65 साल में भारत दूसरी दफे मॉनसून से पहले (प्री मॉनसून) होने वाली बारिश का घोर अभाव देख रहा है। मौसम विभाग के द्वारा पेश आंकड़ों से पता चलता है कि अभी तक महज 99 मिलिमीटर की ही प्री मॉनसून बरसात हुई है। 1954 के अप्रैल और मई महीने में प्री मॉनसून बारिश 93.9 mm दर्ज की गई थी। बारिश की सबसे ज्यादा कमी महाराष्ट्र के मध्य, मराठवाड़ा और विदर्भ वाले क्षेत्रों में सबसे ज्यादा रही है। इनके अलावा कोंकड़-गोवा, गुजरात का सौराष्ट्र और कच्छ, तटीय कर्नाटक, तमिलनाडु और पुडुचेरी शामिल हैं।

वहीं, जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्से, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, कर्नाटक का आंतरिक हिस्से, तेलंगाना और रायलसीमा में भी प्री मॉनसून में कमी दर्ज की गई है। हालांकि, महाराष्ट्र की तुलना में इन इलाकों स्थिति थोड़ी बेहतर जरूर है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक अध्ययन से पता चला है कि बीते 100 वर्षों में महाराष्ट्र के इलाकों में बारिश लगातार कम होती गई है। थोड़ी सुकून वाली बात यह है कि यह ट्रेंड समूचे देश के संबंध में लागू नहीं होती। क्षेत्रों में बारिश का क्रम हालांकि बदलाव होता रहा है।

टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में मौसम विभाग के प्रमुख अधिकारी पुलक गुहाठाकुर्ता कहते हैं, “प्री मॉनसून बारिश कम होने की वजह से कई क्षेत्रों में पानी की भारी कमी हो जाती है। इसकी वजह से मिट्टी की नमी भी नहीं रहती और खेती का क्रम बिगड़ जाता है। पिछले 11 सालों से महाराष्ट्र में मॉनसूनी बारिश सिर्फ एक या दो महीने ही हो पाई है और वह भी काफी घनघोर वाली। नतीजा, बाढ़ के अलावा पानी की बर्बादी भी हो जाती है।”