India vs Bangladesh: त्रिपुरा के उनाकोटी जिले के कैलाशहर में भारत-बांग्लादेश अंतरराष्ट्रीय सीमा पर हमले में दो भारतीय किसान घायल हो गए है। इस मामले में कुछ बांग्लादेशी भी घायल हुए हैं। अधिकारियों ने बताया है कि इसमें से एक बांग्लादेशी की मौत भी हो गई है।
इंडियन एक्सप्रेस डॉट कॉम से बात करते हुए सीमा सुरक्षा बल के एक अधिकारी ने बताया कि सुबह कैलाशहर के हीराचेरा क्षेत्र में भारतीय किसानों का एक समूह कंटीले तारों की बाड़ के पार अपने खेतों में था, तभी बांग्लादेशी किसानों ने इसी तरह शून्य रेखा के निकट सीमा स्तंभों को पार कर लिया, जिसके चलते दोनों के बीच झगड़ा हो गया था।
BSF के अधिकारी ने दी जानकारी
इस मामले में बीएसएफ के एक अधिकारी ने बताया कि दोनों देशों के किसानों के बीच ये तीखी नोकझोंक जल्द ही हाथापाई में बदल गई थी, जिसके चलते बांग्लादेशियों द्वारा इस्तेमाल किए गए धारदार हथियारों के हमले से दो भारतीय किसान घायल हो गए थे। उन्होंने बताया कि इस झगड़े में कुछ बांग्लादेशी भी घायल हुए हैं और उनमें से एक की बांग्लादेश के सिलहट जिले में इलाज के दौरान मौत हो गई।
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किसान सीमा बाड़ के बाहर क्यों थे?
बता दें कि त्रिपुरा बांग्लादेश के साथ 856 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है, जिसमें भूमि आधारित और नदी आधारित सीमाएं शामिल हैं, जिनमें से अधिकांश कांटेदार तार की बाड़ से ढकी हुई हैं। 1971 के इंदिरा-मुजीब समझौते और 1975 में बीएसएफ और तत्कालीन बांग्लादेश राइफल्स (अब बांग्लादेश के बॉर्डर गार्ड) के बीच हस्ताक्षरित भारत-बांग्लादेश सीमा समझौते के प्रावधानों के कारण, अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर कोई नो-मैन्स-लैंड नहीं है। इसके बजाय समझौते के अनुसार, भारत द्वारा कांटेदार तार की बाड़ लगाई गई और बांग्लादेश द्वारा अपने-अपने क्षेत्रों के अंदर शून्य रेखा से 150 गज की दूरी पर सीमा स्तंभ स्थापित किए गए।
बाड़े के बाहर रहते है कई लोग
कांटेदार तार की बाड़ लगाने की प्रक्रिया करीब 21 साल पहले इंदिरा-मुजीब समझौते के तहत शुरू हुई थी, जिसका मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करना, घुसपैठ, उग्रवाद को रोकना और सीमा से संबंधित अपराधों को कम करना था। भारत के चुनाव आयोग के अनुसार, अकेले पश्चिमी त्रिपुरा संसदीय क्षेत्र में 1,500 लोग कांटेदार तार की बाड़ के बाहर रहते हैं। पूर्वी त्रिपुरा संसदीय सीट पर भी कुछ लोग बाड़ के बाहर रहते हैं, हालांकि उनके आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं।
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पांच दशक से अधिक समय बाद भी, कई परिवार पर्याप्त मुआवजे या आजीविका के अवसरों के बिना कांटेदार तार की बाड़ के बाहर अपनी पुश्तैनी जमीन पर जमे हुए हैं। ये जमीनें भारतीय क्षेत्र हैं, भले ही वे कांटेदार तार की बाड़ के पीछे स्थित हों। इसके विपरीत, सैकड़ों अन्य लोगों के पास बाड़ के बाहर कृषि भूमि है और वे अपने खेतों की देखभाल के लिए हर सुबह बीएसएफ के पास आते हैं।
दोनों देश के किसानों के बीच क्यों हुआ टकराव?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, रविवार की सुबह करीम अली और उनके भाई जमीर अली, BSF के साथ चेक इन कर गए और कुछ अन्य ग्रामीणों के साथ अपने खेतों की देखभाल करने के लिए बाड़ के बाहर चले गए। BSF और स्थानीय सूत्रों ने बताया कि ग्रामीणों की मुलाकात कुछ बांग्लादेशियों से हुई जो इसी तरह जीरो लाइन के पार उनके इलाके में आ गए थे।
BSF अधिकारी ने कहा कि इन बांग्लादेशी नागरिकों में से एक जिसके रिश्तेदार भारत में भी हैं, उन्होंने भारतीयों द्वारा उनके खेतों की देखभाल करने पर आपत्ति जताई और दावा किया कि यह जमीन उनकी है। इसके बाद दोनों पक्षों में तीखी नोकझोंक शुरू हो गई और जल्द ही यह हाथापाई में बदल गई। इससे पहले कि BSF के जवान बीच-बचाव कर पाते, दो भारतीयों पर धारदार हथियारों से हमला कर उन्हें घायल कर दिया गया। BSF ने भारतीयों को बचाया और उन्हें स्थानीय अस्पताल पहुंचाया, जहां उनका इलाज किया गया।
इस घटना के बाद सीमा पर तनाव व्याप्त है, खासकर इसलिए क्योंकि यह घटना विपक्षी कांग्रेस द्वारा बांग्लादेश की ओर कथित एकतरफा तटबंध निर्माण के विरोध में सीमा के करीब ‘लंबा मार्च’ आयोजित करने के ठीक एक दिन बाद हुई, जिससे मानसून के दौरान भारतीय क्षेत्र के बड़े हिस्से में संभावित रूप से जलमग्नता हो सकती है। हालांकि, BSF ने कहा कि क्षेत्र में स्थिति नियंत्रण में है और बल ने पहले ही फ्लैग मीटिंग में बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश के अधिकारियों के साथ इस मुद्दे को उठाया है। बांग्लादेश से संबंधित सभी खबरें पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।