सुप्रीम कोर्ट इस हफ्ते तीन ऐसे केस की सुनवाई करेगा, जिससे  सामाजिक और राजनीतिक हलचल मचेगी। इनमें से एक केस है केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक हटाने का। दूसरा है धारा 377 को लेकर और तीसरा लोकपाल की नियुक्ति को लेेकर। सबरीमाला मंदिर मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पांच जजों की पीठ  कर रही है। संविधान पीठ यह तय करेगी कि क्या महिला के बॉयोलॉजिकल फैक्टर के आधार पर मंंदिर में प्रवेश पर रोक समानता के अधिकारो का उल्लंघन है या नहीं! क्या महिलाओं पर रोक के लिए धार्मिक संस्था में चल रही इस प्रथा को इजाजत दी जा सकती है? क्या यह रोक संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में है? इस हफ्ते महिलाओं को मंदिर में प्रवेश से रोक हटाने की याचिक की सनुवाई शुरू होने की उम्मीद है।

दूसरा मामला है धारा 377 का। मंगलवार से धारा 377 केे मामले में सुनवाई एक बार फिर से शुरू हो जाएगी। पिछले हफ्ते मुुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षत वाली खंडपीठ ने कहा था कि केंद्र सरकार ने अंग्रेजों के जमाने के इस कानून में संशोधन नहीं किया तो इसका मतलब यह नहीं कि कुल लोग इसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए इस प्रावधान को चुनौती नहीं दे सकते। वहीं तीसरा मामला है लोकपाल की नियुुक्ति का। इस मामले पर सुनवाई 17 जुलाई को होगी। केंद्र को इस हफ्ते सुप्रीम कोर्ट को सूचित करना होगा कि देश में सबसे पहले लोकपाल की नियुक्ति कब होगी? भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल नियुक्त करने में कितना समय लगेगा। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि वह इस मामले पर आदेश जारी सकरने से पहले केंद्र का पक्ष सुनना चाहता है। वहीं, अटॉर्नी जनरल केके वेनुगोपाल ने कहा कि जल्द ही लोकपाल कमेटी की मीटिंग होने वाली है। इसकी प्रक्रिया जारी है।

इन तीनों मामले के साथ ही सुप्रीम कोर्ट में बोहरा समुदाय की महिलाओं के बीच खतना प्रथा को बंद करने के मामले को भी उठाया जाएगा। सीजेआई की पीठ मुस्लिम बोहरा समुदाय की महिलाओं के एक वकील द्वारा दायर याचिका को अंंतिम रूप देने की संभावना है। इस याचिका के माध्यम से खतना प्रथा को बंद करने की मांग की गई है। पिछले हफ्ते एक सुनवाई के दौरान केंद्र ने कहा कि यह एक अपराध है। अदालत ने भी प्रतिबंध का समर्थन किया था। न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचुड़ ने कहा कि जननांगों को छूने से किसी की गोपनीयता का उल्लंघन होता है। धार्मिक प्रथा के नाम पर ऐसा करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

 

इसके साथ ही कोर्ट रियल्टी फर्म जैपी इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (जेआईएल) की पेशकश पर भी अपनी मूल कंपनी जेपी एसोसिएट्स लिमिटेड (जेएएल) को फ्लैटों का पूरा निर्माण करने का प्रस्ताव देगी ताकि खरीदारों को अपने घरों का इंतजार करने के लिए अधिकार दिया जा सके। सुप्रीम कोर्ट जेआईएल के खिलाफ शुरू हुई दिवालिया कार्यवाही की याचिकाएं सुन रही है। हालांकि, कार्यवाही की विफलता के बाद अदालत घर खरीदने वालों को राहत प्रदान करने के विकल्पों पर तलाश कर रही है।