सरकार के लाख उपायों के बाद भी भारतीय रेल में रिजर्वेशन आसानी से मिलना बड़ी बात है, मिल भी जाए तो मनमाफिक सीट मिलना कठिन होता है। बर्थ च्वॉइस को लेकर यात्रियों की शिकायतें कम नहीं होती है। हो सकता है कि आपका भी सामना ऐसी समस्या से हुआ हो। कई बार एक ही परिवार के लोगों को एकसाथ रिजर्वेशन कराने पर अलग-अलग डिब्बों में सीटें दी जाती हैं, तो कई बार डिब्बा एक ही होता, लेकिन केबिन अलग हो जाती है, जबकि परिवार के लोग साथ में ही सफर करना चाहते हैं। ऐसे में लोग अपने आस-पास की सवारियों से सामंजस्य बनाने की गुहार लगाते हैं, लेकिन कई बार समस्या हल नहीं होती है। आखिर कैसे काम करता है रेलवे का रिजर्वेशन सिस्टम। इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार जब कोई यात्री रिजर्वेशन कराता है, तो उसे उसकी पसंद की बर्थ का विकल्प भरना पड़ता है। उसके पास 5 विकल्प होते हैं। जिनमें लोअर बर्थ, मिडिल बर्थ, अपर बर्थ, साइड लोअर और साइड अपर बर्थ शामिल हैं। आम तौर पर यात्रियों में लोअर बर्थ और साइड लोअर बर्थ को लेकर ज्यादा डिमांड देखी जाती है।

ऐसे काम करता है टिकट बुकिंग का सॉफ्टवेयर

बतादें कि एक डिब्बे में 72 सीटें होती हैं। जिन्हें 9 केबिन में बांटा जाता है। सीटें बुक करने के लिए रेलवे का एक खास सॉफ्टवेयर काम करता है। रेलवे के मुताबिक यह सॉफ्टवेयर पूरी पारदर्शिता के साथ काम करता है और सबसे पहले यात्रिओं की सीट के लिए पसंद को ध्यान में रखता है। आईआरसीटीसी सीट आवंटन संघनन सिद्धांत पर काम करता है। इसमें सिस्टम यात्री की सीट को लेकर उसकी पसंद देखता है, अगर पसंदीदा सीट की उपलब्धता नहीं होती है, तो सॉफ्टवेयर अगली बेस्ट च्वॉइस को लेता है। टिकट बुक करने के दौरान सॉफ्टवेयर डिब्बे के बीच से बर्थ की तलाश शुरू करता है और फिर बाईं और दाईं ओर चला जाता है। अगर यात्री की पसंद की सीट उस डिब्बे में उपलब्ध नहीं होती है तो सॉफ्टवेयर अगले डिब्बे सीट तलाशता है।

अगर यात्री के लिए सीट उपलब्ध नहीं होती है तो उसे आरएसी या वेट लिस्ट में रखा जाता है। एक साथ यात्रा कर रहे लोगों को एक ही केबिन में अगर सीटें नहीं मिल पाती हैं तो सॉफ्टवेयर पहले पास के केबिन में सीटें तलाश है। यहां च्वॉइस लागू नहीं होती है। वरिष्ठ नागरिकों और दिव्यांगों के मामले में सभी लोअर बर्थ को प्राथमिकता में रखा जाता है। वरिष्ठ नागरिकों के लिए साइड लोअर बर्थ को भी केबिन लोअर बर्थ के तौर पर आवंटित किया जाता है।