रुस-यूक्रेन युद्ध से पहले तक भारत के आयात में रूसी तेल की हिस्सेदारी सिर्फ एक फीसद थी। एक साल के बाद यह हिस्सेदारी बढ़ कर 35 फीसद पर पहुंच गई है। इस समय भारत रूस से रोजाना 3,60,000 बैरल तेल की रोजाना खरीद कर रहा है। रूस के अलावा भारत सऊदी अरब और इराक से सबसे ज्यादा कच्चा तेल खरीद रहा है।

दूसरी ओर, अप्रैल 2022 से लेकर जनवरी 2023 के बीच भारत से यूरोपीय देशों को निर्यात किए जाने वाले परिशोधित पेट्रोलियम उत्पादों आंकड़ा बढ़ कर 1.16 करोड़ टन तक पहुंच गया है। यूरोपीय देशों को पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात में भारत की हिस्सेदारी बढ़कर 22 फीसद हो गई है। भारत से जिन 20 क्षेत्रों को परिशोधित पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात किया जाता है, उसमें यूरोपियन संघ शीर्ष पर पहुंच गया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल कूटनीति में भारत ने दो मोर्चे एक साथ साधे हैं।

यूरोपीय संघ से कारोबार

यूक्रेन पर हमले की प्रतिक्रिया में यूरोपियन संघ ने पिछले साल दिसंबर में रूसी कच्चे तेल पर लगभग प्रतिबंध लगा दिया था। दो महीने बाद उसके परिशोधित तेल उत्पादों की खरीद पर भी प्रतिबंध लगा दिए गए। प्रतिबंध से पहले तक यूरोप अपनी जरूरत का 30 फीसद तेल रूस से खरीदता था। रूसी तेल के आयात पर प्रतिबंध से यूरोपीय संघ समेत पूरे यूरोप में आपूर्ति की किल्लत हो गई।

यूरोप के लिए यह ज्यादा चिंता की बात थी, क्योंकि वह पहले से ही ऊंची महंगी दरों से जूझ रहा था। अब स्थिति यह है कि यूरोपीय बाजारों में रूस का तेल भारत के जरिए पहुंच रहा है। ऐसे में भारत की परिशोधन कंपनियों ने इसे मौके के तौर पर देखा। भारत से यूरोपीय संघ के देशों में निर्यात लगातार पांच महीने तक बढ़ता रहा। इस महीने यह 19 लाख टन तक पहुंच गया। अप्रैल 2022 से लेकर जनवरी 2023 भारत से यूरोप को निर्यात किया जाने वाला परिशोधित तेल निर्यात बढ़ कर 1.16 करोड़ टन तक पहुंच हो गया।

रूस से खरीद

अमेरिका और यूरोप की ओर से प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद रूस से बड़ी मात्रा में रियायती दाम पर भारत कच्चा तेल खरीद रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले तक भारत के आयात बास्केट में रूसी तेल की हिस्सेदारी एक फीसद थी। एक साल में यह हिस्सेदारी बढ़ कर 35 फीसद पर पहुंच गई। इस साल मार्च में रूसी उप प्रधानमंत्री अलेक्जेंडर नोवाक ने आंकड़ें जारी किए थे कि उनके देश ने एक साल में भारत को अपनी तेल बिक्री 22 फीसद बढ़ाई है।

भारत चीन और अमेरिका के बाद तेल का तीसरा बड़ा खरीदार है। रूस से बढ़ी आपूर्ति का फायदा भारतीय तेल परिशोधन कंपनियां उठा रही हैं। भारत दुनिया के बड़े तेल परिशोधन क्षमता वाले देशों में शामिल हो गया है। भारतीय कंपनियों की आपूर्ति में बढ़ोतरी से यूरोपीय बाजार में तेल का संकट बेकाबू नहीं हुआ, जिसकी काफी आशंका जताई जा रही थी। भारत की परिशोधन क्षमता इसकी घरेलू मांग से काफी ज्यादा है। यही कारण है अतिरिक्त आपूर्ति से यूरोपीय बाजार की ओर मुड़ गई है।

