Gang War In Punjab: पंजाब सिर्फ ड्रग्स की चुनौती से नहीं जूझ रहा है, गैंगवार भी एक ऐसा मुद्दा है जिसने इस राज्य को कई साल पीछे धकेल दिया है। जब भी पंजाब विकास की पटरी पर लौटने की कोशिश करता है, किसी की नफरत, किसी का बदला पंजाब की सड़कों पर खून फैलाता है। उस खून की वजह से फिर बदले की भावना जागती है और हर तरफ से हमले होने लग जाते हैं। पिछले कई सालों से ऐसे ही चलता आ रहा है पंजाब का गैंगस्टर कल्चर।

पंजाब में कैसे शुरू हुआ गैंग कल्चर?

इस पूरे गैंगस्टर कल्चर की शुरुआत 2006 से मानी जाती है जब प्रभजिंदर सिंह उर्फ डिंपी को मौत के घाट उतार दिया गया था। डिंपी कोतकपूरा के चांन भान गांव का रहने वाला था। इसे पंजाब का शुरुआती गैंगस्टर भी कहा जा सकता है, उत्तर प्रदेश के क्राइम नेटवर्क के साथ इसके अच्छे संबंध थे। लेकिन फिर 7 जुलाई 2006 को डिंपी मारा गया। जांच में दावा हुआ कि हत्यारे का नाम जगविंदर सिंह उर्फ रॉकी है।

अब रॉकी खुद उस जमाने में एक नया गैंगस्टर था, उम्र कम थी, लेकिन डिंपी को मार उसने एक गैंगवार छेड़ दी थी। फिर कुछ समय बीता और 2012 में रॉकी ने फजीका सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा। उसकी हार हो गई, लेकिन कई दूसरे गैंगस्टर्स के साथ रिश्ते मजबूत हुए। बात चाहे जयपाल भुल्लर की हो या फिर शेखा खुबान की। लेकिन समय के साथ ये दोस्तियां ही दुश्मनी में बदलने लगीं और पंजाब में गैंगवॉर की नई लहर उठती दिखी।

हत्या पर हत्या, नहीं रुक रहा ये खेल

फिर 1 जुलाई, 2012 को अमनदीप सिंह हैपी माना गया, फिरोजपुर में उसकी हत्या की गई। पता चला कि गैंगस्टर शेखा खुबान ने उसे मौत के घाट उतारा। अमनदीप सिंह हैपी को लेकर कहा जाता था कि उसके अकाली नेता सुखदीप सिंह के साथ अच्छे रिश्ते थे, लेकिन खुद सुखदप की भी 2013 में हत्या कर दी गई थी। इसके बाद 2013 में ही एक और गैंगस्टर रंजीत सिंह मारा गया, उसके दुश्मन चमकौर सिंह ने इस वारदात को अंजाम दिया।

बदला लेने के लिए फिर रंजीत के साथियों ने चमकौर के भाई और भतीजे को 2014 में मार डाला। इसके बाद चमकौर ने लॉरेंस गैंग के साथ जुड़ने का फैसला किया। अब एक तरफ यह दुश्मनी बढ़ती चली गई तो वहीं दूसरी तरफ पंजाब में एक और हत्या हो चुकी थी। 21 जनवरी 2015 को सुखा कहलवान को मार दिया गया था, पुलिस कस्टरी में उसकी हत्या हुई थी। बाद में पता चला कि विक्की गाउंडर नाम के गैंगस्टर ने उसे मारा, कारण- उसे अपने दोस्त लवली बाबा की हत्या का बदला लेना था।

राजनीति की जड़े मजबूत, गैंगस्टर बनना आसान?

