संसद के मानसून सत्र का आज पहला दिन था। इस बीच पहले ही दिन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया है। हालांकि तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। इस बीच आपको बता दें कि पिछले साल इंडिया गठबंधन ने जगदीप धनखड़ को हटाने की कोशिश की थी। 10 दिसंबर 2024 को इंडिया गठबंधन के 60 सांसदों ने एक नोटिस दिया था और जगदीप धनखड़ को राज्यसभा चेयरमैन के पद से हटाने को कहा था।

हालांकि राज्यसभा के डिप्टी चेयरमैन हरिवंश ने नोटिस को ख़ारिज कर दिया था। बता दें कि आजाद भारत में पहली बार विपक्ष द्वारा किसी भी उपराष्ट्रपति के खिलाफ लाया गया यह पहला अविश्वास प्रस्ताव नोटिस था।

क्या था आरोप?

इंडिया गठबंधन ने राज्यसभा के सभापति धनखड़ पर सदन की कार्रवाई के दौरान पक्षपात का आरोप लगाया था। तब कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने कहा था कि इंडिया गठबंधन के पास उनके खिलाफ औपचारिक रूप से अविश्वास प्रस्ताव लाने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं था। बता दें कि 2024 के मानसून सत्र के दौरान विपक्ष प्रमुख रूप से कांग्रेस बिजनेसमैन गौतम अडानी के खिलाफ जेपीसी जांच की मांग कर रही थी। हालांकि इसको लेकर जयराम रमेश ने आरोप लगाया था कि संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने धनखड़ के सामने सदन में कहा था कि जब तक विपक्ष लोकसभा में अडानी का मुद्दा उठाएगा, हम राज्यसभा को नहीं चलने देंगे। जयराम रमेश ने कहा था कि इसमें चेयरमैन भी शामिल थे और इसके बाद अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था।

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उपसभापति ने कर दिया था ख़ारिज

तब राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने जगदीप धनखड़ के खिलाफ विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस को खारिज कर दिया था और तर्क दिया गया कि यह उपराष्ट्रपति को बदनाम करने और प्रचार पाने के लिए जल्दबाजी में तैयार किया गया था। हरिवंश ने कहा था कि इसमें तकनीकी खामियां थीं और अन्य कारणों के अलावा उनके नाम की वर्तनी भी गलत थी।

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उपराष्ट्रपति ने अपने इस्तीफे में क्या लिखा?

उपराष्ट्रपति ने अपने इस्तीफे में लिखा, “मैं संविधान के अनुच्छेद 67A के अनुसार अपने पद से इस्तीफा देता हूं। मैं भारत के राष्ट्रपति में गहरी कृतज्ञता प्रकट करता हूं। आपका समर्थन अडिग रहा और मेरा कार्यकाल शांतिपूर्ण और बेहतरीन रहा। मैं माननीय प्रधानमंत्री और मंत्रीपरिषद के प्रति भी गहरी कृतज्ञता व्यक्त करता हूं। प्रधानमंत्री का सहयोग और समर्थन अमूल्य रहा है और मैंने अपने कार्यकाल के दौरान उनसे बहुत कुछ सीखा है। माननीय सांसदों से जो मुझे स्नेह, विश्वास और अपनापन मिला, वह मेरी स्मृति में हमेशा रहेगा। मैं इस महान लोकतंत्र के लिए आभारी हूं कि मुझे इस महान लोकतंत्र में उपराष्ट्रपति के रूप में जो अनुभव और ज्ञान मिला, वह अत्यंत मूल्यवान रहा। यह मेरे लिए सौभाग्य और संतोष की बात रही है कि मैंने भारत की अभूतपूर्व आर्थिक प्रगति और परिवर्तनकारी युग में तेज विकास को देखा और उसमें अपनी भागीदारी निभाई। इस महत्वपूर्ण दौर में सेवा करना मेरे लिए सच्चे सम्मान की बात रही है। आज जब मैं इस पद को छोड़ रहा हूं तो मेरे दिल में भारत की उपलब्धियां और शानदार भविष्य के लिए गर्व और अटूट विश्वास है।”