अगस्त 2017 में मनोज सोनी अपने परिवार के साथ 15 दिनों की छुट्टी पर जाने की यूजना बनाई थी। उनकी इस यात्रा का शिरडी हिस्सा नहीं था। लेकिन टिकट बुकिंग में कुछ दिक्कत आने की वजह से उन्हें मजबूरन शिरडी जाना पड़ा। दरअसल मनोज अपने परिवार के साथ अहमदाबाद से वैष्णोदेवी जाना चाहते थे लेकिन अगस्त की जगह उन्होने टिकट जुलाई का ले लिया था। जिसके चलते उन्हें वैष्णोदेवी की जगह शिरडी की यात्रा करनी पड़ी।

42 वर्षीय सोनी ने बताया कि गुजरात में सोमनाथ, द्वारका और नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिरों के दर्शन करने के बाद उन्हें वैष्णोदेवी जाना था। लेकिन उन्हें पता चला की टिकट एक महीने पहले का है। ऐसे में बिना रिजर्वेशन के वे अपने परिवार के साथ अनारक्षित डिब्बे में इतनी लंबी दूरी की यात्रा नहीं कर सकते थे। तभी उनकी पत्नी ने शिरडी जाने की बात कही और वे बस से अहमदाबाद से शिरडी आ गए।

10 अगस्त को इंदौर के इस परिवार ने प्रसिद्ध साईंबाबा मंदिर के दर्शन किए। सोनी ने कहा “वहां एक मेले में बच्चे झूला झूल रहे थे, तभी मेरी पत्नी ने आसपास की दुकानों का दौरा करने की बात कही। मुझे लगा कि उसे बच्चों के बिना जाना चाहिए, क्योंकि बच्चे बहुत सारी चीजों की मांग करेंगे।” उस दिन के बाद उनकी पत्नी दीप्ति आज तक नहीं मिली।

सोनी के अपनी पत्नी को खोजने के अथक प्रयासों ने बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच को इस मामले को गंभीरता से लेने के लिए प्रेरित किया। कोर्ट ने महाराष्ट्र के शीर्ष पुलिस अधिकारी को प्रसिद्ध मंदिर और शहर से गायब होने वाले लोगों की जांच करने और मानव तस्करी के एंगल की जांच करने के लिए कहा।

पुलिस द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, 2017 से 27 अक्टूबर, 2020 के बीच शिरडी से 279 लोगों के लापता होने की सूचना मिली, जिनमें से 67 का अब भी कोई पता नहीं है। इसमें विवाहित और अविवाहित महिलाएं भी शामिल हैं। सोनी का हवाला देते हुए अदालत ने कहा “तीन साल से अधिक समय हो गया है और अबतक उनकी पत्नी का पता नहीं चला है। उनकी विभिन्न कोशिशें नाकाम रही हैं। इंदौर में रहने के बावजूद वे इतनी दूर आ कर अपनी पत्नी को लगातार खोजने की कोशिश कर रहे हैं।

यह पहली बार नहीं है कि अदालत ने इस समस्या पर ध्यान दिया है। 22 नवंबर 2019 तक एक साल में शिर्डी से 88 लोगों के गायब होने की जानकारी मिली थी। सभी मामलों में लोग शिर्डी मंदिर से ही गायब हुए थे।