मद्रास हाईकोर्ट में तैनात एक मुलाजिम ने गरीब शख्स को बहला फुसला कर नौकरी दिलाने की एवज में उससे 40 हजार रुपये ले लिए। शिकायत हुई तो बोला कि लोन लिए थे। स्पेशल कोर्ट ने उसकी दलील मानकर बरी भी कर दिया। लेकिन मामला हाईकोर्ट पहुंचा तो वो बुरा फंस गया और जेल में पहुंच गया।
मद्रास हाईकोर्ट ने अपने ही मुलाजिम की कारगुजारी को अक्षम्य मानते हुए तीन साल की सश्रम कैद और पांच हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मुलाजिम बोल रहा है कि उसने शिकायतकर्ता से लोन लिया था। लेकिन उसकी स्थिति देखकर तो नहीं लगता कि वो लोन देने की स्थिति में है। वो बेहद गरीब है। उसके पास गुजारे के पैसे नहीं तो वो दूसरों को लोन क्यों देने लगा। हाईकोर्ट ने माना कि उसके मुलाजिम ने अपनी पोजीशन का फायदा उठाकर शिकायतकर्ता को बहलाया फुसलाया और पैसे ले लिए। फंसा तो कहानी बना रहा है।
जो चेक दिया वो बाउंस हो गया
पुलिस में दर्ज केस के मुताबिक वीडी मोहन कृष्णन मद्रास हाईकोर्ट में बतौर कोर्ट ऑफिसर तैनात था। उसने शिकायतकर्ता को ये कहकर 40 हजार रुपये लिए थे कि वो उसकी नौकरी लगा देगा। लेकिन जब काम नहीं हुआ तो शिकायतकर्ता ने अपने पैसे वापस मांगे। मोहन कृष्णन ने उसे एक चेक दिया जो बाउंस हो गया। मामला स्पेशल कोर्ट में पहुंचा तो लंबी सुनवाई चली। 2015 में स्पेशल कोर्ट ने उसे बरी करते हुए कहा कि मोहन कृष्णन के खिलाफ जो आरोप लगाए गए हैं वो साबित नहीं हो सके। लिहाजा उसे बरी किया जाता है।
तमिलनाडु सरकार ने दी स्पेशल कोर्ट के फैसले को चुनौती
मोहन कृष्णन को लगा कि अब वो बच गया। लेकिन यहीं से उसकी बदकिस्मती शुरू हो गई। शिकायतकर्ता गरीब था। वो हाईकोर्ट जाने की स्थिति में नहीं था। लेकिन तमिलनाडु सरकार ने स्पेशल कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अर्जी लगा दी। वहां मामले की सुनवाई हुई तो जस्टिस वेलमुरगन ने स्पेशल कोर्ट के फैसले को गलत बताकर खारिज कर दिया। वेलमुरगन का कहना था कि मोहन कृष्णन ने जो कुछ किया वो भरोसे पर चोट के साथ सीधे सीधे धोखाधड़ी है। लिहाजा उसे किसी भी हालत में नहीं छोड़ा जा सकता।