बीजेपी शासित गुजरात के अहमदाबाद में उत्तर प्रदेश के आगरा और मथुरा से आए 24 हिन्दू-मुस्लिम कलाकार दशहरा पर रावण का पुतला बनाने में तल्लीन हैं। ये टीम यहां के मुस्लिम बहुल “खानवाड़ी मुस्लिम बस्ती” में पिछले 40 दिनों से रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के विशालकाय पुतले बनाने के लिए अस्थायी तौर पर डेरा डाले हुए हैं। उनके पास पुतले बनाने के लिए पूरे राज्य से बयाना आया हुआ है। उनसे नियमित तौर पर पुतला बनवाने वालों में इस साल अहमदाबाद के बाहरी इलाके में स्थित वडाज स्थित हरे कृष्ण मंदिर भी जुड़ गया। 38 वर्षीय शराफत अली खान को ये काम अपने पिता से विरासत में मिला है. वो पूरे टीम के कामकाज पर बारीक नजर बनाए रखते हैं।
टीम में हर किसी का काम बंटा हुआ है। कोई पुतले के लिए बांस के बम्बू लगा रहा है, तो कोई उनकी जिसका पुतला है उसके अनुसार रंगीन कागजों से उसे सजा रहा है। यहां 5 फीट, 25 फीट से लेकर 50 फीट तक के पुतले बन रहे हैं। लेकिन हैरत की बात है कि किसी पुतले का सिर नहीं है। शराफत अली खान कहते हैं, “पुतलों को पहुंचाने में होने वाली दिक्कत के चलते पतुलों के सिर अलग से पहुंचाए जाते हैं।” अहमदाबाद में पिछले कुछ दिनों में हुई बारिश के कारण शराफत अली खान और उनकी टीम थोड़ी निराश हो गई थी क्योंकि इतने बड़े पुतलों को रखने के लिए उनके पास जगह नहीं है। इस टीम के एक सदस्य मोमिन खान कहते हैं, “कई पुतलों पर दोबारा काम करना पड़ा। हमने कल तक दिन रात लगातार काम करके पुतलों का काम पूरा किया है।” मोमिन खान बताते हैं, “हमारे पास मुंद्रा, द्वारका, मोडसा, नाडियाड, वडोदरा और अहमदाबाद से ऑर्डर हैं. हमारे पास ओडिशा के राउरकेला और राजस्थान के जोधपुर से भी ऑर्डर आए हैं। मेरे पिता ने करीब 50 साल पहले रावण का पुतला बनाना शुरू किया था। मैं 15 साल की उम्र में इस काम से जुड़ गया।”
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टीम के सदस्य जीतूभाई शराफत अली खान से पिछले 10 सालों से जुड़े हैं। जीतूभाई कहते हैं, “हमारी 24 लोगों की टीम में 12 हिन्दू हैं और बाकी मुस्लिम हैं। हम एक जगह रहते हैं, खाते-पीते हैं और काम करते हैं। हमारा खाना भी एक ही जगह बनता है। हम एक जगह पूजा-प्रार्थना भी करते हैं। यहां किसी तरह का भेदभाव नहीं है।” शराफत अली खान की मां और बेटे भी इस काम से जुड़े हैं। वो कहते हैं कि वो मुस्लिम त्योहारों से ज्यादा “जुड़ाव” दशहरा से महसूस करते हैं और दूसरे किसी काम के बारे में सोच भी नहीं सकते। शराफत की 68 वर्षीय मां ने अपना नाम बताने से इनकार करते हुए कहा, “मैं अपने नाम से नहीं काम से पहचाने जाना चाहती हूं।” शराफत की मां ने बताया, “मेरे चारों बेटे दशहरा के लिए पुतले बनाते हैं। यही हमारी पहचान है, यही हमारी जिंदगी है।”
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आगरा और मथुरा से पुतला बनाने आए कलाकारों को अपना परिवार छोड़कर आना पड़ता है। आगरा से आए बादशाह खान कहते हैं, “हमारे बच्चे छोटे हैं, स्कूल जाते हैं इसलिए हम उन्हें अपने साथ नहीं ला सकते।” बादशाह खान के बड़े बेटे मोहसिन ने एमकॉम करके नौकरी करते हैं।क्या उनके बच्चे भी यही काम करेंगे? इस पर बादशाह खान ने कहा, “मेरे चार बेटे हैं। अभी ये कहना जल्दबाजी होगी कि वो हमारी विरासत संभालेंगे या कुछ और करेंगे। लेकिन मुझे उम्मीद है ये विरासत लंबी चलेगी।”
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