मशहूर इतिहासकार और लेखक रामचंद्र गुहा ने गुरुवार को जानकारी दी कि स्थितियां काबू से निकल जाने की वजह से वह गुजरात की अहमदाबाद यूनिवर्सिटी जॉइन नहीं कर रहे। इससे दो हफ्ते पहले आरएसएस के छात्र संगठन एबीवीपी ने उनकी नियुक्ति का विरोध करते हुए यूनिवर्सिटी से अपील की थी कि उनको दिया ऑफर वापस लिया जाए। 16 अक्टूबर को विश्वविद्यालय ने ऐलान किया था कि गुहा को यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ ऑर्ट्स ऐंड साइंसेज में बतौर प्रोफेसर और गांधी विंटर स्कूल के डायरेक्टर के तौर पर नियुक्त किया जाएगा। वहीं, 19 अक्टूबर को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने इस फैसले के खिलाफ विरोध जताया था।
एबीवीपी के शहर सचिव प्रवीण देसाई ने द इंडियन एक्सप्रेस से बताया, ‘हमने अहमदाबाद यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार बीएम शाह को एक ज्ञापन सौंपा था। हमने कहा था कि हमें हमारे शैक्षिक संस्थानों में प्रबुद्ध जनों की जरूरत है, राष्ट्रविरोधियों की नहीं। इन्हें शहरी नक्सली भी कहा जा सकता है। हमने रजिस्ट्रार के सामने गुहा की किताबों में छपी देश विरोधी बातें भी रखीं। हमने उन्हें बताया कि जिस शख्स को आप बुला रहे हैं, वो एक कम्युनिस्ट है। अगर उन्हें गुजरात बुलाया जाता है तो जेएनयू की तरह ही एक देश विरोधी भावना पनप सकती है।’

बता दें कि वीसी को संबोधित इस ज्ञापन में गुहा की नियुक्ति को कैंसल करने की मांग की गई थी। वहीं, उनके कार्यों को ‘भारत की हिंदू संस्कृति की आलोचना’ बताया गया।
सूत्रों का कहना है कि विश्विद्यालय प्रशासन ने सोमवार को गुहा से संपर्क किया और जॉइनिंग की डेट टालने को लेकर बातचीत की। उन्हें 1 फरवरी 2019 को विश्वविद्यालय जॉइन करना था। सूत्र ने बताया, ‘यह तो साफ था कि विश्वविद्यालय प्रशासन पर गजब का राजनीतिक दबाव था। हालांकि, यह साफ नहीं था कि लोकसभा चुनाव के बाद वो दबाव कम होता है कि नहीं।’
वहीं, इसके दो दिन बाद गुहा ने ट्वीट करके विश्वविद्यालय जॉइन नहीं करने की जानकारी दी। वहीं, विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार ने कहा, ‘इस ऐलान पर विश्वविद्यालय को कोई टिप्पणी नहीं करनी है। मुझे भी इस बारे में उनके ट्वीट से पता चला है। वाइस चांसलर इस वक्त देश से बाहर हैं।’