भारत का मध्यवर्ग अपनी आबादी के लिहाज से यूरोप से भी बड़ा है। इस बाजार में कब्जा करने के लिए हिंदी या फिर वहां की मातृभाषा में बात करनी जरूरी है। भारत में हिंदी ज्यादातर लोग समझते हैं। इस बात को कंपनियों ने समझा और हिंदी को अपनाना शुरू कर दिया। कुछ साल पहले तक कॉर्पोरेट दफ्तरों में अंग्रेजी का राज था, वह स्थान अब हिंदी ले चुकी है। अब सब जगह हिंदी में बात होने लगी है। एक बात साफ है कि धंधा भले ही अंग्रेजी में हो रहा हो लेकिन ख्वाब हिंदी में बिकते हैं और कारोबार बढ़ाने के लिए ख्वाबों को बेचना पड़ता है। यह कहना है विज्ञापन जगत की बड़ी शख्सियत प्रह्लाद कक्कड़ का।
प्रह्लाद कहते हैं बाजार में पहले ख्वाब बेचे जाते हैं फिर सामान बिकता है। कंपनी को अपने ब्रांड की पहचान दिलाने के लिए विज्ञापनों की जरूरत है जो अंग्रेजी में संभव नहीं है। बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने या फिर कहें कि कब्जा करने के लिए ब्रांड की पहचान होना जरूरी है, जब ब्रांड की पहचान बनेगी तभी ग्राहक माल खरीदेंगे। उसके लिए हिंदी जरूरी है। आज 90-95 फीसद विज्ञापन हिंदी और दूसरी क्षेत्रीय भाषाओं में बनाए जाते हैं। आप कह सकते हैं कि विज्ञापन की दुनिया में हिंदी का राज है। अब तमाम बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने उत्पादों की ब्रांडिंग हिंदी में चाहती हैं।