जम्मू और कश्मीर से अनुछेद 370 हटने के बाद पूर्व मुख्य मंत्री समेत कई स्थानीय नेताओं को नजरबंद कर दिया गया था। अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस (एएनसी) के नेता मुजफ्फर अहमद शाह ने इसे लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी जिसे उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि सही प्रोफार्मा में पहले गिरफ्तारी का सबूत दें।
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम मोहम्मद शाह के बेटे मुजफ्फर अहमद शाह ने 11 सितंबर को अपने परिवार के साथ उच्च न्यायालय का रुख करते हुए आरोप लगाया था कि उन्हें और उनके परिवार को 5 अगस्त अवैध और गैरकानूनी रूप से नजरबंद कर उन्ही के घर में हिरासत में रखा गया है। उन्होंने यह भी दावा किया था कि उनकी गिरफ्तारी संविधान के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। मुजफ्फर अहमद शाह के अलावा अन्य याचिकाकर्ताओं में गुलाम शाह की पत्नी बेगम खालिदा शाह और शेख अब्दुल्ला के पुत्र मुस्तफा कमाल का नाम शामिल है।
मंगलवार को न्यायमूर्ति अली मोहम्मद माग्रे की एकल पीठ ने याचिका को खारिज कर दिया। न्यायालय ने इसे अनावश्यक करार दिया और साथी ही याचिकाकर्ता को कानून के अंतरगत इस से उपलब्ध उचित उपाय का इस्तेमाल करने के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया। यह आदेश 23 अक्टूबर को पुलिस द्वारा दायर एक जवाब के बाद आया है। जिसमें लिखा था कि राजनीतिक परिवार न तो नजरबंद थे और न ही उनकी स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया गया था।
रिकॉर्ड बताते हैं कि शाह ने कोर्ट में “पेपर कटिंग” प्रस्तुत कर यह दावा किया कि उनके परिवार को नजरबंद किया गया था। उन्होंने आगे दावा किया कि 24 अक्टूबर को, परिवार को पुलिस द्वारा रोक दिया गया था और यह दो संसद सदस्यों जस्टिस (सेवानिवृत्त) हसनैन मसूदी और मोहम्मद अकबर लोन द्वारा देखा गया था।

