नेताजी से जुड़ी फाइल्स को क्लासिफाइड करने की जल्दी में, केन्द्र सरकार ने अब तक 175 जबकि पश्चिम बंगाल सरकार ने 64 फाइलों को क्लासिफाइड किया है। रक्षा मंत्रालय ने अब तक आरटीआई आवेदनों और कोर्ट ऑर्डर्स के बावजूद किताब के कंटेंट का खुलासा नहीं किया है। केन्द्र सरकार की इजाजत पर इतिहासकार प्रफुल्ल चंद्र गुप्ता ने A History of the Indian National Army 1942-45 किताब लिखी थी।
इस किताब को छापने पर विभिन्न मंत्रालयों से राय मांगने की आखिरी कोशिश 2011 में हुई थी। 22 जून, 2011 को विदेश मंत्रालय के ज्वाइंट सेक्रेट्री गौतम बम्बावले ने एक नोट लिखा था, जिसमें मंत्रालय ने कहा था कि 60 साल बाद इस किताब को छापने से किसी भी देश के साथ रिश्ते खराब नहीं होंगे। इसलिए इसे छापने में कोई आपत्ति नहीं है।
किताब के छपने से विदेश मंत्रालय को कोई दिक्कत ना होने की बात कहते हुए बम्बावले ने नोट में लिखा, “किताब के कुछ पन्ने (186-191) विवादित हो सकते हैं, जिनमें जापान में एक विमान हादसे में नेताजी की मौत का जिक्र है। दुर्भाग्य से, इस संस्करण में यह बात साबित नहीं होती और सिर्फ यह कहा गया है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस शायद विमान हादसे से जिंदा बच निकले हों। इस मुद्दे पर, किताब का वर्तमान संस्करण इस विषय पर विवाद को खत्म नहीं करेगा।” 2011 से पहले विदेश मंत्रालय ने किताब का प्रारूप 1953 में देखा था, तब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू विदेश मंत्रालय का जिम्मा संभाल रहे थे। यह किताब मुखर्जी आयोग के निष्कर्षों का समर्थन करती हैं जिन्हें एक दशक पहले सरकार ने नकार दिया था।
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हादसे के बाद जांच के लिए बनाए गए दो आयोगों- शाहनवाज आयोग और खोसला आयोग का निष्कर्ष है कि नेताजी ताइपेई में मारे गए थे। लेकिन 2006 में संसद के पटल पर रखी गई मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था कि नेताजी अब भले ही दुनिया में ना हों, मगर उनकी मौत विमान हादसे में नहीं हुई। 2011 में विदेश मंत्रालय की राय इसलिए मांगी गई थी क्योंकि रक्षा मंत्रालय ने दिल्ली हाईकोर्ट को यह आश्वासन दिया था कि किताब जुलाई 2011 से पहले छाप दी जाएगी, मगर ऐसा हुआ नहीं।
मार्च 2012 में, दिल्ली हाईकोर्ट ने रक्षा मंत्रालय की उस अपील को ठुकरा दिया जिसमें उसने गुड़गांव के एक नागरिक चंद्रचूड़ घोष को आरटीआई के तहत किताब की एक प्रति दिए जाने के मुख्य सूचना आयुक्त के फैसले को चुनौती दी थी। रक्षा मंत्रालय का तर्क था कि वह किताब को छापने पर विचार कर रहा है, ऐसे में उसे किसी एक व्यक्ति को किताब मुहैया करा पाना संभव नहीं होगा। अदालत ने मुख्य सूचना आयुक्त के फैसले को सही ठहराया कि मांगी गई सूचना आरटीआई के दायरे से मुक्त नहीं है। अदालत ने अपने फैसले में कहा, “वर्तमान याचिका खारिज की जाती है। अपीलकर्ता (रक्षा मंत्रालय) ने कहा है कि वह किताब छापना चाहते हैं, इसलिए किताब की मूल कॉपी वादी को शायद मुहैया ना कराई जाए, लेकिन ऐसा तभी किया जा सकेगा अगर किताब को बिना किसी संपादन या अपडेशन के अपीलकर्ता चार महीनों के भीतर छाप दे। अगर किताब तय समय में नहीं छपी तो रक्षा मंत्रालय को किताब की मूल प्रति की एक कॉपी वादी को दो सप्ताह के भीतर मुहैया करानी होगी।”
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रक्षा मंत्रालय ने हाईकोर्ट के दो जजों की बेंच के आगे अपील दायर करने का फैसला किया, जिसपर सुनवाई जारी है। रक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया, “मामला कोर्ट में हैं और फैसला आने तक किताब छपने का सवाल ही नहींं उठता। मंत्रालय की तरफ से यह किताब छापना कठिन लगता है।”