Jammu-Kashmir News: बांदीपुरा में एशिया की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील वुलर है। विनाशकारी बाढ़ आ जाने के बाद यहां पर कमल के फूल पूरी तरह से मिट गए थे। इसके करीब 30 साल बाद अब एक बार फिर से यह कमल का घर बन रही है। अब्दुल रशीद डार कश्मीर के बांदीपुरा में वुलर झील के किनारे बैठे हुए हैं और वह इसे हैरानी से देख रहे हैं। उनके सामने गुलाबी कमलों का एक पूरा समुद्र है और वह पूरी तरह से खिले हुए हैं।
एक कमल को छूते हुए अब्दुल रशीद डार ने कहा, ‘मुझे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा। बचपन में मैं अपने पिता के साथ कमल के डंठल तोड़ने जाता था, लेकिन वो बहुत समय पहले की बात है। मुझे लगता था कि हमने अल्लाह का यह तोहफा हमेशा के लिए खो दिया है।’ यह पूरा बदलाव अपने आप नहीं हुआ है बल्कि वुलर कंजर्वेशन एंड मैनेजमेंट अथॉरिटी कें संरक्षण की बदौलत आया है। अथॉरिटी ने बाढ़ से इकट्ठा हुई गाद को साफ करने के लिए झील से गाद निकालने का काम शुरू कर दिया था।
झील में से हटाई गई गाद
वुलर कंजर्वेशन एंड मैनेजमेंट अथॉरिटी के जोनल ऑफिसर मुदासिर अहमद ने कहा, ‘पिछले कुछ सालों में जिन इलाकों से हमने गाद हटाई है, वहां कमल के फूल फिर से खिल रहे हैं। चूंकि, कमल के बीज गाद और मिट्टी में गहरे दबे हुए थे, इसलिए वे उग नहीं पाए। अब जब गाद हटा दी गई है, तो कमल फिर से उग आए हैं।’
डार के पिता करते थे खेती
डार के पिता कमल के स्टेम की खेती करते थे। उन्होंने कहा, यह एक चमत्कार है। बांदीपुरा और सोपोर कस्बों के बीच मौजूद और लगभग 200 वर्ग किलोमीटर में फैली यह झील कभी कमलों से भरी रहती थी। कमल के स्टेम को स्थानीय नादरू के नाम से जाना जाता है। यह कश्मीर में एक स्वादिष्ट व्यंजन हैं। कमल घाटी की डल और मानसबल झील में भी उगता है। यह इसके स्टेम की कटाई ही आजीविका का साधन है। इसकी कटाई का प्रोसेस काफी मुश्किल भरा है और किसान स्टेम को निकालने के लिए गर्दन तक पानी में उतरते हैं।
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वुलर झील के इकोसिस्टम को काफी नुकसान पहुंचा
बता दें कि सितंबर 1992 में कश्मीर में विनाशकारी बाढ़ आई। इसकी वजह से वुलर झील के इकोसिस्टम को काफी नुकसान पहुंचा। यहां पर भारी मात्रा में गाद जमा हो गई। इसकी वजह से कमल के पौधे दब गए और झील के प्रवाह पर काफी असर हुआ। यहां के लोगों के लिए यह रोजी-रोटी का नुकसान था। झील के किनारे बसे लंकरेशिपोरा गांव के रहने वाले गुलाम हसन रेशी ने कहा, ‘उस साल कमल पूरी तरह खिल चुका था। फिर हमने कमल को हमेशा के लिए खो दिया। कम से कम अब तक तो हम यही सोचते थे।’
वुलर कंजर्वेशन एंड मैनेजमेंट अथॉरिटी ने इकोसिस्टम को बनाए रखने के लिए एक प्रोजेक्ट शुरू किया। इसका एक बहुत ही हिस्सा गाद को निकालना था। उनकी यह मेहनत काफी रंग लाई। पिछले साल कमल के फूलों में फिर से जान आने के संकेत मिलने लगे। वुलर कंजर्वेशन एंड मैनेजमेंट अथॉरिटी के जोनल ऑफिसर मुदासिर अहमद ने कहा कि इस साल अथॉरिटी ने झील में कमल के बीज बिखेरे। गुलाम हसन रेशी ने कहा, ड्रेजिंग ने सब कुछ बदल दिया कई सालों तक, गांव वाले कमल के बीज झील में डालते रहे, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।’ अमरनाथ यात्रा के लिए तीर्थयात्री काफी जल्दबाजी में हैं। पढ़ें पूरी खबर…