रुपया दिन-प्रतिदन अपने नए सर्वकालिक निचले स्तर को छू रहा है । ऐसे में भारतीय छात्रों के लिए अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पढ़ने का सपना पूरा करना दिन ब दिन मुश्किल होता जा रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अब उन्हें अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पढ़ने के लिए अधिक पैसा खर्च करना होगा और अगर वे ऐसा नहीं कर पाते हैं तो उन्हें ऐसे देश का चुनाव करना होगा, जहां पढ़ाई अपेक्षाकृत सस्ती हो।

एक ओर, वित्तीय संस्थानों को लगता है कि चिंताएं वास्तविक हैं और भारी-भरकम शिक्षा ऋण लेने की जरूरत बढ़ सकती है, तो विदेश में रहने वाले शिक्षा सलाहकारों का मानना है कि उन छात्रों को इतनी चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, जो पढ़ाई पूरी करने के बाद अमेरिका में काम करने की योजना बना रहे हैं। अमेरिका में कानून की पढ़ाई करने की योजना बना रहे पुष्पेंद्र कुमार ने कहा, ’अमेरिकी डालर के मुकाबले रुपया नए रिकार्ड निचले स्तर पर चला गया है, जिससे विदेश में पढ़ाई करने की चाह रखने वालों की चिंताएं बढ़ गई हैं और यह उनकी पहुंच से बाहर हो गई है।

अमेरिकी डालर के मुकाबले भारतीय मुद्रा के कमजोर होने से छात्रों की विदेश में पढ़ाई की योजनाओं पर गहरा असर पड़ेगा और वित्तीय बोझ बढ़ेगा।’ उन्होंने कहा, ’मेरे अन्य दोस्त पढ़ाई के लिए किसी और देश का चुनाव कर सकते हैं, लेकिन मैं दीर्घकालिक योजनाओं पर विचार नहीं कर रहा। हर देश में अलग-अलग कानूनी व्यवस्था होती है और वकील के रूप में प्रैक्टिस करने के लिए अलग-अलग शिक्षा की आवश्यकता होती है। मेरे पास विकल्प नहीं है। जब तक मैं वहां पहुंचकर स्रातक की पढ़ाई शुरू करूंगा, तब तक खर्च और बढ़ जाएगा।’

इस सप्ताह रुपया अमेरिकी मुद्रा डालर के मुकाबले 80 के अंक को छूकर अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, भारत से 13.24 लाख से अधिक छात्र उच्च अध्ययन के लिए विदेश गए हैं, जिनमें से अधिकांश अमेरिका (4.65 लाख), इसके बाद कनाडा (1.83 लाख), संयुक्त अरब अमीरात (1.64 लाख) और आस्ट्रेलिया (1.09 लाख) में हैं। ’एचडीएफसी क्रेडिला’ के एमडी. और सीईओ. अरिजीत सान्याल का मानना है कि रुपये के स्तर में गिरावट से विदेश में पढ़ने के इच्छुक भारतीय छात्रों के पढ़ाई के खर्च में वृद्धि होने के संकेत मिल रहे हैं।

सान्याल कहते हैं, ’शिक्षा ऋण देने वाले कर्जदाता की नजर से देखें तो इससे पढ़ाई का बोझ बढ़ेगा क्योंकि उधार लेने वाले को ट्यूशन फीस और दूसरे खर्चों को वहन करने के लिए भारी-भरकम कर्ज लेने की जरूरत पड़ेगी। हालांकि इस समय जो लोग कर्ज चुकाने के चरण में हैं, यदि वे डालर में कमाई कर रहे हैं, तो उनके लिए कर्ज चुकाना आसान होगा।’ ट्यूशन फीस और रहने का खर्च विदेश में पढ़ाई करते समय छात्रों के खर्च के दो मुख्य घटक होते हैं। रुपए में गिरावट का मतलब फीस और रहने के खर्च में वृद्धि होना है क्योंकि पहले की तुलना में एक डालर रुपए के मुकाबले महंगा हो जाएगा।