Islam Mai Holi Manana Haram: होली का त्योहार और जुमे की नमाज इस बार एक दिन है। यानी कि रंगो का उत्सव भी होगा और अल्लाह को नमाज भी अदा की जाएगी। अब वैसे तो भारत जैसे देश में सभी धर्मों का सम्मान है, भाईचारे के जरिए सभी त्योहार साथ मनाए जाते हैं, लेकिन इस बार एक विवाद भी पनपा है। बात चाहे उत्तर प्रदेश की हो, चाहे मध्य प्रदेश की हो या फिर बिहार की, एक अजीब सा तनाव हवा में घुल चुका है। संभल में तैनात पुलिस यह बताने के लिए काफी है कि कानून व्यवस्था बनाए रखना चुनौती है।
अब इतना सबकुछ इसलिए क्योंकि ऐसा कहा जा रहा है कि होली वाले दिन मस्जिदों पर रंग नहीं गिरना चाहिए, किसी मुस्लिम शख्स पर रंग नहीं गिरना चाहिए। इन पाबंदियों ने ही सवाल खड़ा किया है- क्या इस्लाम में होली के रंग को हराम माना गया है? क्या इस्लाम में हर रंग को हराम माना गया है? क्या इस्लाम मुस्लिमों को होली मनाने की इजाजत देता है? क्या नमाज का समय कभी बदला जा सकता है, क्या नमाज घर में भी अदा की जा सकती है? इन सभी सवालों का जवाब जानने के लिए हमने जमात ए इस्लामी हिंद के नेशनल सेकरेट्री और इस्लामिक स्कॉलर डॉक्टर मुहिउद्दीन ग़ाज़ी से खास बातचीत की है। सवाल-जवाब वाले उस इंटरव्यू को यहां पढ़ें-
सवाल: क्या इस्लाम में होली मनाना हराम, रंगों से परहेज?
जवाब: देखिए रंग तो किसी भी धर्म में हराम नहीं होता है। रंग तो कभी भी हराम नहीं होता है, ये तो हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा है, हमारे कपड़ों पर रंग होता है, हम रंग को कभी भी अपनी जिंदगी से अलग नहीं कर सकते हैं। लेकिन बात जब होली के रंग की आती है या कहना चाहिए कि एक दूसरे पर रंग फेंकने की आती है, तब हम मानते हैं कि ये जिसका त्योहार है, उन्हें आपस में मनाना चाहिए। जो लोग होली में शामिल नहीं हुए हैं, उन्हें जबरतस्ती शामिल नहीं करना चाहिए। उन पर रंग नहीं डालना चाहिए।
सवाल: जो मुसलमान अपनी मर्जी से होली खेले, तो सही है?
जवाब: एक मुस्लिम होने के नाते हम उसको इसकी इजाजत नहीं दे सकते कि वो किसी दूसरे धर्म की धार्मिक गतिविधि में शामिल हो। समझना चाहिए कि हर धर्म का अपना एक बिलीफ सिस्टम चलता है, सभी की अपनी अलग इबादत होती है। हर किसी को अपने बिलीफ सिस्टम और अपने त्योहार तक सीमित होना चाहिए। लेकिन अब कोई अगर अपनी मर्जी से होली खेलने जा रहा है तो फिर वो उसकी मर्जी है।
सवाल: किसी दूसरे धर्म की गतिविधि में मुस्लिम शामिल नहीं हो सकते?
जवाब: देखिए हम मानते हैं कि कोई भी किसी दूसरे धर्म में शरीक होना पसंद नहीं करेगा ना वो ऐसा चाहेगा। हम भी किसी हिंदू से यह उम्मीद नहीं करने वाले है कि वो हमारी मुस्लिम गतिविधियों में शामिल हो। हम भी किसी मुस्लिम से नहीं कहेंगे कि वो हिंदू त्योहार में शामिल हो।
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सवाल: क्या इस्लाम नमाज का समय बदलने की इजाजत देता है?
