मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म दो अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। वो पुतलीबाई और करमचंद गांधी के तीन बेटों में सबसे छोटे थे। करमचंद गांधी कठियावाड़ रियासत के दीवान थे। महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा “सत्ये के साथ मेरे प्रयोग” में बताया है कि बालकाल में उनके जीवन पर परिवार और माँ के धार्मिक वातावरण और विचार का गहरा असर पड़ा था। राजा हरिश्चंद्र नाटक से बालक मोहनदास के मन में सत्यनिष्ठा के बीज पड़े। मोहनदास की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई स्थानीय स्कूलों में हुई। वो पहले पोरबंदर के प्राथमिक पाठशाला में और उसके बाद राजकोट स्थित अल्बर्ट हाई स्कूल में पढ़े। पढ़ने-लिखने में वो औसत थे। सन् 1883 में करीब 13 साल की उम्र में करीब छह महीने बड़ी कस्तूरबा से उनका ब्याह हो गया।
आत्मकथा में गांधी जी ने बताया है कि वो शुरू-शुरू में ईर्ष्यालु और अधिकार जमाने वाले पति थे। स्थानीय स्कूलों से हाई स्कूल की पढ़ाई करने के बाद साल 1888 में गांधी वकालत की पढ़ाई करने के लिए ब्रिटेन गये। जून 1891 में उन्होंने वकालत की पढ़ाई पूरी कर ली और फिर देश वापस आ गये। देश में गांधी की वकालत जमी नहीं।
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साल 1893 में वो गुजराती व्यापारी शेख अब्दुल्ला के वकील के तौर पर काम करने के लिए दक्षिण अफ्रीका चले गये। गांधी के अफ्रीका प्रवास ने उनकी जिंदगी की दिशा बदल दी। करीब 23 साल के मोहनदास को तब शायद ही पता हो कि जीवन के अगले 21 साल वो दक्षिण अफ्रीका में गुजारने वाले हैं। महात्मा गांधी रस्किन बॉण्ड और लियो तोल्सतोय की शिक्षा से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। वो जैन दार्शनिक राज चंद्र से भी प्रेरित थे। गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में तोल्सतोय फार्म की भी स्थापना की थी। लंदन प्रवास के दौरान ही उन्होंने हिन्दू, इस्लाम और ईसाई आदि धर्मों का अध्ययन किया था। उन्होंने विभिन्न धर्मों के प्रमुख बुद्धिजीवियों के संग धर्म संबंधी विषयों पर काफी चर्चा की थी।
उनके जन्मदिन को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।