वैज्ञानिकों ने गर्मी और आर्द्रता के मिले जुले उस अधिकतम स्तर का पता लिया है, जिससे ज्यादा हमारा शरीर बर्दाश्त नहीं कर सकता है। नई खोज इस विषय में अभी तक उपलब्ध धारणाओं को चुनौती देती है। संयुक्त राज्य अमेरिका में, फीनिक्स, एरिजोना जैसे शहरों में भीषण गर्मी की लहर के कारण लगातार 27 दिनों तक तापमान 43 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहा।

अभी तक यह माना जाता था कि अगर एक स्वस्थ जवान व्यक्ति को भी 100 फीसद आर्द्रता या के साथ-साथ 35 डिग्री सेल्सियस तापमान छह घंटों से ज्यादा सहना पड़े तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। नई खोज में पता चला है कि बर्दाश्त का अधिकतम स्तर इससे काफी नीचे हो सकता है। इस बिंदु पर आ कर पसीना त्वचा पर से उड़ता नहीं है। फिर लू लगने के बाद अंगों का काम करना बंद हो जाता है मौत हो जाती है। यह स्थिति 35 डिग्री पर हो जाती है, जिसे ‘वेट बल्ब’ तापमान कहा जाता है।

जानकारों के मुताबिक, 35 डिग्री से कम में भी मौत हो सकती है। दुनिया में ‘वेट बल्ब’ की स्थिति को सिर्फ करीब एक दर्जन बार पार किया गया है, जिसमें से अधिकांश बार ऐसा दक्षिण एशिया और फारस की खाड़ी में हुआ। नासा की ‘जेट प्रोपल्शन’ प्रयोगशाला के कालिन रेमंड ने कहा कि गर्मी को बर्दाश्त करने का स्तर काफी नीचे भी हो सकता है। रेमंड ने बताया कि इनमें से किसी भी बार यह दो घंटों से ज्यादा नहीं चला।

इसका मतलब है इसकी वजह से कभी भी बड़ी संख्या में लोगों के मरने की घटना नहीं हुई। चरम गर्मी से मौत होने के लिए इस स्तर तक भी पहुंचने की जरूरत नहीं है।इसके अलावा उम्र, स्वास्थ्य और दूसरे सामाजिक और आर्थिक कारणों की वजह से हर किसी की सहन शक्ति अलग होती है। मिसाल के तौर पर अनुमान है कि यूरोप में पिछले साल गर्मियों में 61,000 से ज्यादा लोगों की गर्मी की वजह से मौत हो गई, लेकिन वहां शायद ही कभी ऐसी आर्द्रता होती है जिससे खतरनाक ‘वेट बल्ब’ तापमान पैदा हो सके।

हालांकि जैसे जैसे दुनिया का तापमान बढ़ता जा रहा है, वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि खतरनाक ‘वेट बल्ब’ घटनाएं भी और आम होती जाएंगी। हाल ही में जुलाई 2023 की इतिहास में सबसे गर्म महीने के रूप में पुष्टि हुई है।रेमंड के मुताबिक, ऐसी घटनाएं पिछले 40 सालों में कम से कम दुगुनी हो गई है। उन्होंने इस वृद्धि को इंसानों के वजह से हुए जलवायु परिवर्तन का एक गंभीर नतीजा बताया। शोध के आधार पर रेमंड ने कहा कि अगर दुनिया पूर्व औद्योगिक स्तर से 2.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा की दर से गर्म हुई तो आने वाले दशकों में ‘वेट बल्ब’ तापमान नियमित रूप से दुनिया में कई जगह 35 डिग्री पार कर जाएंगे।

इंसानों के बर्दाश्त करने लायक तापमान का जो सिद्धांत अभी तक दिया गया है, उसमें 35 डिग्री सेल्सियस सूखी गर्मी के साथ साथ 100 फीसद आर्द्रता की बात कही गई है। इस सीमा को जांचने के लिए अमेरिका की पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी में शोधकर्ताओं ने एक गर्म कक्ष में स्वस्थ युवाओं के कोर तापमान को मापा।

उन्होंने पाया कि ये युवा 30.6 डिग्री सेल्सियस पर ही अधिकतम खतरनाक तापमान सीमा तक पहुंच गए, यानी वो सीमा जब उनके शरीर ने तापमान को बढ़ने से रोकने का काम करना बंद कर दिया। इस शोध पर काम करने वाल डैनिएल वेचेलियो के मुताबिक, टीम ने अनुमान लगाया कि पांच से सात घंटों के बीच में इस तरह के हालात बहुत ही खतरनाक कोर तापमान तक पहुंच जाएंगे।

भारत में किए गए एक शोध पर आधारित एक लेख पिछले महीने नेचर पत्रिका में छपा जिसमें शोधकर्ताओं ने दक्षिण एशिया में ‘वेट बल्ब’ तापमानों पर अध्ययन किया। उनके मुताबिक, इस इलाके में लू से जान का नुकसान 35 डिग्री की सीमा से नीचे के तापमानों पर ही हुआ। कई जानकारों का कहना है कि बच्चों पर ज्यादा खतरा है और बुजुर्गों पर तो सबसे ज्यादा खतरा है। ज्यादा तापमान में बाहर काम करने वालों को भी दूसरों के मुकाबले ज्यादा खतरा है। इसके अलावा, यह भी एक बड़ा सवाल है कि लोग बीच बीच में अपने शरीर को ठंडा कर पाते हैं या नहीं।

अगर एक स्वस्थ जवान व्यक्ति को भी 100 फीसद आद्रता के साथ-साथ 35 डिग्री सेल्सियस तापमान छह घंटों से ज्यादा सहना पड़े तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। नासा की हाल की खोज में पता चला है कि बर्दाश्त का अधिकतम स्तर इससे काफी नीचे हो सकता है। इस बिंदु पर आ कर पसीना त्वचा पर से उड़ता नहीं है। फिर लू लगने के बाद अंगों का काम करना बंद हो जाता है मौत हो जाती है। यह स्थिति 35 डिग्री पर हो जाती है, जिसे ‘वेट बल्ब’ तापमान कहा जाता है।