पिछले 10 दिनों से अंधेरी सुरंग में कैद सतीश और मणिराम अब आजाद हैं। सोमवार शाम उनके लिए उम्मीद की रोशनी लेकर आई। प्रशासन और बचाव दलों ने भी राहत की सांस ली। शनिवार रात से हो रही हल्की बारिश थोड़ी बाधा बनी। लेकिन बचाव अभियान में जुटे इंजीनियरों की राह में रुकावट नहीं बन सकी।

बिलासपुर के टीहरा में फोरलेन एक्सप्रेस हाईवे की निर्माणाधीन सुरंग नंबर-4 के एक हिस्से के 12 सितंबर की रात 8.30 बजे अचानक धंस जाने से उसमें फंसे तीन मजदूरों में से सिरमौर के पांवटा साहिब के सतीश तोमर और मंडी सुंदरनगर के मणिराम को करीब 212 घंटों बाद बचाव दलों ने कड़ी मेहनत के बाद सुरक्षित बाहर निकाल लिया, लेकिन सुरंग में फंसे मंडी हनोगी के हिरदे राम का सुराग नहीं लगा है।

यह हादसा तब हुआ था जब 16 मजदूर अपनी पारी पूरी करने के बाद सुरंग से निकल रहे थे। इन मजदूरों में से एक टीहरा गांव के अनिल ने बताया कि उनके साथ तीन लोग बाहर आ रहे थे कि अचानक सुरंग के ऊपरी हिस्से से मलबा गिरना शुरू हो गया। उनके पीछे हिरदा राम सतीश तथा मणिराम थे जो मलबा गिरने की आवाज सुन कर अंदर की ओर भागे जबकि वे खुद सुरंग के दरवाजे की ओर आ गए और सौभाग्यवश मलबे की चपेट में आने से बच गए।

हादसे की खबर मिलते ही प्रशासन ने अपने तौर पर निर्माण कर रही कंपनी के इंजीनियरों के साथ राहत व बचाव कार्य शुरू कर दिया था। रविवार को रोहतांग टनल की जिम्मेदारी संभाल रहे बीआरओ प्रमुख आरएस राव से संपर्क साधा गया था। उन्होंने मौके का जायजा लिया और मलबा हटाने के लिए आॅपरेशन और तेज करने की सलाह दी। लेकिन लगातार गिर रहा मलबा मजदूरों तक पहुंचने में बाधा डालता रहा। इस बीच एनडीआरएफ और सेना के इंजीनियर भी मौके का मुआयना करते रहे।

बीआरओ के बचाव व राहत अभियान का जिम्मा संभालने के बाद जब सुरंग से मिट्टी हटाने के काम में आशातीत प्रगति नहीं हुई तो राव की सलाह पर सुरंग के ऊपरी हिस्से में चार इंच व्यास का वर्टिकल छेद करने की प्रक्रिया को अंजाम दिया गया।

फलस्वरूप एक पाइप के रास्ते थर्मल कैमरा सुरंग में डाला गया था। बुधवार 16 सितंबर रात 9.30 बजे काम कर रहे इंजीनियरों का हौसला उस समय और बढ़ गया जब सुरंग के अंदर सतीश व मणिराम की लोकेशन मिल गई और वे दोनों सही-सलामत नजर आए। संपर्क स्थापित होने के बाद उन्हें चिकित्सकों की सलाह पर इसी पाइप के जरिए दवा, ओआरएस घोल और सूखे मेवे वगैरह मुहैया कराए गए थे।

एक अन्य विकल्प के तौर पर मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए सुरंग के ऊपरी हिस्से में वर्टिकल होल करने के लिए शुक्रवार को राजस्थान से बड़ी ड्रिल मशीन मंगवाई गई जिसने 1.3 मीटर व्यास का छेद करना शुरू किया। इसमें कई घंटे का समय लग गया क्योंकि एक सख्त चट्टान को तोड़ने में मशीन कई बार हांफ भी गई। बार-बार मशीन में आ रही तकनीकी खराबी भी बचाव दलों के लिए परेशानी का सबब बनी रही।

दिन भर होती रही बूंदाबांदी की वजह से छेद में 12 मीटर तक पानी भर गया जिसे निकालने के लिए टुल्लू पंप का सहारा लेना पड़ा। रविवार देर रात मशीन ठीक होने के बाद बाकी बचा खुदाई का काम सोमवार तड़के पूरा कर लिया गया। इस छेद से दो इंच मोटी 1.3 मीटर व्यास का 41 मीटर लंबा आयरन पाइप डाला गया। इसी पाइप से सुरंग की छत पर लगी लोहे की मोटी जाली व कंकरीट को काटने के लिए एनडीआरएफ के जवान को अंदर भेजा गया।

दोपहर बाद चार बजे विशेष तौर पर बनाई गई लिफ्ट में बिठा कर सबसे पहले मणिराम को जैसे ही बाहर लाया गया, लोगों की खुशी का ठिकाना न रहा। उसने भी हाथ हिलाकर वहां जमा हुई भीड़ का अभिवादन स्वीकार किया। मौके पर ही चिकित्सकों ने मणिराम व सतीश का मेडिकल जांच की और अगली जांच के लिए उन्हें बिलासपुर जिला अस्पताल लाया गया। वहीं तीसरे मजदूर हिरदे राम की तलाश में सुरंग के मुहाने से 60 मीटर दूर तक की गई खुदाई के बाद भी मिट्टी व चट्टानें हटाने का काम लगातार जारी है।

उसका दामाद शिवलाल व भानजा पंकज किसी चमत्कार की उम्मीद में वहीं डटे हैं जबकि बेटी पार्वती रह-रहकर गश खाकर गिर जाती है। मौके पर मौजूद मनोचिकित्सक डॉ दीपा उन्हें हौसला बनाए रखने की सलाह दे रही हैं। मणिराम के पिता व भाई मोतीराम ने प्रशासन व बचाव दल के सदस्यों का आभार प्रकट किया जिन्होंने उनके बेटे को नया जीवन देने में दिन-रात मेहनत की।

अपने 35 साथियों के साथ 18 सितंबर को यहां पहुंचे एनडीआरएफ के कमांडेंट जयदीप सिंह, सहायक कमांडेंट अनिल कुमार डरवाल और इंस्पेक्टर संतोष कुमार ने कहा कि इससे पहले उन्होंने कभी इस प्रकार के अभियान में हिस्सा नहीं लिया था। यह काम चुनौतीपूर्ण भले ही था, पर असंभव नहीं था। उन्हें खुशी है कि उनका यह मिशन कामयाब हुआ है।