परिवार में एक गृहिणी की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण होती है, लेकिन उसे हमेशा कम सराहा जाता है। बॉम्बे उच्च न्यायालय (एचसी) की नागपुर पीठ ने पिछले सप्ताह दोहराया कि गृहिणी की मृत्यु पर उसके परिवार के सदस्य मुआवजे के हकदार हैं।
न्यायमूर्ति अनिल किलोर ने कहा कि एक गृहिणी अपने परिवार के लिए एक आधार, अपने बच्चों के लिए एक मार्गदर्शक शक्ति और एक घर में वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक देखभालकर्ता के रूप में एक परिवार को संभाल के रखती है। न्यायाधीश ने कहा कि एक गृहिणी छुट्टी किए बिना दिन-रात काम करता है। लेकिन उसके काम को कोई सराहता नहीं है। इसे काम की तरह नहीं देखा जाता क्योंकी महीने के आखिरी में इस काम का कोई वेतन नहीं मिलता।
अदालत ने महाराष्ट्र के अमरावती के निवासी रामभाऊ गवई और उनके दो बेटों द्वारा दायर अपील के बाद इसपर अवलोकन किया। उन्होने बॉम्बे हाई कोर्ट में अमरावती जिले के अचलपुर में मोटर दुर्घटना क्लेम ट्रिब्यूनल के पिछले आदेश को चुनौती दी है।
ट्रिब्यूनल ने 3 फरवरी, 2007 को एक आदेश जारी किया था, जिसने सड़क दुर्घटना में गवई की पत्नी, बेबीबाई की मौत के मुआवजे के दावे को खारिज कर दिया था। यह दुर्घटना मार्च 2005 में हुई थी जब बेबीबाई का वाहन तेज गति से पेड़ से टकराया था, जिसके चलते उनकी मौत हो गई थी।
ट्रिब्यूनल ने मुख्य रूप से इस आधार पर अपने पति और बेटों के दावे को खारिज कर दिया था कि मृतक एक गृहिणी थी और परिवार का कमाऊ सदस्य नहीं थी। हालाँकि, हाई कोर्ट ने ट्रिब्यूनल के आदेश को उलट दिया, क्योंकि यह तय कानूनी सिद्धांतों के विपरीत था।
न्यायमूर्ति किलोर ने कहा कि एक गृहिणी द्वारा प्रदान की गई सेवाओं और मौद्रिक संदर्भ में परिवार के लिए उनके योगदान को गिनना असंभव है। हाई कोर्ट ने बेबीबाई की आय 3,000 रुपये एक गृहिणी के रूप में तय की और एक श्रमिक के रूप में 3,000 रुपये अतिरिक्त, और यह माना कि उसके पति और बेटों को उसकी आकस्मिक मृत्यु के मुआवजे के लिए 8.22 लाख रुपये मिलना चाहिए।
