न मुद्दों पर असह‍मति के कारण ऐसा संभव नहीं हो सका। अब गोवा शिपयार्ड को नए सिरे से वैश्विक टेंडर जारी करने को कहा गया है।

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यह खबर ऐसे समय आई है जब भारत हिंद महासागर में चीन की आक्रामक नीति की जवाबी तैयारी में जुटा है। इस क्षेत्र में कई बार चीनी पोत देखे जा चुके हैं। इससे रणनीतिक और सामरिक रूप से महत्‍वपूर्ण इस क्षेत्र में भारत की चिंताएं बढ़ गई हैं। इसके अलावा चीन श्रीलंका में भी लगातार अपनी पैठ बना रहा है। हाल में ही बीजिंग और कोलंबो के बीच हंबनटोटा बंदरगाह को लेकर करार हुआ है। चीन ने इसे 99 वर्षों के लिए लीज पर ले लिया है। कुछ दिनों पहले चीन द्वारा पाकिस्‍तान में नेवल बेस बनाने की रिपोर्ट भी सामने आ चुकी है। ऐसे में भारत भी अपनी नौसैन्‍य क्षमता को बढ़ाने में जुटा है। इसी नीति के तहत दक्षिण कोरिया के साथ माइन-स्‍वीपर विकसित करने के लिए भारत में परियोजना लगाने की तैयारी शुरू हुई थी।