छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के बासागुड़ा थाने की पुलिस ने एक संदिग्ध को हिरासत में लिया। उसने बताया कि वो माओवादी है। वो करीब छह दिन तक थाने में रहा। उसने पुलिसवालों से कहा कि वो सरेंडर करने को तैयार है। पुलिसवालों का भरोसा जीतकर एक दिन उसने सबकी नजरों से छिपते हुए थाने से हथियार व गोला-बारूद पार कर दिए।
अफसरों ने बताया कि देवा ने माना कि वह एक माओवादी है और जासूसी मिशन पर है। जितने दिन वह थाने पर रहा, उसने सूचनाएं देने से कभी इनकार नहीं किया। उसने कहा कि वो आत्मसमर्पण करने को तैयार है। 18 मई को शाम सवा 7 बजे थाने में बने आठ वॉच टॉवरों में से एक पर तैनात संतरी ने देवा को गेट पर लगी तारें खोलकर जंगल के रास्ते भागते हुए देखा। उसने कंधे पर एक एके-47 लटका रखा थाा।
देवा के भागने के तीन दिन बाद, बासागुड़ा पुलिस थाने में सन्नाटा पसरा है। मामले की जांच के कोई आदेश नहीं दिए गए हैं। लेकिन थाना प्रभारी शरद सिंह कहते हैं, “मुझे भरोसा नहीं होता कि ऐसा कुछ हुआ है। अभी मैं सिर्फ देवा और उसके द्वारा चुराए गए हथियारों को वापस लाने की सोच रहा हूं। मैं जानता हूं कि वो हमारे ही खिलाफ इस्तेमाल किए जाएंगे।”
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पुलिस ने देवा को पहली बार बासागुड़ा मेन रोड पर थाने से कुछ ही मीटर दूर देखा था। शरद के मुताबिक, “हमने उससे कुछ सवाल पूछेे मगर उसने कोई सीधा जवाब नहीं दिया। जब हम उसे थाने ले आए, तब उसने बताया कि वो एक माओवादी है और एक जासूसी मिशन पर है। वो 20-25 साल का होगा और उसने कहा कि वो 7 किमी दूर स्थित बग्दिचेरू गांव का रहने वाला है।
थाने पर पुलिस स्टाफ ने उससे बात करके आत्मसमर्पण के लिए मनाने की कोशिश की। थाने पर तैनात एक जवान ने बताया, “उसने हमारा भरोसा जीत लिया। वो हंसमुख था और तेज भी। उसने हमारे क्षेत्र में कई नक्सलियों की पहचान करने में मदद की, या शायद ये हमारी गलतफहमी हो। उसने हमें माओवादियों की रणनीतियों के बारे में बताया। उसने बताया कि उसे छत्तीसगढ़ की दो नक्सल बटालियंस में से एक के कमांडर हिडमा ने भेजा है और वो उसे अच्छे से जानता है। ऐसा लगा कि वो सरेंडर करना चाहता था लेकिन वो सिर्फ खेल खेल रहा था। ये धोखा था।”
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थाना परिसर में देवा ने पुलिसकर्मियों की सारी गतिविधि देखी। शरद सिंह ने कहा, “हर दिन शाम 7 बजे संतरियों को छोड़कर बाकी सारे जवान एक जगह एकत्र होते हैं। थाने में करीब 100 पुलिसकर्मी हैं और उनको एक साथ आने में समय लगता है। 18 मई को इसी समय देवा ने अपना काम कर दिया।” उस शाम शरद सिंह थाने पर मौजूद नहीं थे।
शरद बताते हैं, “मेरे डेढ़ साल के बेटे को खांसी हो गई थी, इसलिए मैं उसे सड़क के दूसरी तरफ स्थित सीआरपीएफ कैंप ले गया था। मेरा वॉकी-टॉकी मेरे साथ था और अचानक मैंने किसी को चीखते सुना कि कोई पश्चिमी गेट से भागते हुए देखा गया है। मुझे लगा कि नक्सली हमला करने जा रहे हैं, इसलिए मैं भागकर थाने पहुंचा।”
मिनटों में ही जवानों को एहसास हो गया कि देवा गायब है। जल्द ही उन्हें पता चला कि एक एके-47, एक UBGL, जिससे 300 मीटर की दूरी से भी ग्रेनेड फायर किए जा सकते हैं और गोला-बारूद गायब थे। शुरुआती जांच में पुलिस को पता चला कि जो हथियार और गोला-बारूद गायब हुए, उन्हें एक सहायक आरक्षक मुदियामी शंकर के पास रखा गया था। शंकर ने रोज की तरह बुलाए जाने पर हथियार बैरक में छोड़ दिए और बाकी जवानों के साथ खड़ा हो गया। शंकर के साथियों का कहना है कि वो थाने का सबसे अच्छा जवान है, इसलिए उसके पास हथियार रखे गए थे।
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देवा बड़ी ही सफाई से बैरक में घुसा, हथियार एक झोले में छिपाए। फिर उसने खिड़की खोलकर झोला बाहर फेंक दिया। देवा बैरक से बाहर आया और जहां हथियार छिपाए, वहां गोला बनाया और पश्चिमी दरवाजे की तरफ चला गया। संतरियों की अदला-बदली रोज शाम सवा 7 से साढ़े 7 बजे के बीच होती है। एक टॉवर पर तैनात संतरी ने किसी को पश्चिमी दरवाजे पर लगे तार खोलते हुए देखा। फिर उसे अलार्म बजा दिया और पुलिसकर्मी जंगल की तरफ भागे, लेकिन वो कहीं गायब हो चुका था।
नक्सल विरोधी ऑपरेशंस के विशेष डीजी डीएम अवस्थी ने पूरे मामले को बेहद गंभीर बताया है। उन्हें थाने से एक बेसिक रिपोर्ट मिली है, लेकिन उन्होंने और जानकारियां मांगी हैं। अवस्थी ने कहा कि पुलिसकर्मियों की लापरवाही को दुरुस्त करने के लिए एक कमेटी बनाई जाएगी जो एक मानक तय करेगी।