अब जितने भी ये गैंग वॉर हो रहे थे, ज्यादातर के राजनीतिक कनेक्शन भी साफ निकलकर सामने आए। 2016 में 21 फरवरी को छात्र नेता से कांग्रेस सरपंच बने रजविंदर सिंह उर्फ रवि ख्वाजके को मार दिया गया था। उसकी हत्या की जिम्मेदारी दविंदर बमीहा ने ली थी। उसका लॉजिक था कि उसने 2014 में काला हवस की हुई हत्या का बदला लिया था। आरोप था कि काला हवस की हत्या में ख्वाजके और उसके भाई का हाथ था।

इसके बाद 2016 में अप्रैल 30 को हिमाचल के परवानू में एक और हत्या हुई, इस बार निशाने पर रॉकी रहा। पता चला कि उसके पुराने साथी विक्की, जयपाल ने ही उस हत्या की जिम्मेदारी ली। दोनों के अपने निजी कारण थे। एक को डिंपी की हत्या का बदला लेना था तो वहीं दूसरे को लगता था कि शेरा खुबान के बारे में सारी जानकारी रॉकी ने ही पुलिस को लीक की थी। अब चेहरे बदलते रहे, लेकिन पंजाब में ऐसी हत्याओं पर कोई अंकुश नहीं लग पाया।

बिश्नोई गैंग की एंट्री और बिगड़े हालात

11 अगस्त 2016 को दिबाग सिंह उर्फ लम्मा पट्टी को मार दिया गया। उस पर पांच मुकदमे दर्ज थे और उसके करीबी रिश्ते गैंगस्टर जग्गू भगवानपुरिया से बताए जाते थे। अब ऐसा करते-करते 2017 आ गया, लेकिन ट्रेंड में कोई बदलाव देखने को नहीं मिला। लावी दिओरा की भोला शूटर ने हत्या कर दी थी, उसका साथ बिश्नोई गैंग ने भी तब दिया था। फिर 2018 में एक जिम में गैंगस्टर जॉर्डन चौधरी मारा गया था। वहीं उस हत्या के बाद बिश्नोई गैंग का सदस्य मनप्रीत उर्फ मन्ना को पुलिस का मुखबीर बनने के लिए मारा गया।

अब ऐसा नहीं था कि इतनासबुछ होने के बाद हत्याएं रुक चुकी थीं, बदले की आग तो अभी भी धधक रही थी। इसी वजह से अक्टूबर 2020 में गोल्डी बराड़ का कजिन भाई मारा गया, माना गया कि हत्यारा बमबीहा गैंग से ताल्लुक रखता था। उस हत्या के दो हफ्ते बाद ही एनएसयूआई नेता रंजीत सिंह की हत्या हुई, बिश्नोई गैंग ने उसकी जिम्मेदारी भी तुरंत ली।

मूसेवाला की हत्या बना टर्निंग प्वाइंट

यहां भी सबसे ज्यादा चर्चा मई 29 2022 की होती है क्योंकि तब सिद्धू मूसेवाला को मार दिया गया था। तब लॉरेंस गैंग ने दावा किया कि 2021 को हुई यूथ अकाली नेता विक्की की हत्या के बाद मूसेवाला को मारने का फैसला हुआ। अब जितने सालों में यह गैंग कल्चर मजबूत हुआ है, इसे कमजोर करने के लिए पंजाब पुलिस की तरफ से लगातार एनकाउंटर किए गए हैं। एक नजर उन एनकाउंटर्स पर-

पुलिस ने कैसे किया गैंगस्टर्स का सामना?

6 सितंबर 2012 को बठिंडा में हाईवे लुटेरे शेरा खुबन की हत्या कर दी गई थी। 27 अप्रैल 2013 को जय सिंह वाले गिरोह के सदस्य कुलविंदर और नाहर सिंह को एक पुलिसकर्मी की हत्या के बाद गोली मार दी गई थी। 3 जून 2016 को हरियाणा के गैंगस्टर कन्नू छिकारा की बठिंडा में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। 11 सितंबर 2016 को रामपुरा फूल में बंबीहा की हत्या कर दी गई थी। 14 दिसंबर 2017 को भिंडा गिरोह के सदस्य मनप्रीत मन्ना और प्रभदीप दीपा मुठभेड़ में मारे गए थे। 26 जनवरी 2018 को ओसीयू की टीमों ने विक्की गौंडर और प्रेमा लाहौरिया को मार गिराया था। 7 फरवरी 2019 को शूटर अंकित भादू को जीरकपुर के पास मार गिराया गया था। 3 मार्च 2019 को गैंगस्टर जगसीर सिरा को हरियाणा पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया था।

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Kamaldeep Singh Brar की रिपोर्ट