जवाब: हम इतने सालों से साथ रह रहे हैं, एक ही मुल्क में रहते हैं, साथ में रहने का जो तरीका है, वो सभी को सीखना चाहिए। सभी अगर अपनी सीमा में रहकर अगर त्योहार मनाएंगे तो कभी इसकी जरूरत ही नहीं पड़ेगी, तो यह समय बदलने की मांग नहीं उठेगी। एक ही टाइम में होली भी होगी, जुमे की नमाज भी होगी, ईद भी मनाई जाएगी। हिंदू ऐसे होली खेलें जिससे जुमा पढ़ने वालों पर असर ना पड़े, जुमा पढ़ने वाले ऐसा जुमा पढ़ें कि होली खेलने वालों पर असर ना पड़े।
सवाल: क्या मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ना जरूरी, घर में नहीं कर सकते अदा?
जवाब: जहां तक मेरा मानना है, इसकी नौबत नहीं आनी चाहिए। किसी को भी किसी की वजह से परेशान नहीं होना चाहिए। वैसे जहां बहुत बड़ी मजबूरी है, इस्लाम तो आसानी का दीन है, ऐसे में इस्लाम अपने मानने वालों को आसानी देता ही है। कोरोना में देख लीजिए, घर में नमाज पढ़ी थी, तब मस्जिद में नहीं गए। जब बहुत बड़ी मजबूरी है, तब तो घर में पढ़ सकते हैं। लेकिन यह फैसला लेने का हक एक मुसलमान का है, उसे कब घर में नमाज पढ़ने की मजबूरी होती है या नहीं, कोई दूसरा उसे नहीं बता सकता।
दूसरे मुस्लिम स्कॉलर्स क्या कहते हैं?
वैसे कुछ दूसरे मुस्लिम स्कॉलर्स भी हैं जिन्होंने होली और इस्लाम को लेकर अपनी राय रखी हैं। एक न्यूज पोर्टल से बात करते हुए अलीगढ़ के मुस्लिम स्कॉलर उमैर खान ने जोर देकर कहा है कि होली और होली रंग इस्लाम में हराम नहीं है, अगर कोई होली मनाएगा तो वो काफिर नहीं बन जाएगा। इतना जरूर है कि इस्लाम और हदीसों में हिदायतें दी गई हैं, कहा गया है कि मुस्लिमों को दूसरे धर्मों के त्योहार मनाने से बचना चाहिए।
एक समझने वाली बात यह भी है कि इस्लाम तौहीद यानी एकेश्वरवाद पर चलता है। इसका सीधा मतलब यह है कि मुस्लिमों को उन कामों से बचना चाहिए जिससे वो किसी दूसरे धर्म की उपासना करने लगें, या फिर उस वजह से उनका रुझान दूसरे किसी धर्म की तरफ जाए। अब यहां पर क्योंकि होली एक हिंदू त्योहार है, इस वजह से भी कई मुस्लिम रंगों के त्योहार को लेकर थोड़ा असहज हो जाते हैं।
बात अगर नमाज के समय की आए तो इसमें कई मुस्लिम स्कॉलर्स की राय बंट जाती है, कुछ अगर उदार होकर समय बदलने को राजी हो जाते हैं तो कुछ मानते हैं कि समय नहीं बदला जा सकता है। वैसे ज्यादातर मुस्लिम स्कॉलर्स की आम राय यह है कि नमाज का समय नहीं बदला जा सकता है। कुरान और हदीस के मुताबिक ही नमाज अदा की जाती है। नमाज को कुल पांच बार पढ़ा जाता है- फज्र (सुबह), ज़ुहर (दोपहर), अस्र (शाम), मगरिब (शाम) और इशा (रात)।
नोट: इंटरव्यू में व्यक्त किए गए विचार एक्सपर्ट के निजी हैं