दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में यह समस्या गंभीर हो रही है। सरकारें कुछ नहीं कर पा रही हैं। तस्कर नागरिकों को तेजी से अपना निशाना बना रहे हैं।आनलाइन धोखाधड़ी में जुटी कंपनियों और अवैध जुए के अड्डों यानी केसिनो के कारण दक्षिण पूर्व एशिया कई इलाकों, खासकर मेकांग क्षेत्र को गंभीर मानवीय संकट का सामना करना पड़ रहा है।
म्यांमा में श्वे कोक्को को मानव तस्करी का केंद्र (एपीसेंटर) माना जाता है। हाल के दिनों में यहां कई जुआ घरों पर छापे पड़े थे, जिसकी वजह से म्यांमा की सेना और कई जातीय समूहों के बीच भयानक लड़ाई हुई। हजारों की संख्या में लोग भागकर पड़ोसी देश थाईलैंड चले गए।
कंबोडियाई तस्कर इस तरह के फर्जी सोशल मीडिया खातों से लोगों को ललचाते हैं और फिर उन्हें गुलाम बना लेते हैं। म्यांमा जैसे अशांत क्षेत्रों में जहां कानून व्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं है, वहां अपराधियों को खूब मदद मिल रही है। इन इलाकों को तस्कर एक तरह से नए ‘गुलाम परिसर’ के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। तस्करी करके लाए गए लोगों को उनकी इच्छा के विरुद्ध यहां रखते हैं, उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं, मारते-पीटते हैं और यहां तक कि कभी-कभी जान भी ले लेते हैं। तस्कर दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के नागरिकों को निशाना बना रहे हैं।
हाल के वर्षों में कंबोडिया दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में मानव तस्करी के लिए सबसे खास जगह बन गया है। तस्करों ने एक आकर्षक व्यवसाय के रूप में आनलाइन धोखाधड़ी शुरू की है और विभिन्न सोशल मीडिया ऐप के जरिए लोगों निशाना बना रहे हैं। लोग अक्सर इनके इन नकली विज्ञापनों वाली बातों में आ जाते हैं और इनके जाल में फंसकर ‘गुलाम परिसर’ तक पहुंच जाते हैं।
अंतरराष्ट्रीय दबाव में कंबोडिया के अधिकारियों ने इस सिंडिकेट पर शिकंजा कसने का प्रयास किया है और इन ‘गुलाम परिसरों’ पर छापा मारकर कई पीड़ितों को आजाद भी कराया गया है। ऐसी कार्रवाइयों के बावजूद संकट दूर नहीं हुआ है। ‘बर्मा प्रोग्राम आफ यूनाइटेड स्टेट्स इंस्टीट्यूट आफ पीस’ (यूएसआइपी) के निदेशक जैसन टावर कहते हैं, जिस रफ्तार से यह अवैध कारोबार बढ़ रहा है, उसकी तुलना में अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया की रफ्तार बहुत धीमी है। म्यांमा और लाओस जैसी जगहों पर स्थिति गंभीर है। कई इलाके तो कानून प्रवर्तन एजंसियों की पहुंच से बहुत दूर हैं। अपराधी आनलाइन जुआघर और पोंजी योजनाएं चला रहे हैं और वन्यजीवों की तस्करी में शामिल हो रहे हैं।
हाई-टेक रोजगार का वादा करके करीब 20 देशों के लोगों को फंसाया गया है। बंदूक की नोंक पर इन्हें दोहरे अपराध में शामिल होने को बाध्य किया जाता है। इनकार करते पर उन्हें शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना दी जाती है। तस्करों के हाथों से बच निकलने वाले बांग्लादेश के अब्दुस्सलाम के मुताबिक, ‘कंपाउंड से भाग पाना लगभग असंभव होता है।
यदि आप एक बार इस कंपाउंड में पहुंच गए तो वो आपके साथ गुलामों जैसा व्यवहार करते हैं और वो यह सुनिश्चित कर लेते हैं कि आप वहीं रहेंगे और उनके लिए काम करेंगे।’ सलाम को बांग्लादेश से कंबोडिया ले जाया गया था। कई महीनों की कैद के बाद सलाम इस कंपाउंड से बाहर में आने में सफल हुए थे। सलाम अब उन लोगों को बाहर निकालने में अधिकारियों और सिविल सोसायटी के लोगों की मदद कर रहे हैं जो अभी भी गुलाम परिसरों में कैद हैं।
यूरोप, अफ्रीका और अमेरिका के लोग निशाने पर
‘ह्यूमैनिटी रिसर्च कंसल्टेंसी’ की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, सलाम जैसे लोगों को यूरोप, अफ्रीका या फिर अमेरिका से आकर्षित किया जा रहा है। जानकारों के मुताबिक, कंबोडिया और म्यांमा के स्थानीय अपराधियों के लिए पीड़ितों को झांसे में लेना मुश्किल है, जब तक कि उनके तार उन देशों के अपराधियों से नहीं हैं जहां के लोगों को ये अपने जाल में फंसा रहे हैं।
संबंधित देशों के स्थानीय अपराधी तो इस फ्रेमवर्क में बहुत छोटी कड़ी हैं। वास्तव में जरूरी नहीं कि ये लोग अपराध में शामिल ही हों, लेकिन वह अपराध की आपूर्ति शृंखला का हिस्सा जरूर होते हैं। कुछ हफ्ते पहले, ताइवान ने तस्करों के एक समूह को दोषी ठहराया था जिन्होंने 88 पीड़ितों को कंबोडिया के गुलाम परिसरों में भेजा था। मानव तस्करी और अवैध स्कैमिंग जैसी गतिविधियां दरअसल वैश्विक स्तर पर सुरक्षा का मुद्दा हैं।