केरल के कोझिकोड जिले में 14 साल के अफानन जसीम एक ऐसी गंभीर बीमारी से उबरे हैं जिसकी मृत्यु दर 97 प्रतिशत है। जसीम दुनिया के उन 11 लोगों में से पहले भारतीय हैं जिन्हें Primary Amoebic Meningoencephalitis (PAM) नाम की गंभीर बीमारी है। यह इतनी खतरनाक बीमारी है कि लक्षण शुरू होने के पहले दिन से 18वें दिन तक इंसान की मौत हो जाती है, पांचवे दिन तक वह कोमा की स्थिति में आ जाता है।
यह नेगलेरिया फाउलेरी अमीबा से फैलता है जिसे मस्तिष्क खाने वाला अमीबा भी कहा जाता है। यह ताजे पानी के तल, झीलों, नदियों और गर्म झरनों में रहता है, यह मिट्टी में भी पाया जाता है।
कैसे फैलती है यह गंभीर बीमारी?
आम तौर पर यह नाक के ज़रिए शरीर में जाता है और अगर समय रहते इसका इलाज न किया जाए तो यह तेज़ी से फैलता है। हालांकि यह बीमारी बहुत ज़्यादा लोगों में नहीं पाई गई है। 1909 में ब्रिटेन में इसका पहला संदिग्ध मामला सामने आया था। लेकिन केरल में इसका पहला मामला 2016 में दर्ज किया गया। यहां पिछले दो महीनों में ही पांच मामले दर्ज किए गए हैं।
अफानन जसीम के लिए भी यह सब 26 जून को शुरू हुआ, जब वह अपने दोस्तों के साथ घर के पास एक तालाब में नहाए थे। चार दिन बाद उन्हें लक्षण दिखने लगे। सबसे पहले सिर में दर्द हुआ। 30 जून की दोपहर तक यह मिर्गी जैसे दौरे और बुखार में बदल गया, जिसके कारण उनके पिता एम के सिद्दीकी उन्हें अस्पताल लेकर गए।
पिता ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “सोशल मीडिया पर स्क्रॉल करते समय मुझे एक मस्तिष्क खाने वाले अमीबा के बारे में खबर मिली जिससे तालाबों में नहाने वाले बच्चों को संक्रमण हो रहा है। केरल में पहले से ही ऐसे कुछ मामले थे। इसके अलावा परिवार में किसी को भी मिर्गी का कोई इतिहास नहीं है। इसलिए मैंने डॉक्टर को बताया कि मेरे बेटे ने चार दिन पहले एक स्थानीय तालाब में तैराकी की थी, डॉक्टर ने इस पर ध्यान दिया।”
जब अफानन की हालत बिगड़ने लगी तो उसे पास के वडकारा शहर के दूसरे अस्पताल में रेफर कर दिया गया। लेकिन वहां कोई बाल रोग विशेषज्ञ नहीं था, इसलिए परिवार गांव से 47 किलोमीटर दूर कोझिकोड के एक निजी अस्पताल बेबी मेमोरियल अस्पताल (बीएमएच) गया। बीएमएच के बाल चिकित्सा गहन चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. अब्दुल रऊफ ने अफानन की जांच की और तुरंत उसे कुछ टेस्ट करवाने के लिए ले गए। अस्पताल में पहले से ही ऐसे दो मामले मौजूद थे। जब यह तय हो गया कि उसे यही बीमारी है तो पारिवार को काफी धक्का लगा।
इस बीच ऐसे मरीजो की बढ़ती संख्या को देखकर केरल सरकार ने मिल्टेफोसिन खरीदने की कोशिश शुरू कर दी थी। यह पीएएम के इलाज के लिए स्वीकृत दवाओं में से एक है। डॉ. राउफ के मुताबिक यह दवा भारत में आसानी से उपलब्ध नहीं है और इसे जर्मनी से मंगाना पड़ा। डॉक्टर ने कहा कि अफानन के परिवार ने इलाज को लेकर जिस तरह की तेजी दिखाई उससे उसके बचने में काफी मदद मिली। अफानन ने कहा कि उसे इस बीमारी के बारे में नहीं बताया गया था। वह सिर्फ इतना जानता था कि उसे मिर्गी की बीमारी हुई है।