Supreme Court Justice AS Oka: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय एस ओका ने शनिवार को इस बात पर आत्मनिरीक्षण करने की सख्त जरूरत पर बल दिया कि भारत में न्यायालयों ने नागरिकों की स्वतंत्रता और उसके विभिन्न पहलुओं की किस हद तक रक्षा की है। जिसकी गांरटी संविधान के अनुच्छेद 21 और 22 के तहत दी गई है। जस्टिस ओका ने विशेष रूप से निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार और गिरफ्तारी के विरुद्ध सुरक्षा उपायों का उल्लेख किया।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस ओका ने कहा कि हम जानते हैं कि संविधान के तहत बहुत सारे अधिकार दिए गए हैं। आपराधिक कानून के संदर्भ में निष्पक्ष सुनवाई की अवधारणा है जो अनुच्छेद 21 का हिस्सा है। संविधान के अनुच्छेद 22 में गिरफ्तारी के खिलाफ सुरक्षा उपाय दिए गए हैं। और आज, जब हमने अपने संविधान के अस्तित्व के 75 साल पूरे कर लिए हैं, तो हमें स्पष्ट रूप से विश्लेषण करना होगा कि हमारी अदालतें संविधान के तहत गारंटीकृत इन अधिकारों की कितनी रक्षा करती हैं।

जस्टिस ओका मुंबई में बॉम्बे बार एसोसिएशन द्वारा पूर्व अटॉर्नी जनरल की स्मृति में आयोजित तीसरे अशोक देसाई स्मारक व्याख्यान दे रहे थे। ओका ने कहा कि देसाई ने कहा था कि आपका काम अपनी पूरी क्षमता से बहस करने पर समाप्त होता है और आपको कभी भी इसका श्रेय नहीं लेना चाहिए। यह भावना फैसले के बाद सार्वजनिक स्वीकृति प्राप्त करने की वर्तमान प्रवृत्ति के विपरीत है।

इसके बाद उन्होंने भारतीय अदालतों में लंबित मामलों की भारी संख्या पर प्रकाश डाला, जो कि चिंताजनक आंकड़ों से पता चलता है। उन्होंने कहा कि भारत के विभिन्न उच्च न्यायालयों में कुल लंबित मामले लगभग 62.5 लाख हैं, जिनमें से 18.25 लाख आपराधिक मामले हैं। अकेले महाराष्ट्र में ही करीब 55 लाख मामले लंबित हैं, जिनमें 38 लाख आपराधिक मामले शामिल हैं। मुंबई में 6 लाख से ज़्यादा मामले मजिस्ट्रेट कोर्ट में और 46,000 से ज़्यादा मामले सेशन कोर्ट में लंबित हैं।

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उन्होंने जमानत आवेदनों के लंबित रहने पर भी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि बॉम्बे हाई कोर्ट में जमानत आवेदनों की संख्या पांच हजार से अधिक है, जो अदालतों के समक्ष कार्य की विशालता को दर्शाता है।

निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार पर जस्टिस ओका ने मुंबई हमले के आतंकवादी अजमल कसाब के मुकदमे का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि मुझे गर्व है कि हमारे देश ने कसाब (अजमल कसाब) को भी निष्पक्ष सुनवाई का मौका दिया।

हालांकि, उन्होंने बताया कि कई पीड़ितों को अपनी शिकायत दर्ज कराने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि कल्पना कीजिए कि एक आम आदमी पुलिस स्टेशन जाता है… लेकिन उसे अपराध दर्ज करवाने में बहुत मुश्किल होती है। उन्होंने कहा कि इस हताशा के कारण कई लोग न्यायिक उपायों की तलाश करते हैं, जिससे अदालतों पर बोझ और बढ़ जाता है।

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