वहीं राज्य में खेती बाड़ी को नुकसान पहुंचाने में बंदरों और जंगली सुअरों की मुख्य भूमिका रही है। आंकड़ों के मुताबिक 43 फीसद खेती को नुकसान बंदरों ने पहुंचाया है। पहाड़ी क्षेत्रों में जंगली सुअर एवं काकड़ और कुछ हद तक लंगूर भी खेती को नुकसान पहुंचा रहे हैं। यह समस्या टिहरी ,पौड़ी गढ़वाल रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़ जैसे जिलों में अधिक मात्रा में पाई गई हैं।
मैदानी क्षेत्रों में जंगली हाथी फसलों को चौपट कर रहे हैं। जंगली हाथी हरिद्वार, ऊधम सिंह नगर और देहरादून जिले के मैदानी क्षेत्रों में गन्ने और धान की फसल जबरदस्त नुकसान पहुंचाते हैं। राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में ग्रामीणों के पलायन की तादाद मैदानी क्षेत्रों से कहीं ज्यादा है। पर्वतीय क्षेत्रों में उपज कम होने के कारण लोग घरवार छोड़कर शहरी क्षेत्रों में बस रहे हैं।
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय पक्षी एवं वन्य जीव विशेषज्ञ प्रोफेसर दिनेश चंद्र भट्ट के मुताबिक हर साल उत्तराखंड में पांच करोड़ की लागत के मवेशियों का नुकसान वन्य जीव शिकार करके कर रहे हैं। वन्य क्षेत्रों में वनों के अवैध कटान होने के कारण जंगली जानवरों का आक्रमण ग्रामीण और आसपास के क्षेत्रों में तेजी से बढ़ रहा है।
प्रोफेसर भट्ट के अनुसार केंद्र सरकार के आंकड़े बताते हैं कि जहां उत्तराखंड के जंगलों में 2014 में 400 तेंदुए रहते थे, अब इनकी संख्या 840 हो गई है। जाहिर है वनों में वन्य जीवन सुरक्षित है परंतु वन्यजीवों की बढ़ती संख्या के कारण जंगलों के आसपास स्थित ग्रामीण क्षेत्रों के लोग जंगली जानवरों के लगातार बढ़ रहे आक्रमणों के कारण सुरक्षित नहीं हैं।
वहीं जंगलात विभाग के पास लंगूर, बंदर, काकड़ और जंगली सुअरों के आंकड़े भी सही तरह से उपलब्ध नहीं है। उत्तराखंड में राजाजी राष्ट्रीय पार्क और जिम कार्बेट पार्क टाइगर रिजर्व होने के साथ जंगली हाथियों के सबसे बड़े केंद्र हैं। जंगलों में हाथियों, तेंदुओं और अन्य वन्यजीवों के लिए पर्याप्त भोजन की व्यवस्था नहीं है।
संसद में भी उठा जंगली जानवरों के आतंक का मामला
उत्तराखंड में जंगली जानवरों के आतंक का मसला संसद में भी उठा। उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल संसदीय क्षेत्र के सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कहा कि राज्य के वन क्षेत्रों में रह रहे बाघों को अन्य राज्यों के वन क्षेत्रों में भेजा जाना चाहिए। सूबे में आए दिन दिन बाघों व गुलदार के हमले हो रहें । ग्रामीण इलाकों में लोगों का घरों से निकलना दूभर हो गया है।
हर साल मानव-वन्यजीव संघर्ष में 70 फीसद हमले बाघ कर रहे हैं। अब जंगलों से सटे गांवों में रहना असुरक्षित हो गया है। सांसद रावत के मुताबिक उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के जिला पौड़ी गढ़वाल के पौडी, थलीसैण, पाबों, एकेश्वर, पोखडा बीरोंखाल सहित सभी विकासखण्ड बाघों के हमले से ज्यादा प्रभावित हैं। जंगली जानवरों के खौफ से पौड़ी के मझगांव, भरतपुर और डबरा गांव पूरी तरह से खाली हो गए हैं। वहीं रूद्रप्रयाग जिले के जखोली विकासखंड एवं बस्ता ग्राम रूद्रप्रयाग वन प्रभाग में मानव बर जंगली जानवरों के हमले की कई घटनाएं हुई हैं। इन क्षेत्रों में बाघ के हमले की आशंका से खेती भी प्रभावित हो रही है।
राज्य सरकार भी मानव वन्यजीव संघर्ष से चिंतित
उत्तराखंड राज्य वन्यजीव बोर्ड की मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में हुई 18वीं बैठक में भी मानव वन्यजीव संघर्ष का मामला प्रमुखता से उठा। इस बैठक में फैसला किया गया कि राज्य में मानव-वन्यजीव संघर्ष में किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उनके परिवार को देय अनुग्रह राशि अब 6 लाख रुपए दी जाएगी। गंभीर रूप से घायल होने पर अनुग्रह राशि 50 हजार रुपए से बढ़ाकर 1 लाख रुपए दी जाएगी। मानव-वन्यजीव संघर्ष में क्षतिपूर्ति के लिए 2 करोड़ रुपए का कारपस फंड बनाया जाएगा। साथ ही शिवालिक हाथी आरक्षित क्षेत्र की पुर्नस्थापना के प्रस्ताव को अनुमोदित किया गया।
राज्य में जंगली हाथियों की तादाद बढ़ी
उत्तराखंड में लगातार जंगली हाथियों की तादाद बढ़ रही है। राजाजी राष्ट्रीय रिजर्व पार्क और जिम कार्बेट राष्ट्रीय पार्क समेत अन्य वन प्रभागों में हाथियों की तादाद बढ़कर 2000 से ज्यादा हो गई है। इससे जंगलात महकमें की चुनौतियां भी बढ़ गई हैं। राज्य का जंगलात क्षेत्र लगातार घट रहा है और जंगलों में हाथियों के लिए चारा नहीं है। इससे हाथी मानव बाहुल्य गांवों की तरफ रुख कर रहे हैं और उनकी फसलों को लगातार नष्ट कर रहे हैं। ऐसे में मानव-वन्यजीव संघर्ष भी बढ़ने लगता है।