Madras High Court Judge: मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन ने हाल ही में एक वकील को कायर और कॉमेडी पीस कहकर चर्चा में हैं। उन्होंने एक आध्यात्मि दृष्टिकोण शेयर किया है। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति को बचाया जिसने एक दुर्घटना में अपना अपराध स्वीकार कर लिया था और यह इस बात का प्रमाण है कि वेद उनकी रक्षा करते हैं जो उनकी रक्षा करते हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, वह पिछले हफ्ते टी नगर के कृष्णास्वामी हॉल में आयोजित एक परेड में बोल रहे थे। ओम चैरिटेबल ट्रस्ट की तरफ से आयोजित किए गए इस कार्यक्रम का एक वीडियो अब सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। एक वकील के तौर पर अपने दिनों का एक किस्सा सुनाते हुए उन्होंने कहा, ‘मेरे एक शास्त्रीजी दोस्त उन्होंने सात साल तक वेदों का अध्ययन किया और वैदिक मूल्यों के अनुसार जिंदगी जी रहे हैं। वह मुझसे मिलने आए। वह एक दूसरे दोस्त के साथ आए थे और मेरे दोस्त शास्त्रीजी की आंखों में आंसू थे, वे बोल नहीं पा रहे थे।’
मेरा दोस्त खुलकर नहीं बोल पा रहा था – जस्टिस स्वामीनाथन
जस्टिस स्वामीनाथ ने वहां पर मौजूद लोगों से कहा कि उन्होंने उनसे खुलकर बात करने को बोला और वकील और मुवक्किल के बीच की तुलना डॉक्टर और मरीज के बीच बातचीत से की। उन्होंने कहा, ‘चूंकि उनका दोस्त खुलकर बात नहीं कर पा रहा था, तो दूसरे व्यक्ति ने समझाना शुरू किया। उसने कहा कि शास्त्रीगल को दोषी ठहराया गया है और 18 महीने की सजा सुनाई गई है। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था। वैदिक मूल्यों के अनुसार जीने वाले व्यक्ति के लिए ऐसा कैसे हो सकता है।’
SC समुदाय की गलियों से निकले मंदिर की रथ यात्रा
मेरे दोस्त ने सारा दोष अपने ऊपर ले लिया – जस्टिस स्वामीनाथन
जस्टिस के मुताबिक, यह घटना तब हुई जब शास्त्रीगल की बहन कुछ मंदिर देखना चाहती थीं। वह कार चला रही थीं और एक समय पर कार कंट्रोल खो बैठी और एक चाय की दुकान के पास खड़े एक व्यक्ति को टक्कर मार दी। उन्होंने कहा, ‘उस व्यक्ति की मौके पर ही मौत हो गई।’ उनकी बहन को अगले हफ्ते अमेरिका लौटना था, इसलिए शास्त्रीगल कथित तौर पर पुलिस स्टेशन गए और अपना गुनाह कबूल कर लिया। जस्टिस ने कहा, ‘उन्होंने पुलिस को बताया कि मैं ही गाड़ी चला रहा था, लापरवाही से। मेरे पास लाइसेंस था। उसने सारा दोष अपने ऊपर ले लिया। उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई, चार्जशीट दाखिल हुई और मामला अदालत में चला गया।’
स्वामीनाथन ने मौजूद लोगों को बताया, ‘वह पूरी पारंपरिक पोशाक, कुडुमी वगैरह पहनकर कोर्ट जाता था। शायद इसने भी कोई भूमिका निभाई होगी? आमतौर पर, ऐसे मामलों में अधिकतम छह महीने की कैद होती है। लेकिन उसे 18 महीने की सजा मिली। जिन मामलों में सजा तीन साल से कम होती है, उनमें आपको तुरंत जेल नहीं भेजा जाता। आप अपील कर सकते हैं और नतीजे के आधार पर ही सजा काट सकते हैं। इसलिए मैंने उससे पूछा कि उसने सजा सुनाए जाने से पहले मुझसे संपर्क क्यों नहीं किया। उसने कहा कि वह शर्मिंदा है।’
मेरे दोस्त का फैसला बहुत साहसी – जस्टिस स्वामीनाथन
इसके बाद जस्टिस स्वामीनाथन ने बताया कि कैसे उन्होंने अपने दोस्त को आश्वस्त किया और उसके इस कदम को अपनी बहन को मुसीबत से बचाने के लिए सारा दोष अपने ऊपर लेने का एक साहसी फैसला बताया। उन्होंने खुद मामले के डॉक्यूमेंट्स की समीक्षा की। जस्टिस स्वामीनाथन ने अपने भाषण में कहा, ‘मैं 26 साल तक वकील रहा और अब आठ साल से जज हूं। मैंने गवाहों के ऐसे बयान पहले कभी नहीं देखे। सभी छह गवाहों ने एक ही बात कही हम चाय की दुकान पर खड़े थे। एक मारुति कार तेजी से आई और एक आदमी को टक्कर मार दी। उसकी मौत हो गई।’ किसी ने भी यह नहीं बताया कि गाड़ी कौन चला रहा था। किसी ने यह नहीं कहा कि शास्त्रीगल गाड़ी चला रहे थे। अदालत में भी किसी ने उनकी पहचान नहीं की।’
इस एक बात पर उन्होंने मामला उठाया और अपीलीय न्यायालय में बहस की। उन्होंने कहा, ‘सौभाग्य से या भाग्य से, अपील की सुनवाई करने वाले जज मेरे एक सहपाठी थे। सवाल यह था कि, ‘इस आदमी को कैसे दोषी ठहराया जा सकता है जब इस बात का कोई सबूत ही नहीं था कि कार कौन चला रहा था और दोषसिद्धि पलट दी गई। मेरे दोस्त शास्त्री को बरी कर दिया गया।’ उन्होंने कहा, ‘तभी समझ आई। उस दिन मुझे यह बात समझ में आई, ‘अगर तुम वेदों की रक्षा करोगे, तो वेद तुम्हारी रक्षा करेंगे।’ तब तक मैंने ऐसी बातों को इतनी गंभीरता से नहीं लिया था। लेकिन उस पल ने मुझे बदल दिया।’
जस्टिस स्वामीनाथन ने दूसरा किस्सा भी सुनाया
जस्टिस स्वामीनाथन ने एक दूसरे किस्से का भी जिक्र किया। यह बादशाह नाम के एक सरकारी ड्राइवर का था। उन्होंने कहा, ‘जब मैं मदुरै में था, तो मैंने उससे कहा कि खाना खाकर दोपहर 1.30 बजे तक लौट आए। उसने कहा, ‘सर, आज शुक्रवार है। मुझे नमाज पढ़नी है। मैं यहां नया हूं और मुझे नहीं पता कि मस्जिद कहां है। इसमें ज्यादा समय लग सकता है।’ मैंने उसके उद्देश्य की स्पष्टता की तारीफ की।’ अन्ना यूनिवर्सिटी में यौन उत्पीड़न मामले को लेकर मद्रास हाई कोर्ट सख्त