कुछ समय पहले पश्चिमी बंगाल के मालदा में गौर एक्सप्रेस की सफाई के दौरान एक महिला सफाई कर्मचारी को प्रथम श्रेणी के डिब्बे में एक सीट के नीचे से 23 लाख रुपए मिले। उसने यह सूचना तुरंत अपने अधिकारियों को दी। पूर्वी रेलवे ने इस महिला कर्मचारी को उसकी ईमानदारी के लिए सम्मानित किया। देश में भ्रष्टाचार और बेईमानी की खबरों के बीच समय-समय पर इस तरह की अच्छी खबरें भी सामने आती रहती हैं। ये घटनाएं न केवल यह प्रदर्शित करती हैं कि आज भी ईमानदारी जिंदा है बल्कि यह भी बताती हैं कि ईमानदारी के लिए किसी बड़ी साधना की जरूरत नहीं होती।

यह मानव का बुनियादी चरित्र है। यह बात अलग है कि हम ज्यों-ज्योें दुनिया के झंझटों में उलझते जाते हैं, त्यों-त्यों हमारी ईमानदारी पर बेईमानी की परत जमती जाती है। ऐसे में बेईमानी हमारी आदत में शुमार हो जाती है और हम ईमानदारी को अचरज से देखने लगते हैं।

बेईमानी हमारे अंदर क्यों आती है, इसका कोई ठीक-ठाक जवाब मिलना मुश्किल है। ईमानदारी से बेईमानी तक के इस सफर में कई ठहराव आते हैं। हम कई बार बहुत कुछ सोचने के लिए मजबूर भी होते हैं लेकिन हमारा लोभ हमारे सोच पर भारी पड़ता है। अपने मन को समझाने और बेईमानी के सफर का औचित्य सिद्ध करने के लिए जब समाज में चारों ओर हो रही बेईमानी का उदाहरण दिया जाता है तो इस सफर पर हमारे कदम और तेजी के साथ आगे बढ़ने लगते हैं।

कुछ लोगों का मानना है कि जब तक हमें बेईमानी का मौका नहीं मिलता, हम तब तक ही ईमानदार रहते हैं। बेईमानी का मौका मिलते ही हमारी ईमानदारी गायब हो जाती है। हो सकता है कि इस बात में कुछ हद तक या काफी हद तक सच्चाई हो लेकिन यह सार्वभौमिक सत्य नहीं है। ऐसे अनेक उदाहरण मौजूद हैं कि जब व्यक्ति ऐसे पद पर रहा, जहां वह कई तरह के फायदे उठा सकता था, लेकिन उसने जीवन भर ईमानदारी का जीवन व्यतीत किया।

इसी तरह ऐसे उदाहरण भी मिल जाएंगे कि जब व्यक्ति ऐसे पद पर रहा, जहां फायदे उठाने की संभावना कम थी लेकिन उसने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बेईमानी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसलिए बेईमानी या ईमानदारी काफी हद तक हमारे माहौल और गुणसूत्रों पर भी निर्भर करती है।

एक ईमानदार व्यक्ति को आप बेईमानी करने के लिए कहेंगे तो वह कतई नहीं करेगा। इसी तरह एक बेईमान व्यक्ति को आप ईमानदार रहने के लिए कहेंगे तो वह बिल्कुल भी आपकी बात नहीं मानेगा। दरअसल, हम अपनी आदत से बाज नहीं आते हैं। जीवन का अर्थ प्रत्येक व्यक्ति के लिए भिन्न-भिन्न होता है।

कुछ लोग मानते हैं कि किसी भी तरह से घर में धन आना चाहिए। ऐसे लोगों के अंदर से डर खत्म हो जाता है और वे धन कमाने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार रहते हैं। जब हमारे सिर पर धन कमाने का भूत सवार होता है तो सही-गलत का कुछ ध्यान नहीं रहता है और हम एक ऐसी अंधेरी सुरंग में प्रवेश करते हैं जहां रुपए-पैसे के अलावा हमें कुछ दिखाई नहीं देता है।

दुखद यह है कि साधन-संपन्न लोग भी पैसे के पीछे भागते हुए दिखाई देते हैं। यही कारण है कि इज्जतदार लोग भी धन के लालच में ऐसे अपराध कर देते हैं, जिनसे उनकी छवि तो खराब होती ही है, समाज में उनका विश्वास भी कम हो जाता है। यह लालच ही हमारी पूरी जिंदगी के किए-कराए पर पानी फेर देता है और हमारा पूरा जीवन कलंकित हो जाता है।

ऐसा संभव नहीं कि हमारे अंदर लालच पैदा न हो। हमारे अंदर जितना कम लालच होगा, हमारी जिंदगी उतनी ही ईमानदार और बेहतर होगी। ईमानदारी की राह कांटों भरी जरूर है लेकिन यह राह ही हमें सच्चे अर्थों में आत्मसंतुष्टि प्रदान करती है।