ऊर्जा संकट की दस्तक

दिलचस्प तथ्य यह है कि यूरोपीय देशों ने रूस से सस्ते में कच्चा तेल खरीदने के भारत के कदम पर असंतोष प्रकट किया था। यूरोपीय देशों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के दौरान भी भारतीय विदेश मंत्री समेत तमाम प्रतिनिधियों से आपत्ति जताई थी। दिसंबर 2022 में भारत आई जर्मनी की विदेश मंत्री एनेलिना बेरबाक ने जब रूस से तेल खरीदने पर भारत से शिकायत की थी तो भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि पिछले नौ महीने में यूरोपियन यूनियन ने जितना तेल खरीदा है, भारत ने उसका छठा हिस्सा ही खरीदा है और रूस से खरीद बंद नहीं होगी।

अब आज की स्थिति यह है कि यूरोपीय देशों को भारत से तेल मंगाने में कोई आपत्ति नहीं है। दरअसल, ऊर्जा संकट के आसन्न खतरे में यूरोपीय देशों के लिए भारत देवदूत सरीखा बनकर उभरा है। भारत एक भरोसेमंद आपूर्तिकर्ता के तौर पर उभरा है। अब अमेरिका और कई पश्चिमी देशों के लिए यह राहत की बात है कि भारत की आपूर्ति जारी रहे।

व्यापार घाटे का पेच

भारत अपने रक्षा उपकरणों के लिए रूस पर ज्यादा निर्भर है। दोनों देशों में यह समझ बनी है कि भारत जितने पैसे का हथियार खरीदता है, उसी मात्रा में भारत अपनी चीजों को रूस निर्यात करता है। धन का कोई वास्तविक लेन-देन नहीं होता। रूस से कच्चा तेल खरीदने के बाद स्थिति बदल गई है। भारत रूस से कच्चे तेल के अलावा खाने का तेल और उर्वरक भी आयात कर रहा है। लेकिन रूस से निर्यात में कमी आ रही है। रूस से आयात करीब चार सौ फीसद बढ़ गया है और निर्यात करीब 14 फीसद कम हो गया। इसी दौरान भारत और रूस ने स्थानीय मुद्रा (रुपया और रूबल) में व्यापार करने का फैसला किया।

वोस्त्रो खाते

भारतीय रिजर्व बैंक ने जुलाई 2022 में ही इसकी घोषणा की थी और आरबीआइ ने रूसी बैंकों को भारत में वोस्त्रो खाते खोलने की अनुमति भी दे दी थी। वोस्त्रो खाते खुलने से भारत के साथ कारोबार करने वाले देशों को आयात या निर्यात करने पर डालर की जगह रुपए में भुगतान करने की सुविधा मिलती है। भारत में वोस्त्रो खाते खुल तो गए, लेकिन अब तक रूस के साथ रुपए में ज्यादा लेन-देन नहीं हो पा रहा। भारत का आयात ज्यादा होने के कारण रूस में भारतीय रुपया जमा होता जा रहा है। फिलहाल, दोनों देश इसका समाधार खोजने में जुटे हैं।

क्या कहते हैं जानकार

यूरोप के सामने अभी सबसे बड़ा संकट ऊर्जा की कीमतों में बढ़ोतरी है। भले ही रूसी तेल पर प्रतिबंध लगा हो, लेकिन यूरोप को रूसी ऊर्जा स्रोत पर निर्भर रहना होगा। तेल अब सीधे रूस से नहीं बल्कि भारत के जरिए पहुंच रहा है। ऊर्जा सुरक्षा ऐसा विषय है जिस पर सीधे कोई लाइन नहीं ली जा सकती।

  • अजय मल्होत्रा, रूस में भारत के पूर्व राजदूत

युद्ध ने ऐसी स्थिति बनाई है कि भारत जिस उत्पाद (पेट्रोलियम पदार्थ) का आयातक रहा है, अब उसका निर्यातक बनता जा रहा है। भारत तेजी से पेट्रोल के मूल्य आधारित उत्पाद की आपूर्ति का बड़ा हब बनता जा रहा है। इस स्थिति का आगे फायदा तभी मिलेगा, जब भारत अपनी परिशोधन क्षमता को और विस्तार दे।

  • प्रीति शरण, पूर्व राजनयिक