पश्चिम बंगाल के रानीबंध ब्लॉक में 53 वर्षीय बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) हराधन मंडल ने आत्महत्या कर ली। बताया जा रहा है कि काम का अत्यधिक दबाव वहन न कर पाने के कारण उन्होंने यह कदम उठाया। रविवार को उनका शव स्कूल की एक कक्षा में पंखे से लटका हुआ मिला। इसी स्कूल में वह प्रधानाध्यापक (हेडमास्टर) के पद पर कार्यरत थे।

मौके से एक सुसाइड नोट भी बरामद हुआ है, जिसमें मंडल ने अपनी पूरी पीड़ा लिखी है। जानकारी के मुताबिक, मंडल नियमित शिक्षण कार्य के साथ-साथ राजा काटा क्षेत्र के बूथ नंबर 206 में बीएलओ के तौर पर वोटर वेरिफिकेशन का काम भी कर रहे थे। रविवार सुबह करीब 10 बजे मंडल घर से निकले थे। उन्होंने परिवार को बताया था कि उन्हें वोटरों से कुछ जरूरी दस्तावेज इकट्ठा करने हैं। लेकिन जब कई घंटों तक उनका कोई पता नहीं चला, तो परिजन उन्हें खोजते हुए स्कूल पहुंचे। वहां उन्होंने मंडल का शव पंखे से लटका हुआ पाया।

सुसाइड नोट में मंडल ने लिखा है कि अत्यधिक काम के दबाव के कारण उन्होंने यह फैसला लिया। उन्होंने लिखा, “यह दबाव अब मैं और नहीं झेल पा रहा हूं। इसके लिए मैं खुद जिम्मेदार हूं। मैं किसी को दोष नहीं दे रहा हूं। इसमें किसी और की कोई गलती नहीं है, गलती मेरी है।”

मंडल ने यह भी लिखा कि उन्होंने अपने बेटे से कभी मदद नहीं ली और बीएलओ से जुड़ा सारा काम खुद ही करते रहे। इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में मंडल के बेटे ने बताया कि उनके पिता पहले से ही कई शारीरिक बीमारियों से जूझ रहे थे। इसके बावजूद वह रात के तीन-चार बजे तक बीएलओ से जुड़ा काम करते रहते थे। इसके अलावा लगातार नए फॉर्म और जिम्मेदारियों के कारण उनका मानसिक तनाव बढ़ता जा रहा था, जिसे वह ज्यादा समय तक सहन नहीं कर पाए।

मंडल की पत्नी ने भी बताया कि बीमारी की वजह से पहले वह रात करीब नौ बजे सो जाते थे, लेकिन बीएलओ का काम शुरू होने के बाद वह पूरी रात जागकर काम करने लगे थे। मंडल की आत्महत्या के बाद राजनीतिक बयानबाजी भी शुरू हो गई है। तृणमूल कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी अभिषेक बनर्जी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा कि अगर ऐसी ही जल्दबाजी में प्रक्रियाएं थोपी जाती रहीं, तो मौतों का आंकड़ा बढ़ता जाएगा। उन्होंने इसे चुनावी प्रक्रिया की अव्यवस्था बताते हुए बीजेपी पर निशाना साधा।

वहीं, पश्चिम बंगाल के बीजेपी ऑब्जर्वर मंगल पांडे ने पलटवार करते हुए कहा कि बिहार में भी SIR का काम हुआ था, लेकिन वहां इस तरह का दबाव नहीं बनाया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि बंगाल में स्थानीय प्रशासन और टीएमसी की लीडरशिप लगातार बीएलओ पर दबाव बना रही है और उन्हें स्वतंत्र रूप से काम नहीं करने दिया जा रहा, जिसके चलते ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण मामले सामने आ रहे हैं।

गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनाव से पहले एसआईआर (Special Intensive Revision) की प्रक्रिया चल रही है। जो मतदाता इस प्रक्रिया में शामिल नहीं हो पा रहे हैं, उन्हें चुनाव आयोग की ओर से नोटिस भी जारी किए जा रहे हैं।

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